प्रो. एच सी पांडे
‘शमाएँ जलाओ सरे-राह मगर,
रात को रात,अंधेरे को अंधेरा तो कहो।
क़ाफ़िले-हक़ की हिमायत न करो लेकिन,
चोर को चोर,लुटेरे को लुटेरा तो कहो।’
आज का युग सूचना तकनीकी का युग माना जाता है।नाभिकीय शक्ति की तरह सूचना तकनीकी का उपयोग समाज को समृद्ध,अथवा दरिद्र ,सुखी अथवा दुखी,शान्त अथवा अशांत,बना सकता है। अतः सूचना- माध्यम पर,इस काल-खंड में,अति गंभीर दायित्व है।अब प्रश्न है कि क्या इलेक्ट्रॉनिक अथवा,मुद्रित माध्यम इस विषय की गंभीरता को समझते है कि नहीं।वर्तमान परिस्थिति में यह लग रहा है कि बंदरों के हाथों उस्तरा लग गया है,और,अधिकतर समाचार तथा सूचनाएँ,नाक कटी या कान कटी,कहीं न कहीं से,कटी- फटी अवश्य होती हैं ।अस्पष्ट,अधूरे,अप्रासंगिक और अनैतिक समाचार प्रसारण की आग लगी हुई है।अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देकर सच का स्वरूप ही बदल दिया जाता है ताकि सही समाचार भी ग़लत संदेश दे।कोई भी घटना,कहीं भी हो,उसकी सूचना संवाददाता के अपने पूर्वाग्रह,सूचना एजेंसी के अपने झुकाव,और,अंततः समाचार माध्यम के मालिक की नीति के आवरण में लपेट कर जन-साधारण को प्रस्तुत की जाती है।झूठ अथवा सच से सूचना का संबंध केवल आकस्मिक होता है।सच तथ्यों से सीमित रहता है,पर झूठ अंतहीन है।
तथ्य मिश्रित समाचार,प्रसार क्यों चलन में हैं यह अपने आप में एक अलग विषय है पर भारत के संदर्भ में,यह झूठ-सच का मिश्रण,विकास और विनाश की,दशा व दिशा तय करने की क्षमता रखता है।इस देश का समाज किसी भी अन्य देश की तुलना में,अत्यधिक सामाजिक,धार्मिक व राजनैतिक विविधता प्राप्त है।वास्तव में यह समाज कई समूहों का समूह है।विविधताएँ घुल-मिल गई हैं,पर यह मिश्रण(मिक्सचर) नहीं है बल्कि पायस(इमलशन) है।दूध की तरह,यह भारत के अनूठे सांस्कृतिक द्रव में,निजता के ठोस कणों के संग्रहण के समान है।एक भी,सच-झूठ मिश्रित कथन,सूचना,अथवा समाचार,इस संदर्भ में,दूध में नींबू रस की एक बूँद की तरह,सारी व्यवस्था छिन्न-भिन्न करने की क्षमता रखता है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश का समाचार माध्यम,अपना गहन दायित्व,देश के विकास-यज्ञ नहीं समझता और उसका सारा ध्यान हर समाचार को सनसनीख़ेज़ व चटपटे ढंग प्रस्तुत करने में होता है।समाचार रूपान्तर में,चाहे सच कम-कम हो,पर समाचार की धम-धम आवश्यक है।किसी भी घटना पर,रोशनी नहीं,धमाका अवाम की पसंद है।आज के युग में कमाई,सिद्धान्तों से ऊपर मानी जाती है,और कमाई के लिये,पाठक/दर्शक संख्या में बढ़ोत्तरी करनी है अत: यह स्वाभाविक है कि जनता की रुचि के अनुसार नमक- मिर्च डाल कर भोजन परोसा जाये,सिर्फ़ नमक-मिर्च भी चलेगी ।
धन की मृगतृष्णा में विवेक भी खो देना अक्षम्य है।देश के जनमानस पर अर्धसत्य का कुप्रभाव देश के विकास के लिये घातक है।विकासशील देश के,अपरिपक्व युवावर्ग को,स्पष्ट लक्ष और दिशा चाहिये,उसको मार्ग भ्रमित करना घोर अपराध है।सभी क्षेत्रों में नैतिकता आजकल दुर्लभ होती जा रही है पर लगता है कि समाचार माध्यम के शब्दकोश से यह शब्द निकाल ही दिया गया है।
रात में चाहे कितनी भी रोशनी कीजिए पर रात के अस्तित्व को नकारिये नहीं,और,लुटेरे को लुटेरा,कहने की हिम्मत तो रखिये।
(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)