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(Update 12 minutes ago)

प्रियंका राहुल को कमजोर करने की सियासत कर रही है ?

डेली न्यूज़ एंड व्यूज संवाददाता

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जिस दिशा में प्रियंका गाँधी ले जा रही हैं उससे तरह तरह के सवाल कांग्रेस कार्यकर्ताओं में ही उठने शुरू हो गए हैं। सवाल तो यह भी उठने लगे है कि प्रियंका की कार्यशैली जो दिखाई दे रही हैं। उसे देखते हुए यह आशंका भी पैदा हो रही हैं कि अमेठी के हार के पीछे कहीं प्रियंका गाँधी की साजिश तो नहीं है?

जिस तरह से राहुल गाँधी के खिलाफ सोची समझी रणनीति के तहत कांग्रेस का एक धड़ा जो प्रियंका के नजदीक माना जाता है अभियान चला रहा है उसे देखते हुए भी सवाल उठना लाजमी हैं। पूरी दुनिया और देश सभी जानते है कि वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी के आस पास ही देश की सियासत घूम रही हैं। कांग्रेस देश की सबसे पुरानी और प्रमुख विपक्षी दल है। प्रियंका गाँधी उत्तर प्रदेश की प्रभारी ही नहीं पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव हैं। काफी दिनों से प्रियंका योगी के खिलाफ ट्वीट करती हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर बहुत ज्यादा विपक्ष की भूमिका में दिखाई नहीं देती। लोकसभा चुनाव के पहले जिस तरह से राहुल गाँधी ने मोदी के खिलाफ आक्रामक सियासत की थी। जिसका परिणाम गुजरात में भाजपा को कड़ी टक्कर और राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनवाई। राज्यों के इन परिणाम से राहुल का मनोबल बढ़ा था। लोकसभा में भी आक्रामक तेवर के साथ मोदी के खिलाफ चुनावी जंग में उतरे थे। चुनाव के दौरान स्थितियों का आकलन करें तो जिस समय राहुल गाँधी आक्रामक थे उसी समय प्रियंका के पति रोबर्ट वाड्रा के खिलाफ जांच एजेंसियां भी बहुत तेजी से सक्रिय थी और वाड्रा का मीडिया ट्रायल जोर शोर से हो रहा था। लेकिन राहुल गाँधी के खिलाफ उनके आस पास के सलाहकारों के जो प्रियंका गाँधी के करीबी बताये जाते है ऐसे ऐसे सलाह दिए जिसका परिणाम राहुल के खिलाफ माहौल बना और लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। प्रियंका के नजदीकी लोग ही राहुल के आस पास थे जो ऐसी सलाह देकर चुनाव के बाद राहुल को अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए मजबूर करा दिया लेकिन उत्तर प्रदेश जहाँ पर परम्परागत गाँधी परिवार की सीट अमेठी थी राहुल गाँधी हार गए। ऐसे शर्मनाक हार पर प्रियंका वाड्रा ने कोई भी नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं ली और न ही इस्तीफ़ा दिया। कई महीने तक अध्यक्ष का पद खाली रहा। पार्टी के वरिष्ठ नेता के अनुसार राहुल को दरकिनार कर प्रियंका राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी हथियाना चाहती थी लेकिन राहुल गाँधी के बयान ने प्रियंका के मंसूबों पर पानी फेर दिया। इस्तीफ़ा देने के साथ राहुल गाँधी ने बयान दिया कि नया अध्यक्ष गांधी परिवार का नहीं होगा। महीनों तक चले कयास और उठापटक की बीच के अंततः सोनिया गांधी को ही कमान संभालनी पड़ी। देश की जनता यह जानती और समझती भी है और दिखाई भी दे रहा है कि मोदी के खिलाफ वर्तमान राजनीतिक हालात में राहुल गाँधी ही तेवर के साथ विपक्ष की भूमिका में लड़ाई लड़ सकते है। भाजपा विरोधी दल और जनता भी राहुल गाँधी के पीछे खड़ी होती दिखाई दे रही है। प्रियंका के बारे में जो भी धारणा हो लेकिन एक कड़वी सच्चाई है कि प्रियंका के पति राबर्ट वाड्रा पर एजेंसियों का जबरदस्त दवाब है और जिस तरह से हालात बनते जा रहे है उसको देखते हुए यह आशंकाएं भी प्रबल हो रही है कि भारी दवाब में प्रियंका मोदी के खिलाफ चल रहे राहुल गाँधी के आक्रामक तेवर को कमजोर करने की दिशा में बढ़ रही है। राजनीति की सच्चाई है कि राहुल गाँधी पर किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार का ऐसे मामले नही है जैसा कि प्रियंका के पति रोबर्ट वाड्रा पर है। राजनीतिक परिस्थियों का विश्लेषण करें तो जब जब चुनाव नजदीक होते है वह चाहे राज्यों के हो या लोकसभा के तब तब राबर्ट वाड्रा के खिलाफ एजेंसियां तेजी पकड़ती है मीडिया ट्रायल होता है। चुनाव परिणाम आने के बाद एजेंसिया जांच की फाइल ले कर सो जाती है और मीडिया ट्रेल भी शांत हो जाता है। राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठाना शुरू हो गए है कि प्रियंका किसी न किसी दवाब में कांग्रेस के तेवर वाले नेता अपने भाई राहुल गांधी को कमजोर करने में जुटी हैं। इसका प्रत्यक्ष उदहारण है कि भाजपा सत्ता में आने से पहले और 6 वर्ष तक सत्ता में रहने के बाद प्रियंका को दावाब में लेने के लिए जांच एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है क्योकि अगर राजनीतिक कारण नहीं होते तो रोबर्ट वाड्रा की जांच का परिणाम आ जाता। अगर निर्दोष होते तो मामले ख़त्म हो जाते और दोषी होते तो जेल में होते लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जांच चुनावी समीकरणों के हिसाब से तेजी पकड़ती है और धीमी हो जाती है।

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