राजेन्द्र द्विवेदी
आजादी के बाद देश कोरोना वायरस जैसा एक घातक लड़ाई लड़ रहा है जिसमे हथियार का उपयोग नहीं हो रहा है। हथियारों की लड़ाई में तो एक दूसरे के खिलाफ विकल्प भी होते है और ताकतवर हथियार के सामने मुकाबले में कमजोर हथियार वाली सेना का हारना लगभग तय होता है। जैसा कि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में हुआ था। चीन भारत की लड़ाई में और भारत पकिस्तान की लड़ाई में परिणाम सामने आये।
कोरोना वायरस चीन और अमेरिका के आपसी आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच बिना हथियारों के लड़ा जाने वाला अघोषित रूप से तीसरा विश्व युद्ध है। प्रथम चरण में इस लड़ाई में अमेरिका पराजित होता नज़र आ रहा है। दुनिया के शक्तिशाली देश चीन, अमेरिका, यूरोप सहित 200 से अधिक देश प्रभावित है। जिसमे 2 लाख से अधिक मौत हो चुकी है। अत्याधुनिक साधन सम्पन्न देशों की तुलना में हिन्दुस्तान स्वास्थ्य व अन्य सुविधाओं में काफी पीछे है। कोरोना वायरस का प्रभाव धीरे धीरे बढ़ रहा है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कोरोना वायरस की तुलना में देश के राजनीतिक दलों में सियासत ज्यादा हो रही है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी माँ बेटे दोनों का रवैया बहुत सकारात्मक नहीं है। सोनिया को अपने ही पार्टी के प्रधानमंत्री रहे पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव से सीखना चाहिए जिन्होंने देश का प्रतिनिधी करने के लिए अटल बिहारी बाजपाई को यूनाइटेड नेशंस भेजा था। अटल बिहारी बाजपाई ने विपक्ष में रहते हुए भी देश का गौरव बढाया और दुनिया के नेता हिन्दुस्तान के इस एकता से अचंभित भी थे। ऐसा ही आचरण महासंकट के दौरान सोनिया गाँधी को अपनाना चाहिए। यह राजनीतिक समय नहीं है। मोदी जो भी गलतियाँ कर रहे है उस पर सवाल उठाने के बजाय कोरोना से लड़ने के लिए अहंकार रहित होकर अपनी कांग्रेस पार्टी की टीम के साथ आगे बढ़कर मोदी को सहयोग करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी, राहुल गाँधी, ममता बनर्जी सहित देश भर के राजनीतिक दल कोरोना वायरस को वोट बैंक की नजरिये से सियासत कर रहे हैं।
राज्य एक दूसरे राज्य से लड़ रहे हैं स्थिति यहाँ तक पहुच गयी है कि तमिलनाडु ने आंध्र प्रदेश जाने वाली मुख्य सड़क पर दीवार खड़ी कर दी है। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार अपने ही राज्य के गरीबों को बिहार में घुसने नहीं दे रहे है। सभी राज्य राजनीतिक लाभ हानि को देखते हुए अपने-अपने सुविधानुसार राजनीति में जुटे है। 5 करोड़ से अधिक मजदूर जिसमे नौनिहाल से लेकर महिला एवं बुजुर्ग तक सभी शामिल है। देश भर में जगह जगह फसे हुए हैं। अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी है। देश के सामने चुनौतियों का अम्बार है। ऐसे समय में फरमान-अहकार की नहीं, एक दूसरे के आपसी सहयोग की जरुरत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो एक गरीब परिवार से आते है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की कमान संभाल रहे है। लोकप्रिय नेता है लेकिन कोरोना वायरस से लड़ने के लिए उन्हें देश की जनता एवं विपक्षी दलों सहित सभी वर्ग, व्यापारी, छात्र, मजदूरों को भरोसे में लेना चाहिए।
चार घंटे के अंतराल में 40 दिन का लॉकडाउन का एकतरफा फरमान जारी करना सहयोग की भाषा नहीं मानी जा सकती। सहयोग के लिए संवाद जरुरी है और सबसे लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री मोदी की विपक्षी दलों से संवादहीनता ही असहयोग का कारण बन जाती है। जिस तरह से 25 मार्च को अचानक 21 दिन का लॉकडाउन करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्रियों एवं राजनीतिक दलों से संवाद किये वैसा ही संवाद सहयोग लेने के लिए घोषणा करने के चंद घंटे पहले भी कर सकते थे। यह सही है कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए लॉकडाउन सबसे बड़ा विकल्प और जिसे लागू करने के लिए प्रधानमंत्री ने साहसी कदम उठाया लेकिन यह माना जा रहा है और आरोप भी लग रहे है कि अगर संवाद के साथ लॉकडाउन जैसे निर्णय लिए गये थे तो छात्रों, मजदूरों सहित अन्य तरह की समस्याए आयी है उसे कम करके बेहतर तरीके से निपटा जा सकता था लेकिन प्रधानमंत्री ने बिना भरोसे में लिए लॉकडाउन का फरमान जारी कर दिया।
विपक्षी इसे प्रधानमंत्री के अहंकार के रूप में आरोप लगा रहे है। मोदी के साथ साथ विपक्षी नेताओ का भी रवैया सकारात्मक नहीं रहा। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिय गाँधी, राहुल गाँधी सरकार की कमियों पर ही ज्यादा बोल रहे हैं अच्छे कार्यों का समर्थन करके सहयोग की भावना नहीं दिखा रहे है। ममता बनर्जी ने तो कोरोना जैसी महामारी को भी केंद्र-राज्य की राजनीतिक लड़ाई में बदल दिया है। गैर भाजपा राजनीतिक दल और भाजपा दोनों तब्लीकी जमात को सियासत का एक एजेंडा बना लिया है। भाजपा एवं उनके अनुषांगिक सगठन तब्लीकी जमात को कोरोना का वाहक बताते हुए मुस्लिम सनुदाय को घेरने का प्रयास कर रहे है तो दूसरी तरफ ममता, मायावती, अखिलेश सहित सभी गैर भाजपा राजनीतिक दल तब्लीकी जमात की गलतियों पर चुप्पी साधते हुए मुस्लिमों के उत्पीडन के रूप में बयानबाजी कर रहे है।
मीडिया का चरित्र बहुत ही घिनौना रहा है। मीडिया ने कोरोना वायरस के युद्ध में हिन्दू मुस्लिम का अभियान चला कर देश का बहुत बड़ा नुकसान कर दिया। देश की 130 करोड़ आबादी के सामने मीडिया का घिनौना चेहरा सामने आ गया है। मीडिया के तमाम हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण के बाद भी देश की जनता बधाई की पात्र है। उसने मीडिया के घिनौने आचरण हिन्दू-मुस्लिम जाल में नहीं फसी। इस महामारी के बीच पालघर में साधुओं के हत्या को भी मीडिया हिन्दू मुस्लिम बनाने में जुटी है।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम सहित तमाम विभिन्न क्षेत्रों के विषय विशेषज्ञों से सरकार सुझाव लेना अपमान समझ रही है। कुछ सार्थक सुझाव विपक्ष दे भी रहा है उसे भी अहंकारवश सत्ता पक्ष मांनने के लिए तैयार नहीं है। इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला नौकरशाह का रवैया भी बहुत ही घटिया रहा है। जिस तरह से किड की खरीद-फरोख्त में बड़ी धांधली सामने खुल कर आयी है उसकी जड़ में भ्रष्टाचार नौकरशाहों की करतूत है। देश का कुलीन वर्ग माने जाने वाला नौकरशाह इस आपदा की घड़ी में भी लुट करने से बाज नहीं आ रहा है। स्थिति राजनीति में उलझती जा रही है। करोड़ों मजदूर देश भर में फसे हुए है। जांच के लिए मंगाई गई किट नकली पाई गयी। अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही है। फरमान और अहंकार के कारण जनता का भरोसा टूट रहा है। ऐसे में कोरोना जैसे महामारी से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सार्थक कार्ययोजना बनती हुई दिखाई नहीं दे रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव से सीख लेनी चाहिए। उन्होंने देश हित में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपाई को देश का नेतृत्व करने के यूनाइटेड नेशन भेजा। कोई भी व्यक्ति परफेक्ट नहीं होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निश्चित ही ईमानदार, कड़े निर्णय लेने वाले जरुर है लेकिन अर्थव्यवस्था के मामले में मनमोहन सिंह जैसे जानकर नहीं है। देश भर के तमाम अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री एवं राजनीतिक दलों के अनुभवी नेता चाहे वह चिदंबरम, शरद पावार, सोनिया गाँधी, मुलायम सिंह यादव, मायावती, नितीश कुमार हो सभी को एकजुट करके एक साथ सहयोग लेने की भावना से कोरोना की लड़ाई लड़ने का तत्कालीन एवं दीर्घकालीन राष्ट्रीय स्तर पर कार्ययोजना बनाने की आवश्यता है। कोरोना की लड़ाई एक संकट भी है तो देश के सामने एक महान अवसर भी है। चीन से भाग रहे उधोगों को भारत में लाने की पहल हो सकती है यह पहल केवल सरकार के करने से नहीं होगी बल्कि देश के सभी नेताओं को एक जुटता दिखाते हुए ऐसा औद्योगिक वातावरण एवं सुविधा देने का माहौल बनाना होगा जैसा माहौल उद्योग के लिए चीन में था।
अंत में यही जनभावना भी है देश की और कोरोना वायरस जैसे युद्ध लड़ने के आवश्यकता और समय की मांग भी है कि देश हित में फरमान और अहंकार को छोड़ कर सभी आपसी सहयोग के साथ राष्ट्रीय सरकार जैसे भावना के साथ एकजुट हो तो निश्चित रूप से कोरोना युद्ध जीतेंगे और दुनिया में नये शक्तिशाली सुपर पावर बनने की ताकत भी रखेंगे।