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लॉकडाउन में अफरा तफरी और सियासत के शिकार मजदूर

डेली न्यूज़ एंड व्यूज संवाददाता

लखनऊ; दिनांकः 29.04.2020
कोरोना महामारी से देश में सबसे अधिक गरीब एवं मजदूर सियासत के शिकार हो रहे है। जिस तरह से मजदूर लॉकडाउन में अपने घर पहुचने के लिए जंगल के रास्ते, रेलवे ट्रेक, सड़क के रास्ते व अन्य तमाम ऐसे मार्गों से जहाँ पर पुलिस की निगाह न पड़े लगातार भाग रहे हैं। घर पहुचने की जल्बाजी की अफरा तफरी में निरंतर हो रही दुर्घतनों में मजदूर मारे भी जा रहे है। छत्तीसगढ़ में पटरी से घर जा रहे मजदूर ट्रेन से कटे और दुर्घटना से निधन हो गया। तेलंगाना की एक महिला जो अपने घर बीजापुर जंगल के रास्ते निकली थी उसकी मौत हो गयी। अहमादाबाद, आन्ध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश के एक-एक मजदूर ने आत्महत्या कर ली।

इस तरह लाखों मजदूरों की जान खतरे में पड़ गयी है। दूसरी तरफ केंद्र एवं प्रदेश सरकार दोहरा आचरण तथा राजनीतिक दलों की सियासत से गरीबों का संकट और उनकी जान के खतरे बढ़ते जा रहे है। मजदूरों के मामले में केंद्र एवं प्रदेश की सरकारों का रवैया एक ही जैसा है। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने 4 घंटे की नोटिस पर दो चरणों में 40 दिनों का लॉकडाउन लागू कर दिया। लॉकडाउन में दिहाड़ी मजदूर गरीब एवं अन्य कमजोर तबके के लोग जीविका कैसे चलाएंगे इसकी कोई कार्य योजना नहीं बनायी। प्रधम लॉकडाउन लागू करने के पहले प्रधानमंत्री ने किसी भी राज्य से बात भी नहीं की थी। उन्होंने केवल कोरोना से बचाव के लिए 21 दिनों तक घरों एवं जो जहाँ पर है वहीं पर रहने की अपील की थी। प्रथम चरण का लॉकडाउन 14 अप्रैल को समाप्त हो रहा था उसे देखते हुए रेल विभाग, परिवाहन विभाग तथा एयरलाइन्स ने 7 अप्रैल से 15 अप्रैल के बाद के लिए बुकिंग भी शुरू कर दी थी।

60 लाख से अधिक गरीबों ने विभिन्न राज्यों से अपने घर जाने के लिए टिकट भी बुक कराया और सोचा कि 14 अप्रैल के बाद अपने घर पर पहुच जायेंगे लेकिन 14 अप्रैल को ही अचानक फिर 3 मई के लिए लॉकडाउन बढ़ा दिया गया। ट्रेन, बस, हवाई जहाज को अगले 3 मई तक रोक लगा दी। जगह जगह फसे मजदूर दूसरे लॉकडाउन की घोषणा से मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान है। अपनी जान जोखिम में डाल कर वो घर के लिए भाग रहे है। जिससे दुर्घटनाएं भी हो रही है। अहमदाबाद, मुंबई, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित देश के कई स्थानों पर भारी संख्या में मजदूर सड़कों पर निकल आये जिसे पुलिस ने बलपूर्वक रोक दिया। यह सामान्य प्रक्रिया है कि आफत के समय चिड़िया और जानवर भी अपने बसेरों पर जाना चाहते है। आदमी का तो यह स्वभाव ही है कि परेशानी में लोग अपनों के बीच रहना चाहते है।

कोरोना एक ऐसी जानलेवा महामारी है जिससे हर कोई घबराया है। उसी तरह मजदूर भी अपने घर पहुचना चाहते है। दुर्भाग्य यह है मजदूरों और गरीबों के दर्द को कोई न समझ रहे है और न ही समझना चाहते है। लॉकडाउन पालन करने की सारी जिम्मेदारी लगता है गरीबों और मजदूरों पर ही जबरदस्ती सरकार लागू कराना चाहती है।

गृह मंत्रालय बिना किसी कार्य योजना के अचानक राज्य सरकारों को निर्देश दे दिया कि मजदूरों को अपने-अपने राज्यों में रोके और उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराये। गृह मंत्रालय के इस निर्णय से राज्य सरकार केवल मजदूरों को रोकने के लिए प्रयास कर रही है जबकि व्यवस्था में सक्षम लोगों पर लॉकडाउन नहीं लागू हो पा रहा है। राजस्थान के जयपुर में 1 लाख से अधिक मजदूर फसे हुए है जो अपने घर आना चाहते है उन्हें जबरदस्ती रोका गया है। उन्हें खाने पीने के लाले पढ़ गये जिसके कारण सैकड़ों मजदूर डिप्रेशन में है। दूसरी तरफ बिहार के विधायक को मुख्यमंत्री नितीश कोटा से बच्चे को लाने की अनुमति दे देते है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 250 बसे भेज कर 10500 बच्चो को कोटा से उत्तर प्रदेश वापस बुलवा लेते है। लॉकडाउन लागू होने के बाद 400 से अधिक उत्तराखंड में फसे गुजरातियों को विशेष व्यवस्था करके गुजरात भेज दिया जा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा की पारिवारिक शादी में सैकड़ों मेहमान लॉकडाउन की धज्जियाँ उड़ाते है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार गिराते हुए भीड़ भार में भाजपा के नेता शिव राज सिंह चौहान मुख्यमंत्री पद की शपत लेते है। इसके आलावा देश भर में लॉकडाउन तोड़ने की लगातार घटनाये हो रही है लेकिन गरीब मजदूर के बारे में दोहरी राजनीत केंद्र एवं प्रदेश सरकार अपना रही है। स्थिति दिनों दिन ख़राब हो रही है। बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी से परेशान मजदूर अवसाद में है। मीडिया भी मजदूरों की पीड़ा को सरकार के सामने लाने के बजाय दिन रात हिन्दू मुस्लिम सहित अपने अपने एजेंडों पर हल्ला मचा रही है।

उत्तर प्रदेश और बिहार दो राज्य ऐसे है। इसके करोडो युवा रोजी रोटी कमाने गये थे और लॉकडाउन में फसे हुए है। कुल मिला कर देश भर में गरीब एवं मजदूर सरकार की दोहरे निति और सियासत के शिकार हो गए है।

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