कोरोना युद्ध 8- सहयोग से ज्यादा सियासत

राजेन्द्र द्विवेदी

दुनिया में कोरोना वायरस तबाही मचायी है। 35 लाख से अधिक कोरोना पॉजिटिव और दो लाख से अधिक मौते हो चुकी है। अमेरिका के राष्ट्रपति कोरोना वायरस से लड़ने में हुई अपनी अक्षमता का आरोप चीन पर लगा रहे हैं। यही स्थिति अन्य तमाम देशों की है जिन्होंने समय पर कोरोना से लड़ने की तैयारी नही की। वह भी चीन व दूसरे पर अपनी गलतियां छुपाने के लिए आरोप लगा रहे हैं। हिन्दुस्तान में भी ऐसी स्थिति राजनीतिक दलों के बीच में पैदा हो गयी है। सत्ता पक्ष व विपक्ष की भूमिका-
सत्ता पक्ष व विपक्ष सभी कोरोना युद्ध से लड़ने के लिए एकजुट होकर कोरोना से लड़ने के बजाय सियासत ज्यादा कर रहे है। सबसे बड़ी समस्या इस समय देश भर मे लॉकडाउन में फसे मजदूरों व अन्य लोगों को लेकर हैं। दो चरणों में लागू हुए लांकडाउन 40 दिन के थे लोगों को उम्मीद थी कि दूसरे लॉगडाउन के बाद ट्रेन, बस और निजी वाहन तथा हवाई जहाज चलेगी और लोग अपने घर पहुँच जायेगें। स्थितियां अनुकुल न होने के कारण तीसरे चरण में भी लॉकडाउन दो हफ्ते के लिए 17 मई तक बढ़ाना पड़ा। लम्बा लॉकडाउन होने के कारण देश भर में फसे मजदूर अपने घर जाने के लिए परेशान होकर सड़कों पर उतरें।
भुखमरी के कारण लॉकडाउन के नियमो को तोड़ा संख्या इतनी अधिक है इन्हें कोई भी राज्य लम्बे अर्से तक कैम्प में रहने और खाने-पीने की व्यवस्था नही कर सकता। संसाधनों की कमी आर्थिक परेशानी और केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के साथ मिलकर लॉकडाउन में कोरोना युद्ध से लड़ने के लिए तत्कालिक और दीर्घकालिक किसी प्रकार की कार्ययोजना नही बनायी। कोरोना युद्ध जैसे महामारी से लड़ने में भी सियासत हो रही है। सियासत सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों कर रहे हैं। सबसे अहम भूमिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्यों में भाजपा और गैर भाजपा मुख्य मंत्रियों की हैं। मोदी ने बेशक साहसिक कदम उठाते हुए कोरोना को युद्ध बताकर लॉकडाउन करने की घोषण कर दी। समयकाल एवं परिस्थितियों तथा कोरोना वायरस के स्वाभाव को देखते हुए तत्कालिक रुप से लॉकडाउन जैसे निर्णय ही सबसे अहम और अनिवार्य था जिसे मोदी ने लागू करके सही कदम उठाया।
केंद्र एवं राज्यों की समस्या-
भारत जैसे 130 करोड़ जनसँख्या वाले गरीब मुल्क के लिए लॉकडाउन एक बड़ी समास्या तो अवसर भी है। लॉकडाउन के लागू करने के बाद देश भर में जनजीवन ठप हो गया। जो जहां थे वही रूक गये। सब ने मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सहयोग किया। प्रथम लॉकडाउन के समय सोनिया गांधी सहित विपक्ष के नेताओं ने भी प्रधानमंत्री के लॉकडाउन करने का समर्थन किया। देश में सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती एक दूसरे राज्यों में फसे मजदूरों, छात्रों, व अन्य लोगों को घर पहुचाने की हैं। यह बात लॉकडाउन करते समय प्रधानमंत्री और लॉकडाउन का समर्थन करते समय विपक्षी नेताओं और गैर भाजपा मुख्यमंत्रियों को सोचनी चाहिए। भाजपा और गैर भाजपा दोनों ने इस दिशा में सार्थक पहल न करके सियासित शुरू कर दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना युद्ध के लिए अफसरों नेताओं के समूह की अलग-अलग टीम बना दी। इसी तरह से राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी अफसरों की टीम गठित की। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 11 अधिकारियों की कोरोना से लड़ने की टीम बनाकर युद्ध स्तर पर लड़ाई लड़ रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने राज्यों से अपील किया कि वह मजदूरों के रहने खाने की व्यवस्था करें मजदूरों को नौकरी से निकाला न जाये। लॉकडाउन के दौरान वेतन में कटौती न की जाये। मकान मालिक किराया न ले और जो भी सक्षम लोग है वह मदद के लिए आगे आये। लॉकडाउन के प्रथम चरण में प्रधानमंत्री की अपील सफल रही और मजदूरों सहित राज्यों और उद्योग क्षेत्रों तथा मकान मालिको व व्यवस्था के अन्य लोगों को भरोसा था कि लॉकडाउन समाप्त हो जायेगा लेकिन ऐसा नही हुआ। स्थितियां विपरीत थी। प्रधानमंत्री ने दूसरे लॉकडाउन की घोषण की और इसी के साथ यह अफवाहें तेजी के साथ फैली कि लॉकडाउन कई महीनों तक रहेगा। इन अफवाहों को दूर करने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकारो के पास कोई ऐसी कार्ययोजना नही थी जो जनता के बीच लाते और मजदूर व समाज के अन्य वर्ग भरोसा करते। यही पर सबसे बड़ी केंद्र और राज्य सरकारों से चूक हुई। गरीबों मजदूरों, छात्रों और देशभर में फसे लोगों का भरोसा केंद्र और प्रदेश सरकारों से उठ गया। जिसका परिणाम यह रहा कि पूरे देशभर में अफरा-तफरी मच गयी। छात्र, मजदूर, सड़कों पर आ गये बहुत सारे मजदूर मजबूरीवश सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर घर जाने के लिए मजबूर हो गये। इस अफरा-तफरी में कई मजदूरों की दुर्घटना भुखमरी से जान भी चली गयी। देश भर में मजदूरों एवं छात्रों के उग्र आंदोलन से मजबूर होकर केंद्र सरकार को उन्हें अपने राज्यों को भेजने का निर्णय लेना पड़ा। लॉकडाउन प्रथम द्वितीय एवं तृतीय में भाजपा और गैर भाजपा दलों एवं सरकारों के बीच सहयोग कम सियासित ज्यादा रही। कोई किसी से कम नही रहा। भाजपा ने लॉकडाउन में मध्यप्रदेश सरकार गिरायी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विधानपरिषद नामित करने में व्यवधान पैदा किया। केरल और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल कोरोना युद्ध में सरकार सहयोग करने के बजाय विपक्षी नेताओं की तरह मुख्यमंत्रियों से ही लड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री ने जो पैकेज घोषित किये है पैकेज का वितरण को लेकर भी भाजपा और गैर भाजपा के बीच जंग छिड़ी हुई हैं। इस महान संकट में भी तब्लीगी जमात के बहाने हिन्दु, मुस्लिम की सियासत हो रही है। जमात के मुखिया साध को लेकर जांच एजेसिंया जाचं कम मीडिया के माध्यम से हिन्दु मुस्लिम का अभियान ज्यादा चला रहे हैं। यही स्थिति गैर भाजपा दलों की है सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोग के लिए कांग्रेस के अनुभवी एवं अर्थ व्यवस्था के जानकार पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पी चिदंबरम, गुलाम नवी आजाद एवं अन्य अनुभवी नेताओं को नही भेजा। बल्कि सहयोग के बजाय विरोध करने के लिए प्रोसाहित किया।

उन्होंने कोरोना युद्ध में विपक्ष को पूरी तरह भरोसा में नही लिया बल्कि ऐसा चक्रव्यूह रचते रहे जिससे की विपक्ष माहौल को देखकर जनता के दबाव में मजबूरीवश केंद्र सरकार के समर्थन में खड़ा रहें। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार,पंजाब के मुख्यमंत्री अंमरिदंर सिंह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बधेल तथा आंध्र प्रदेश, तमिलनाड, तेलगांना, केरल, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाण और राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों में आपस में सहयोग नही रहा। केंद्र सरकार द्वारा स्पष्ट कार्ययोजना न होने के कारण सभी राज्य अपने अपने बचाव में सियासत करने में जुट गये। तमिलनाडू ने आंध्र प्रदेश आने वालो को रोकने के लिए मुख्य मार्ग पर दीवार बना दी। हरियाण ने दिल्ली से आने जाने वालो के लोगों को रोकने के लिए सड़को को बेरीकटिंग के साथ खोदडाला। यही नही कोरोना युद्ध में एक साथ मिलकर लड़ने के बजाय राजनीतिक कारणों से राज्यों ने अपनी सीमाएं ऐसे शील कर दी है जैसे कि दूसरे राज्य से आने वाले देश के नागरिक न होकर विदेशी है। हिन्दुस्तान महान है 130 करोड़ जनता बहुत ही धैर्यवान हैं। मीडिया के माध्यम से राजनीतिक दलों ने समाज को तोड़ने की सियायत को जनता ने नकार दिया है। अभी भी समय है कि राजनीतिक दल सियासत से उठकर कोरोना युद्ध में सहयोग की भावना अपनायें। सत्ता आती-जाती रहेगी लेकिन अगर कोरोना वायरस दुर्भाग्य वश विकराल रूप धारण किया तो इतिहास मोदी हो या सोनिया या किसी भी दल का नेता किसी को माफ नही करेंगा। सहयोग के लिए सबसे बड़ी पहल बड़ा दिल करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करनी होगी और इसमें राज्यों के साथ जनप्रतिनिधियों की सबसे अहम भूमिका हो सकती है। देश हो या राज्य चुने गये सांसद और विधायक पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री उतना भरोसा नही कर रहे है जितना भरोसा नौकरशाहो पर कर रहे हैं।
मजदूरों की घर वापसी कराने में सांसद-विधायक और नेताओं की हो सकती है अहम् भूमिका-
तीसरे चरण में सबसे बड़ी चुनौती पलायन और रोजगार को लेकर है। प्रत्येक सांसद और विधायक से केंद्र और प्रदेश सरकार को यह सूची लेनी चाहिए कि उनके संसदीय व विधानसभा क्षेत्रों के कौन-कौन लोग मजदूर, छात्र, दूसरे राज्यों में फसे है। प्रधानमंत्री को यह जानना चाहिए कि सांसद एवं विधायक तथा नेताओं से बेहतर जानकारी नौकरशाहों को नही होती। नौकरशाह द्वारा सूची आधी अधूरी और त्रुटिपूर्ण होगी। नौकरशाह का सरकारी तरीका गांव के लेखपाल से जानकारी मंगाने का शुरू होता है जिसे जिलाअधिकारी मोहर लगाकर भेज देते है। लेखपाल व कर्मचारी घर बैठे ही मनमाने तरीके से आधी-अधूरी सूची बना देते हैं। राज्यों में फसे मजदूरों और छात्रों व अन्य की सूची राज्यों में विधायक और केंद्र में सांसद उपलब्ध कराते हैं। दोंनों सूचियों का मिला करके डूप्लीकेशी रोकी जा सकती हैं इसमें राजनीतिक दलों के संगठन भी काफी मददगार साबित हो सकते हैं। सही सूची बनाने की जिम्मेदारी मोदी से कम विपक्षी दलों की नही है। कांग्रेस विधानसभावार और लोकसभावार सूची बनाकरके दे सकती है कि कौन-कौन मजदूर, छात्र किस-किस गांव के और किस-किस शहर में फसे हुए हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, बसपा मुखिया मायावती बिहार के विपक्षदल के नेता तेजस्वी यादव पश्चिम बंगाल में भाजपा के नेता, सभी अपने-अपने संगठन के माध्यम से दूसरे राज्यों में फसे मजदूरो व गरीबों की सूची केंद्र व प्रदेश सरकार का दे सकते हैं। अगर सियासत छोड़कर राजनीतिक दलों में सहयोग शुरू हो जाय तो मजदूरो की वास्तविक पहचान हो जाने पर लाने ले जाने की समास्या दूर हो सकती है। लेकिन ऐसा विपक्ष भी नही कर रहा है। विपक्ष नेता भी केवल सरकार के खिलाफ बयानबाजी तक सीमित होकर रह गये हैं। कुछ विपक्ष के नेताओं ने प्राय किया उसे नौकरशाही मुख्यमंत्री तक जानकारी नही पहुंचने दे रही है।


योगी की सकारात्मक पहल-
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दूसरे राज्यों से छात्र एवं मजदूर लाने का बेहतर प्रयास कर रहे हैं। इसमें विपक्ष के नेता भी सहयोग करना चाहते है लेकिन नौकरशाही बाधक बनी हुई हैं।उदाहरण के रूप में पूर्व मंत्री योगेश प्रताप सिंह ने गोण्डा जनपद के करनैलगंज विधानसभा क्षेत्र में रहने वाले मजदूर जो दूसरे राज्यों में काम करने गये थे फसे है उसकी नाम और पता सहित सूची बनवायी है नाम पता सहित सूची को मुख्य सचिव राजेन्द्र तिवारी को भेजा है। सूची में दिल्ली में फसे 199 मजदूर और पंजाब में फसे 153 मजदूरो एवं व्यक्तियों का नाम है। पूर्वमंत्री योगेश प्रताप सिह का यह प्रयास सराहनीय और सरकार के सहयोग का बेहत्तर उदाहरण है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ऐसी पहल अन्य नेताओं से भी करानी चाहिए। विपक्ष के नेता अखिलेश यादव और मायावती भी अपने-अपने संगठन व नेताओं के माध्यम से ऐसी सूची बनाकर सहयोग कर सकते हैं। योगी आदित्यनाथ को भी बड़ा दिल दिखाते हुए भाजपा के सांसदों एवं विधायको के अलावा प्रियंका गांधी अखिलेश यादव और मायावती सहित अन्य दलों से गैर राज्यों में फसे उत्तर प्रदेश के लोगों की सूची उपलब्ध कराने के लिए सहयोग देने की अपील करनी चाहिए। अगर नेता आपस में सहयोग शुरू कर दे तो कोरोना जैसी युद्ध की लड़ाई आसानी से जीती जा सकती है। पूर्व मंत्री योगेश प्रताप सिंह का कहना है कि कोरोना वायरस से एक दहशत का माहौल पैदा हो गया है। गांव में लोग परेशान हैं और अपने-अपने परिवार व बच्चों के फसे हुए जानकारी देने के लिए स्वंय आ रहे है। उनका कहना है कि दूसरे राज्यों में केवल करैनलगंज विधानसभा क्षेत्र के 7523 लोगों फसे होने की सूचना उन्हें मिली है पूरा प्रयास कर रहे है कि उन्हें घरों तक लाने के लिए हर संभव मदद की जाये। इस तरह के पहल संयुक्त रूप से पक्ष व विपक्ष सियासत बन्द करके सहयोग की भावना से करें तो कोरोना वायरस से निपटने की चुनौती बहुत आसान हो जायेगी। अगर नेताओं ने वोट बैंक के नजारियें से हिन्दु, मुस्लिम, जाति, धर्म, क्षेत्रवाद व अन्य तरह से घटिया सियासत करते हुए आपस में असहयोग की नीति अपनायी तो कोरोना लड़ाई जीतना कठिन और चुनौती पूर्ण होगा।

Share via

Get Newsletter

Most Shared

Advertisement