दवा से ज्यादा शराब की दुकाने
गरीब और किसानों के लिए शराब अभिशाप, कानून व्यवस्था के लिए चुनौती
कोरोना युद्ध की लड़ाई कमजोर पड़ी
सोशल डिस्टन्सिंग का मखौल उड़ा
विपक्ष ही नहीं भाजपा समर्थक भी असहमत
राजेन्द्र द्विवेदी
लॉकडाउन में शराब की दुकाने खोलने का निर्णय करके सरकार ने यह साबित कर दिया कि अगर शराब की दुकाने बंद कर दी जाये तो शराबी बिना शराब पिये जिन्दा रह सकते है लेकिन बिना शराब के सरकार नही जिन्दा रह सकती। इतना दुर्भाग्यपूर्ण है कि मात्र राजस्व बढ़ाने के लिए सरकार ने शराब की दुकाने खोल करके लॉकडाउन के उद्देश्य को ही समाप्त नही तो कमजोर जरूर कर दिया हैं। शराब कितना सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक, कानून व्यवस्था तथा कोरोना वायरस के लिए कितना खतरनाक है इसके एक उदाहरण से समझा जा सकता हैं।
उदाहरण के लिए एक व्यक्ति को चार विकल्प दिये गये कि वह दारु पियेगा, दूसरा लूट करेगा, तीसरा रेप करेगा, चौथा हत्या करेंगा। व्यक्ति ने सोचा कि लूट हत्या, रेप, और मर्डर गलत है। इसलिए शराब ही पी लें। लेकिन शराब पीने के बाद व्यक्ति ने शेष तीनों लूट, रेप और हत्या जैसे जघन्य अपराध भी किया। सरकार को समझना चाहिए कि समाज में दारु कितना खतरनाक और घातक हैं। देश में मात्र ढाई लाख करोड़ ही राजस्व होती है। लेकिन इससे कई गुना सामाजिक, आथिर्क, परिवारिक एवं कानून व्यवस्था तथा मौतें होती है जिसकी कोई कीमत नही लगायी जा सकती हैै। शराब से पड़ने वाले दुश्प्रभाव का आंकलन करे तो फायदों से ज्यादा नुकसान अधिक है ऐसा नही है कि सरकार बिना दारु के राजस्व मिले जिन्दा नही रह सकती हैं। इसका उदाहरण बिहार राज्य है। जिसमें शराब पर प्रतिबंध लगाया है। जिसका उसे सामाजिक तौर पर गरीबों को लाभ भी मिल रहा है शराब से होने वाली हिंसा और मौत के आंकड़े लगभग समाप्त हो गया है।
लॉकडाउन में जिस तरह से शराब की दुकाने खोलने का निर्णय किया गया उससे यही लगता है कि शराब ही विकास का सबसे बड़ा आधार है। शराब नही बिकेगा तो विकास नही होगा। जबकि वास्तविकता ऐसी नही है मात्र ढाई लाख करोड़ देश में शराब से राजस्व आय होती है। अगर हम राज्यों की आय देखें तो 39.9 प्रतिशत जीएसटी 21.5 प्रतिशत वैट जो (जिसका अधिकांश हिस्सा डीजल और पेट्रोल से आता है) शराब से 12.7 प्रतिशत प्रापर्टी में लगने वाले टैक्स 11.27 प्रतिशत गाड़ियां आदि से 5.9 प्रतिशत आय होती हैं। अगर हम केवल शराब से आय देखें तो उत्तर प्रदेश 26000 करोड़, महाराष्ट्र 24000 करोड़, कर्नाटक 20000 करोड़, बंगाल 11874 करोड़, पंजाब 6000 करोड़, मध्यप्रदेश 9000 करोड़, दिल्ली 5500 करोड़, राजस्थान 7800 करोड़, तेलगांना 21500 करोड़ रुपये और इसी तरह से अन्य राज्यों से भी शराब बिक्री से आय होती हैं। यहां एक चौकाने वाला आंकड़ा और भी है देश में दवाओं से ज्यादा शराब की दुकाने हैं। दवा की डिस्ट्रीब्यूटर्स की मात्र 10271 जबकि शराब के 72000 डिस्ट्रीब्यूटर्स हैं। दवा की रिटेल दुकाने 102907 है जबकि शराब की 6 लाख से अधिक है। अगर उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर जनपद को देखें तो देशी शराब की 341 विदेश शराब की 221, बियर की 169 तथा मॉडलशॉप की 10 दुकाने हैं। इसी तरह नोएडा में 115 विदेशी, 214 देशी और 129 बियर की दुकाने हैं। शराब की इन दुकाने की संख्या रजिस्ट्रर्ड है इसके अलावा शराब माफिया और अधिकारी और नेता के काकस से बहुत सारी शराब की दुकाने शहरों से लेकर दूर-दराज गांव तक फैली हुई हैं कई ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति ऐसी है कि कई परिवार कच्ची शराब के घंधों से जुड़े हैं।
शराब से होने वाली मौते भी चिन्ता जनक है। शराब से प्रतिदिन 383 मौते होती है अगर सालाना जोड़े तो मौत की संख्या एक लाख चालीस हजार से अधिक हो जाती हैं। शराब पीकर अलग-अलग दुर्घटनाओं में प्रतिदिन 273 मौत होती है। शराब पीने से कैंसर से होने वाली मौते भी प्रतिदिन 82 हैं। शराब से होने वाली यह तो वह मौत है जो आंकड़ो में दर्ज है। ऐसी लाखों लोगों की मौत नकली शराब और अधिक शराब पीने से होती है जिनका लेखा-जोखा सरकार नही रखती। उत्तर प्रदेश में पिछले एक दशक में 27 हजार से अधिक मौते नकली शराब पीने से होती हैं। कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोरोना वायरस से बचाने के लिए दो चरणों में 40 दिन का लॉकडाउन करते है और तीसरा चरण लॉकडाउन जो 4 मई से 17 मई तक लागू किया जाता है इसमें कुछ छूट दी जाती है और इस छूट में सबसे बड़ी प्राथमिकता शराब की दुकान खोलने की होती है। सरकार के इस निर्णय से यह लगता है कि शराबी प्रतिबंध लगने के बाद बिना शराब पिये जिन्दा रह सकते है लेकिन सरकार बिना शराब के बिना नही चल सकती हैं। इसीलिए लॉकडाउन में 40 दिनों तक शराबी शांत पूर्वक बैठे रहे और अगर प्रतिबंध लगा रहता तो शराबियों की आदत में और सुधार हो सकता था लेकिन सरकार ही शराब के बिना जिन्दा नही रह पायी। इसलिए कोरोना जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग सबसे महत्वपूर्ण है और शराब की दुकाने खुलने से लॉकडाउन के नियमों की धज्जियां उड़ गयी। मात्र एक दिन में ही सरकार को हो सकता है कि शराब के बिक्री से 400 से 500 की राजस्व आय हो गयी हो, लेकिन जिस तरह से सोशल डिस्टेसिंग और लॉकडाउन के नियमों का उल्लधंन हुआ है अगर इन शराबियों में एक भी शराबी दुर्भाग्यवश कोरोना से प्रभावित मिला तो कितने को प्रभावित करेगा इसका अंदाजा लगाना कठिन है।
पुलिस पहले से ही कोरोना वायरस की लड़ाई में अवरोध पैदा करने वाले अराजकतत्वों से जुझ रही थी ऐसे में शराब की दुकाने खोलकर कानून व्यवस्था के लिए बहुत बड़ी समस्या भी पैदा कर दी हैं। कोरोना युद्ध में लगे डाक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और सफाई कर्मी व आवश्यक सेवाओं से जुड़े लोग भी सरकार के शराब की दुकान खोलने के निर्णय से काफी आहत है। यही नही शराबियों को छोड़ दे तो समाज का शत-प्रतिशत व्यक्ति सरकार के निर्णय से काफी नाराज है विशेषकर महिलाओं में बहुत ज्यादा नाराजगी है। शराब की दुकाने खोलने के निर्णय पर हमने पुलिस अधिकारी, डाक्टर और प्रधानों तथा जनपद के अधिकारियो एवं महिला संगठनों से बात किया। तो सबके स्वर एक ही जैसे थे कि सरकार के शराब के दुकाने खोलने के निर्णय से सहमत नही है।
केवल नौकरशाही के ही तर्क सरकार के समर्थन में दिखाई दिये। भाजपा की एक वरिष्ठ महिला नेता का कहना था कि अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लॉकडाउन में शराब की दुकाने खोलनी थी तो लॉकडाउन किया क्यों? सरकार के इस निर्णय का विरोधी तो विरोध कर ही रहे है सरकार के समर्थक भी काफी आहत है। प्रधानों की प्रतिक्रिया तो सरकार के आंख खोलने वाली है। हमने गोण्डा, बाराबंकी, महोबा, सोनभद्र, और बहराइच के दस से अधिक प्रधानों से बात किया। सबसे अधिक अच्छी प्रक्रिया प्रधानों की रही। उनका कहना था कि सरकार गरीब मजदूरों को गांव लाने में 40 दिन लगा दिये लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही शराब की दुकाने खोलकर पारिवारिक और सामाजिक विवाद को बढ़ा दिया है। उनका कहना है कि गरीबों के साथ-साथ किसान परिवार भी शराब की दुकान खुलने से बर्बाद होगें।
एक सामाजिक विश्लेषक का कथन चैकाने वाला है उनका कहना हैै कि केंद्र सरकार कोरोना युद्ध की लड़ाई के लिए पर्याप्त संशाधन नही जुटा पायी। लॉकडाउन में बढ़ती संख्या को देखते हुए मजदूरों को भेजने और शराब की दुकाने खोलने का निर्णय लेकर अपनी जिम्मेदारी राज्यों पर डाल दी है। मजदूर के घर पहुंचने से तथा शराब की दुकाने खुलने से अगर दुर्भाग्यवश कोरोना के आंकड़े अधिक बढ़े तो केंद्र सरकार को कहने का अवसर होगा। कि लॉकडाउन का निर्णय उचित था और उसे ही कड़ाई से पालन करना चाहिए। कुल मिलाकर कह सकते है कि शराब की दुकान खुलने का निर्णय उचित नही ठहराया जा सकता।