मोदी का ‘जन से जग तक’ का नारा व्यापक परिवर्तन का संकेत

डॉक्टर अनिल चतुर्वेदी

प्रधानमंत्री ने अपने नये नारे में भारतीय दर्शन का समावेश करते हुए बड़े ही आध्यात्मिक शब्दों में जनता को सन्देश देना चाहा है कि कोरोना महामारी के बाद हर चीज़ परिवर्तित हो जाएगी। जनता को हर समय अपने जीवन और इस भौतिक जगत के हर चीज़ को त्याग करने को तैयार रहना होगा। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द के इस सन्देश को आगे बढ़ाया है कि जीवन में मुक्ति केवल इच्छाओं के त्याग द्वारा ही संभव है। मनुष्य का धर्म केवल कर्म करना है। ऋग्वेद में भी यह कहा गया है कि –

एकम सत्यम, विप्रा बहुधा वदन्ति, ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या

अर्थात इस जगत में ब्रह्म ही सत्य है और सभी परिवर्तित चीज़े झूठ है। कोई कार्य, कोई विचार जो फल उत्पन्न करता है वह कर्म कहलाता है। यही कर्म विधान समस्त जगत पर लागू होता है। हम जो कुछ देखते है, अनुभव करते हैं अथवा जो कुछ कर्म करते है, वह एक ओर तो पूर्व कर्म का फल है और दूसरी ओर यही कारण बन कर अन्य फल उत्पन्न करता है। हमारा जगत अनंत सत्ता का अंश है इसे मनोवैज्ञानिक शब्दावली में देशकाल की सीमा द्वारा बांध दिया गया। अतः नियम केवल सीमा बद्ध जगह में ही संभव है। जब जनता अपने को सत्ता नाम रूप के बंधन में जकड़ लेती है तभी वह नियम के सामने अपना सर झुकाने पर मजबूर हो जाती है। अतएव स्पष्ट है जनता के लिए स्वाधीन इच्छा नाम की कोई चीज़ नहीं होती। जो कुछ जनता जानती है वह सभी चीज़े देशकाल और सत्ता के सांचे में ढल जाती है।

यदि कोई मनुष्य यह कहे कि जिस स्थिति में वह अभी है और उसी में चिर काल तक रहेगा एवं जो अभी उसके पास है वह सर्वदा रहेगा तो समझिए वह जन इतना गिर चूका है कि अपनी वर्तमान अवस्था के आगे कुछ सोच ही नहीं सकता। वह एक जोंक भी भांति अपने स्वार्थ और जीवन से चिपका होता है। सच्चा धर्म वही आरम्भ होता है जहाँ इस जगत का अंत हो जाता है। अतः इन सभी से मुक्ति को प्राप्त करने के लिए एक ही उपाय है कि इस क्षुद्र जीवन का त्याग और क्षुद्र जगत का भी त्याग किया जाए। परन्तु इच्छाओं का त्याग बड़ा ही कठिन माना गया है। इसके लिए दो ही उपाय है

पहला – नेति नेति(यह नहीं – यह नहीं)
दूसरा – इति-इति

पहला मार्ग निवृति का मार्ग है जिसमे नेति नेति कहते हुए सर्वस्व त्याग करना पड़ता है। दूसरा प्रवृति का मांग है जिसमे पृथ्वी के सभी सुखों को भोग कर मनुष्य इति-इति कहते हुए अपना त्याग करते है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरे लॉकडाउन के बीच मुख्यमंत्रियों से बातचीत के समय “जन से जग तक” का जो नारा दिया है यह कोरोना काल के बाद व्यापक सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक बदलाव के संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए। अगले 3 माह में देश आज़ादी का 73 जश्न मनायेगा। इन 73 वर्षों में बहुत उतार चढ़ाव देखे देखे है। कठोर परिस्थितियों से देश को कई बार सामना करना पड़ा है लेकिन जैसी स्थिति आज कोरोना वाइरस ने दुनिया एवं देश के सामने पैदा कर दी है वैसा कभी नहीं था।

प्रधानमंत्री बेहतर राजनेता, शासक, वक्ता के साथ ही साथ आध्यात्मिक ज्ञान के भी धनी है। ऐसे में ‘जन से जग तक’ का नारा अनायास ही नहीं है। इसे कोरोना काल समाप्त होने के बाद व्यापक बदलाव के संकेत के रूप में देखा जाना चाहिये।

Share via

Get Newsletter

Most Shared

Advertisement