योगी सरकार के 23 कैबिनेट मंत्री, 22 राज्यमंत्री और 9 स्वतंत्र प्रभार भी मिलाकर नहीं दिला पाए जिला पंचायत सदस्य की एक तिहाई सीट
मंथन पर मजबूर BJP, सपा को मिली संजीवनी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के रहने वाले उनके करीबी गोरख सिंह जिला पंचायत सदस्य का चुनाव नहीं जीत सके।
पंकज चतुर्वेदी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में सत्ताधारी भाजपा तमाम तैयारियों के साथ मैदान में उतरी थी। इसके लिए 23 कैबिनेट मंत्री, 9 राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 22 राज्यमंत्री और सांसद-विधायकों को हर मोर्च पर लगाया गया था। ऐसे ही समाजवादी पार्टी से लेकर बसपा और कांग्रेस तक ने भी तैयारी की थी। कारण इसे 2022 में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था। अब सभी परिणाम आ चुके हैं। योगी सरकार की इतनी बड़ी मंत्रियों की फौज और बूथ लेवल पर मजबूत संगठन होने के बाद भी उसके मंसूबों पर पानी फिरा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के रहने वाले उनके करीबी गोरख सिंह जिला पंचायत सदस्य का चुनाव नहीं जीत सके। वहीं, समाजवादी पार्टी अपना दुर्ग बचाने में कामयाब रही, साथ ही भाजपा के मजबूत इलाकों में भी भारी पड़ी है। हालांकि, जनता ने दलों को छोड़कर निर्दलीयों पर ज्यादा भरोसा जताया है।
प्रदेश के 75 जिलों में जिला पंचायत सदस्य की कुल 3050 सीटों पर चुनाव हुए हैं। इनमें 690 भाजपा समर्थित उम्मीदवार को ही जीत मिल सकी है। एक तरह से भाजपा महज 23 फीसदी सीटें हासिल कर सकी है। जबकि उसे 77 फीसदी सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा है। प्रदेश की 3050 जिला पंचायत सदस्य सीटों में भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस और आरएलडी के खाते में कुल मिलाकर 1474 सीटें गई। इसके अलावा अन्य 1574 सीटें निर्दलीय व अन्य छोटे दल के उम्मीदवार जीते हैं।
आंकड़ों में समझिए की मध्य यूपी, रुहेलखंड, पश्चिमी यूपी, बृज पूर्वांचल और बुंदेलखंड में क्या स्थिति रही सत्ता दल व अन्य दलों की…
मध्य यूपी: यहां की 800 सीटों में से सपा को 250, भाजपा को 155, बसपा को 30 कांग्रेस को 10 सीटें मिली। इसके अलावा निर्दलीय उम्मीदवार 355 जीते हैं। इसमे छोटे दल भी शामिल हैं।
पूर्वांचल: यहां के 10 शहरों में 527 सीटों में भाजपा को केवल 87 सीट मिली। जबकि सपा 171, बसपा 90 और कांग्रेस 20 सीटें पाई। इसके अलावा अन्य 159 बची सीट सभी निर्दलीयों के खाते में गई।
ब्रज क्षेत्र: 9 जिलों में 530 सीटों में से भाजपा को केवल 51 सीटें मिली। सपा को 64 और बसपा को 37 सीटें मिली हैं। इसके अलावा आरएलडी को 27 और कांग्रेस 16 सीट मिली। 335 पर निर्दलीय व अन्य छोटे दल शामिल हैं।
बुंदेलखंड: 470 सीटों में से भाजपा केवल 39 सीट मिली, सपा 31 और बसपा 31 सीट पाई हैं। इसके अलावा 16 कांग्रेस को मिली 353 सीट निर्दलीय और अन्य छोटे दलों के प्रत्याशियों ने बाजी मारी है।
पश्चिमी यूपी: 12 शहरों में आरएलडी 35 और सपा को 76 वहीं सत्ता रूढ़ दल भाजपा को केवल 62 सीटें मिली हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 460 में 287 निर्दलीय और अन्य छोटे दलों के प्रत्याशी जिला पंचायत सदस्य चुनकर आए।
रुहेलखंड: क्षेत्र की 371 सीटों में से 37 सीटें बीजेपी को मिली। सपा को 33, बसपा को 18 और कांग्रेस को 15 सीट मिली हैं। 268 सीटों में निर्दलीय प्रत्याशियों ने दावेदारी की है।
सेंट्रल यूपी में सपा से पिछड़ी बीजेपी, मंत्रियों के करीबी हारे चुनाव
अवध क्षेत्र के साथ ही मध्य यूपी के अयोध्या, लखनऊ, गोंडा, बस्ती अमेठी और कानपुर, इटावा, मैनपुरी, उरई आदि में आए नतीजे बीजेपी के लिए झटका माने जा रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी के प्रतिनिधि राजेश चौधरी जिला पंचायत के चुनाव में चौथे स्थान पर आए हैं। बस्ती में भाजपा को 45 में 8 सीटें मिली हैं।
कानपुर में दो मंत्री सतीश महाना और नीलिमा कटियार जिला पंचायत सदस्यों को जिताने में कामयाब नहीं हो पाईं। यहां भी सपा आगे रही। सपा ने 285 सीटें और भाजपा ने 155 सीटें जीतने का दावा किया है।लखनऊ की 25 सीटों में से 10 पर सपा ने कब्जे का दावा किया है जबकि बीजेपी को तीन और बसपा को पांच सीटें मिली हैं। गोंडा जैसे जिले में जहां भाजपा से सांसद कीर्तिवर्धन सिंह हैं और सातों विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है, वहां पर भी सपा ने सबसे ज्यादा 30 और भाजपा ने 17 सीटें जीतने का दावा किया है।
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह तक कानपुर देहात नहीं जीता पाए। यहां पर भी सपा व निर्दलीयों ने बाजी मारी और भाजपा को केवल 4 सीटें मिली निर्दलीय 11 और सपा 11 पर रही। बसपा 6 सीटें जीत सकी। इसी तरह केशव प्रसाद मौर्य कौशांबी और प्रयागराज में भी अपना भाजपा को नहीं जीता पाए यहां पर निर्दलीय और समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की।
राज्य मंत्री जयप्रकाश निषाद के बेटे व बहू निर्विरोध बने BDC
कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही के पुत्र सुब्रत शाही पथरदेवा ब्लॉक के प्रमुख थे। इस बार भी यहां का प्रमुख पद अनारक्षित हुआ है। ऐसे में शाही के पुत्र सुब्रत शाही एवं पुत्र वधू पल्लवी शाही दोनों निर्विरोध बीडीसी चुने गए हैं। सुब्रत शाही इस बार भी पथरदेवा ब्लॉक प्रमुख पद के प्रबल दावेदार हैं। राज्य मंत्री जय प्रकाश निषाद के पुत्र विश्वविजय निषाद एवं पुत्रवधु अनीता भी निर्विरोध बीडीसी चुनी गयी हैं। विश्वविजय निषाद अभी तक अपने गांव के प्रधान थे और इस बार उनकी नजर रुद्रपुर ब्लाक प्रमुख पद पर है।
मऊ में सपा- बसपा और भाजपा पर निर्दलीय भारी पड़े
अनिल राजभर कैबिनेट मंत्री व दारा सिंह चौहान कैबिनेट मंत्री के क्षेत्र मऊ में सपा- बसपा और भाजपा पर निर्दलीय भारी पड़ गए हैं। मायावती की पार्टी को 7 सीटें मिली हैं तो सपा को दो भाजपा को दो, सबसे ज्यादा निर्दलीय मऊ जिले में जीत कर आए हैं। मंत्री का दावा है कि यह सभी सदस्य भाजपा के समर्थन में जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाएंगे। क्षेत्र में पूर्व आईएएस और एमएलसी एके शर्मा भी पूरी ताकत पार्टी के प्रत्याशियों के लिए लगा रखी थी। उत्तर प्रदेश कैबिनेट के मंत्री रमापति शास्त्री के भतीजे भी जिला पंचायत के चुनाव हार गए। बृजेश पाठक लखनऊ शहर के मध्य से विधायक हैं। उनको उन्नाव में जिला पंचायत के लिए लगाया गया था जहां पर निर्दलीय और सपा अपने ज्यादा सदस्य जीता पाई है।
मथुरा से आने वाले दो मंत्री श्रीकांत शर्मा व लक्ष्मी नारायण चौधरी क्षेत्र में भाजपा को बड़ी शिकस्त मिली
मथुरा से आने वाले दो मंत्री श्रीकांत शर्मा व लक्ष्मी नारायण चौधरी क्षेत्र में भाजपा को बड़ी शिकस्त मिली है। यहां पर भी निर्दलीय और बसपा के समर्थक जीते हैं। मथुरा में 33 जिला पंचायत सीटों पर बसपा-13, भाजपा – 8, आरएलडी- 8, सपा -1, अन्य -3 ने जीत की दर्ज की है। प्रतापगढ़ जिले से उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह मोती सिंह अपनी पत्नी को चुनाव नहीं जीत पाए। मंत्री की पत्नी का टिकट पार्टी ने काट दिया था उसके बावजूद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़वाया था। इसके अलावा जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह जिला पंचायत में कुछ खास प्रदर्शन अपने क्षेत्र में नहीं कर पाए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कोटे से गन्ना मंत्री बने सुरेश राणा, भूपेंद्र चौधरी समेत आधा दर्जन मंत्रियों की मेहनत पर किसान आंदोलन ने पानी फेर दिया।
किसान आंदोलन और कोरोना ने बिगाड़ा खेल
बीजेपी के लिए पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन ने तो पूर्वांचल में कोरोना लहर ने खेल बिगाड़ने का काम किया है। मेरठ से लेकर शामली, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, गाजियाबाद, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, हाथरस, अलीगढ़, मथुरा में बीजेपी को करारी मात मिली है। पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन आरएलडी के लिए संजीवनी साबित हुआ है और बीजेपी के लिए सियासी तौर पर बड़ा झटका है। किसान आंदोलन का असर दिखा, जिसके चलते राष्ट्रीय लोकदल ने 35 सीटें मिलने का दावा किया है। सपा के साथ उसके गठबंधन होने के चलते सपा को 76 सीटें मिली हैं।
पंचायत चुनाव के बाद प्रदेशों केंद्रीय टीम करेगी मंथन
पंचायत चुनाव के नतीजों ने बीजेपी को मंथन करने के लिए मजबूर कर दिया हैं, क्योंकि 25 फीसदी सीटें भी उसके हिस्से में नहीं आई हैं। सत्ता में रहते ही बीजेपी का 75 फीसदी से ज्यादा सीटें हार जाना निश्चित तौर पर पार्टी के लिए चिंता बढ़ाने वाला है। ऐसे में तब जब सूबे में आठ महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं।