राजनैतिक दलों का यथार्थ।

राजनैतिक दल के कार्यकर्ता समझते है कि यदि उद्गम स्वच्छ है तो डुबकी लगाने में क्या नुक़सान ? यथार्थ यह है कि एक डुबकी लगाई नहीं कि आपके विचार प्रदूषित हुवे और अगर बहुत हाथ-पाँव मारे तो मगरमच्छ का निवाला बने।नतीजतन राजनैतिक दल,सिद्धान्तवादी कार्यकर्ताओं के समूह के दल ,अनियंत्रित,अवसरवादी तथा स्वार्थी जनों के गिरोह बन कर रह गये हैं।

प्रो. एच सी पांडे

हिमालय की गोद में स्थित गोमुख से निकलती गंगा,तथा,उत्तरोत्तर अपने तटों पर बसे हुवे नगरों,ग्रामों से कूड़ा-कचरा ढोकर,मलिन होती हुई गंगा,अंतत:,बंगाल की खाड़ी में,महासागर में समाती है।गंगांजल,चाहे गोमुख का हो अथवा गंगा-सागर का, बराबर पवित्र माना जाता है।यही हाल राजनैतिक विचारधारा का है। जाने-माने सिद्धान्तों के गोमुख से निकलते ही विचारधारा को,राजनैतिक दल अपनी सुविधा अनुसार,दूषित करते रहते हैं,तथा,कुछ ही समय बाद वही वैचारिक जलधारा,पूर्णतया प्रदूषित ही नहीं हो जाती है,वरन उसमें छोटे व बड़े वंशवादी मगरमच्छ,भी घर कर लेते हैं।ऐसी परिस्थिति में नहाना तो दूर रहा पास जाना तक जोखिम भरा है।अब देखिये भारतीय सोच की महानता। राजनैतिक दल के कार्यकर्ता समझते है कि यदि उद्गम स्वच्छ है तो डुबकी लगाने में क्या नुक़सान ? यथार्थ यह है कि एक डुबकी लगाई नहीं कि आपके विचार प्रदूषित हुवे और अगर बहुत हाथ-पाँव मारे तो मगरमच्छ का निवाला बने।नतीजतन राजनैतिक दल,सिद्धान्तवादी कार्यकर्ताओं के समूह के बदले,अनियंत्रित,अवसरवादी तथा स्वार्थी जनों के गिरोह बन कर रह गये हैं।
कांग्रेस पार्टी के गांधीवाद का मतलब,अब सत्य,अहिंसा तथा धर्मनिरपेक्षता जैसे सिद्धान्तों से हटकर,केवल गांधी परिवार को सत्ता में क़ाबिज़ रखना ही रह गया है।कॉंग्रेसजन,ढाई गज की धोती का स्थान पर जीन्स पहन रहे हैं तथा गॉंधी रचित ‘सत्य के प्रयोग’ का पठन-पाठन त्याग कर ‘झूठ के उपयोग’ पर ग्रन्थ लिखने में लगे हैं।चुनाव के समय,सुविधा अनुसार,टोपी,जनेऊ अथवा क्रास धारण कर के धर्म की सापेक्षता का सिद्धान्त अपनाते हैं।
समाजवादी पार्टी ने साइकिल पथ,अंतराष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम,पाँच-सितारा,तरणताल युक्त,कंवेंशन सेंटर, तथा,समाजवाद द्वार को बनाकर लोहिया समाजवाद को परिभाषित किया है।यह बात और है कि पथ पर साइकिल नज़र नहीं आती तथा समाजवाद द्वार से,प्रदेश में क्या आया कहना मुश्किल है,पर,इसमें शक नहीं कि गुसलखाने की टोंटी सहित,बचा-खुचा समाजवाद भी इस दरवाज़े से बाहर चला गया है।भारतीय जनता पार्टी का सांस्क्रतिक नव-चेतनावाद,सांस्क्रतिक उन्माद को समर्पित होता लग रहा है।देश के इतिहास को मानवजाति के उत्थान,पतन के परिपेक्ष में समझना आवश्यक है,अन्यथा,इस विविधता के देश में सजग,सौहार्दपूर्ण तथा संपन्न समाज निर्माण संभव नहीं हो सकेगा।आज के युग में आनेवाले कल का महत्व है तथा गये हुवे कल की ऐतिहासिक घटनाओं,क़िस्से-कहानियों में से,केवल यही याद रखना है कि मानव नीच व महान दोनों ही हो सकता है।यह समझना ज़रूरी है कि समयाचीन परंपरायें,आस्थायें तथा विश्वास,कालांतर में,ज्ञान के प्रकाश में न देखने के कारण मानव विकास में बाधक बन जाते हैं।
साम्यवादी दलों में परस्पर साम्य तक नहीं है।रक्तहीन क्रान्ति हो,अथवा,रक्तरंजित क्रान्ति इस पर,अंतहीन,वाद-विवाद चल रहा है।ग्राम विकास पर सम्मेलन,सर्वसुविधा संपन्न,महानगरों में किये जाते हैं तथा गाँवों के जलसंकट पर,सरकार को,बिसलरी की ठंडी बोतल से,पानी पी- पी कर कोसा जाता है। माओ-त्से-तुंग,भूखे-प्यासे दल के साथ,पहाड़ों,नदियों व जंगलों के बीच दो हज़ार मील तक चला तब जाकर चीन की क्रान्ति का सूत्रपात हो सका।भारत में साम्यवादी नेता,जे०एन०यू० परिसर से शास्त्री भवन तक,दो-तीन मील चल कर अपनी पीठ ठोकने लगते है,और कहते हैं कि क्रान्ति हो गई,जब कि कहना चाहिये कि क्रान्ति गई,क्योंकि ऐसे छद्म प्रदर्शनों से आनेवाली क्रान्ति तक मन बदल लेगी और लौट जायेगी।
राजनैतिक दलों को आदर्शवाद तथा सिद्धान्तों से कोई सरोकार नहीं रह गया है।बस एक ही लक्ष है,येन केन प्रकारेण सत्ता पर क़ाबिज़ होना।आज के दिन दलों के नेता,कार्यकर्ताऔं को,केवल,दंगाइयों की भीड़ के रूप में देखते हैं और इस्तेमाल करते हैं।राजनैतिक कार्यकर्ता को रचनात्मक कार्य-कलाप में शिक्षित करने के बदले हर क्षेत्र में विध्वंसकारी गतिविधियों में प्रशिक्षित किया जाता है।केवल एक मूल-मंत्र है ;अगर अपनी पार्टी सत्ता में हैं,तो किसी का भी,कोई भी,विरोध ग़लत है,और,अगर नहीं हैं,तो हर विरोध सही है,तथा,उत्पात करना ही राष्ट्रधर्म है।अधिकांश कार्यकर्ताओं की राजनीति की समझ बस ज़िदांबाद और मुर्दाबाद के नारों का शोर करने तक,तथा,कार्यक्षमता,पत्थरबाजी व आगज़नी तक ही सीमित रहती है।ऐसे हालात मे किसी भी पार्टी के कार्यकर्ताओं से देश व समाज के पुनर्निर्माण में,सकारात्मक सहभागिता,की उम्मीद रखना बेमानी है।एक ख़तरनाक बात और है।सत्ता में रहने के लिये अथवा सत्ता में आने के लिये सारे राजनैतिक दल छोटे से छोटे असंतोष या ग़लतफ़हमी को पूरी ताक़त से उछालते हैं जिस से अफ़रा-तफ़री में उनका काम बन जाये चाहे देश को कुछ भी हो जाये।आज के राजनेता का हुनर बस इतना है,राहत इंदौरी के शब्दों मे,
“एक चिंगारी नज़र आई थी,बस्ती में उसे,
वो अलग हट गया,आँधी को इशारा करके।”
देश को आग में जला कर रोशनी तो बहुत होगी,पर उसे देखेगा कौन?
सरकारें आयी,सरकारें गई पर शासकों के ठाठ-बाट अंग्रेज़ शासन से दो क़दम आगे हैं।

(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)

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