बेचारी शर्म

संसद के भीतर और बाहर,विपक्ष,अटका हुवा पहिया बना हुवा है।विपक्ष,यह नहीं समझ रहा है,कि उसका कार्य,प्रगति को रोकना नहीं वरन उसे सही दिशा देना है।

प्रो. एच सी पांडे

विकास की ओर बढ़ता हुवा जनतांत्रिक देश।विशाल जनसंख्या की विशाल समस्यायें,आर्थिक,सामाजिक,धार्मिक और न जाने क्या क्या।पर समस्याओं की समस्या है,एक रचनात्मक विपक्ष का नितान्त अभाव।सफल जनतंत्र की गाड़ी,पक्ष और विपक्ष के दो पहियों पर चलती है।यदि एक पहिया अटक जाय तो,दूसरे पहिये के कितना ही ज़ोर लगाने पर भी,गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती।अधिक से अधिक,गाड़ी वहीं पर,अटके हुवे पहिया-केंद्रित,चक्कर लगा सकती है।पिछले ७० वर्षों में,कुछ अपवाद के साथ,संसद के भीतर और बाहर,विपक्ष,अटका हुवा पहिया बना हुवा है।विपक्ष,यह नहीं समझ रहा है,कि उसका कार्य,प्रगति को रोकना नहीं वरन उसे सही दिशा देना है।यदि सरकार की नीतियाँ सही हैं तो उन्हें गति देने,और,यदि ग़लत हैं तो उनको सही ओर मोड़ना,विपक्ष का संसदीय कर्तव्य है।हर राजनैतिक दल,हर समय,सत्तासीन नहीं रहता।कभी पक्ष,तथा,कभी विपक्ष,यही संसदीय जनतंत्र की वास्तविकता है,जिसे आत्मसात करना आवश्यक है। खेल के मैदान में भी,हमेशा बल्लेबाज़ी नहीं मिलती,क्षेत्र-रक्षण भी बराबर करना पड़ता है और खेल चलता रहता है।देश हर समय रहेगा,तथा,सरकार को सदैव चलते रहना है।
यह चिंतनीय है कि संसद के वाद-विवाद मे,उत्तरोत्तर,रोशनी कम और गर्मी ज़्यादा हो रही है।हत्या और आगज़नी छोड़ कर, सभी असंसदीय आचरण किये जा चुके हैं।अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर बदतमीज़ी का ज़ोर,और,झूठ का शोर,किया जा रहा हैं।अशिष्ट भाषा बुद्धिहीनता की परिचायक है,परंतु झूठ,सरासर दुष्टता दर्शाती है।झूठ,विनाशकारी चिंगारी के समान है,जो अफ़वाह की हवा मिलने पर,विनाशकारी ज्वाला बन सकती है।
जब स्पष्टतया,तथ्य विपरीत हों,तथा,सारी चालें नाकाम हों,तब आज के राजनेता,सरासर झूठ के सहारे कामयाब होने की पुरज़ोर कोशिश करते हैं।देश का आम-जन सरल है अत: आसानी से भटकाया जा सकता है।जनता दुष्ट नहीं है,पर जल्दी भड़क जाती है।पुरातन देश होने के कारण,हजारों वर्ष के अंतराल में उत्पन्न हुवी सभी,सही-ग़लत धारणाएँ,रीति-रिवाज,कुंठायें इत्यादि,अचेतन जन-मानस पर आज भी हावी हैं।देश की विविधतायें इसकी ताक़त और कमज़ोरी दोनों है।अनगिनत भिन्नताओं से बुनी हुई चादर में एक टांके के ढीले होने से सारी बुनाई खुलने का संकट आ जाता है।
आज के राजनेता की सोच उसकी अपनी नाक,अगर बची हो तो,तक ही सीमित है।अपना स्वार्थ तथा अपनी पार्टी का स्वार्थ सर्वोपरि है।अर्थ-अनर्थ,कुछ भी हो जाये,समाज व देश को कितना ही महँगा पड़े,अपना स्वार्थ सिद्ध होना चाहिये।सत्य,अहिंसा,नैतिकता आदि केवल शब्द हैं,भाषणों के आभूषण हैं, जनता को रुझाने के लिये,जिनका,राजनेता के निजी विश्वास,तथा,कार्य-कलाप से,दूर-दूर तक का कोई नाता नहीं है।आज की राजनीति की असलियत,बस इतनी सी है,अख़्तर साहेब माफ़ करेंगे,
सियासत क्या है,सियासत का फ़न क्या है,
ज़रा सी बात पर,लफ़्ज़ों से आग लगा दी जाय।
देख लीजिये सियासतदान की होशियारी,दियासलाई तक का ख़र्च नहीं उठाना पड़ रहा है।देश का दुर्भाग्य है कि आज राजनैतिक दल,सत्ता की भूख में,समाज में अस्थिरता फैलाने से भी नहीं चूकते।दंगे-फ़साद होते नहीं हैं,कराये जाते हैं।हर उपद्रव के पीछे,किसी न किसी स्तर पर,राजनैतिक दल अथवा किसी बड़े-छोटे नेता का स्वार्थ छिपा रहता है।मुहल्ले के आपसी झगड़ों की चिनगारी में झूठ का घी डाल कर और अफ़वाह के झोंके दे कर,उसे देशव्यापी आग में बदलना आज के राजनेताऔं के बांये हाथ का खेल है।बदतमीज बोल,कुत्ते के भौंकने की तरह,नज़रअंदाज़ किये जा सकते हैं पर झूठे बोल,पागल कुत्ते के काटने के समान प्रक्रिया हैं,जिसे नज़रअंदाज़ करना अराजकता की रेबीज़ को बुलावा देना है।झूठे वक्तव्यों से देश का गंभीरतम नुक़सान बरस-दर-बरस होता आ रहा है।हर विपक्ष,अपने अल्पकालिक राजनैतिक लाभ के लिये,झूट की किसी भी हद तक जाता रहा है चाहे उस से देश के विकास,समाज सुधार,तथा,शांति व्यवस्था की कितनी भी दीर्घकालिक हानि क्यों न हो।पक्ष हो या विपक्ष,स्वस्थ राजनीति में झूठ का कोई स्थान नहीं है।संसद भवन मे झूठ बोलने से,संसदीय शासन प्रणाली अर्थहीन हो जाती है तथा जनता का गणतंत्र में विश्वास उठने लगता है।अब लगने लगा है कि हमारे राजनेताऔं ने गॉंधी जी की मूर्ति,संसद भवन के बाहर,शायद यह सोच कर लगाई है कि माननीय सांसद,सत्य को महात्मा की सुरक्षा में छोड़ कर निश्चिन्ता से भवन में प्रवेश कर सकें,और,निसंकोच,तथ्यहीन,अर्थहीन भाषण,छाती ठोक के,दे सकें।
आजकल संसद के शोरगुल और उठापटक में,बस इतना ही साफ सुनाई देता है,शर्म करो,शर्म करो।अब शर्म कौन करेगा,आप या मैं? शायद यह भी संभव नहीं है।शर्म तो,शर्मा कर,देश की राजनीति से कब की बाहर जा चुकी है।
(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)

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