प्रशासन,संविधान के तहत बनाये नियमों परिनियमों की सीमाओं में रह कर प्राय: सभी कुछ कर सकता है।अधिकारी का कार्य नियम क़ानून के तहत जन-समस्याओं का समाधान निकालना है न कि यह बतलाना कि कार्य क्यों नहीं हो सकता।नियम-परिनियम समस्या का न्यायोचित हल निकालने के लिये बने हैं न कि समस्या उलझाने के लिये।
डॉक्टर यच सी पांडे
“हमको गिला नहीं अंधेरों से,
सारी साज़िश तो रोशनी की है।”
सब कुछ जानते हुवे भी अनजान रहना,स्वयं कुछ भी नहीं करने पर दूसरे को भी कुछ नहीं करने देना,तथा,सब कुछ करने की सामर्थ्य रहने पर भी कुछ नहीं करना, ऐसी वास्तविकता होने पर,देश की वर्तमान परिस्थिति के लिये कौन गुनाहगार है,यह सवाल पूछने लायक भी नहीं है। विस्तार से परिस्थिति का विश्लेषण करने से पहले,सरसरी तौर पर,भारत और चीन की विकास यात्रा पर नज़र डालना ज़रूरी है।
एक तरफ़ वर्ष १९४७ में,भारत,कई दशकों में,विभिन्न विचारधाराओं पर आधारित आंदोलन-श्रृंखला,जो अधिकतर अहिंसक रही, के बल पर स्वाधीन हुआ तो दूसरी तरफ़ १९४९ में,चीन,पूर्णतया एक ही विचारधारा पर आधारित,हिंसक सशस्त्र क्रांति,के बूते पर आज़ाद हुआ।प्राय: ५० वर्ष बीतने के उपरांत,२१ वीं सदी में प्रवेश करने के पश्चात,चीन कहॉं है और भारत कहॉं,यह पूछना ग़ैरज़रूरी है।इसका उत्तर सर्वविदित है।
पुरातन भारत भू-खंड पर प्रकृति की महती कृपा रही।तरह,तरह,की आबो-हवा,ऊँचे पर्वत,लंबी नदियाँ,विसतृत समुद्रतट,सघन वन-क्षेत्र,नाना प्रकार जीव-जंतु,हर प्रकार के खनिज ,सभी कुछ वर्तमान है पर फिर भी संभावित विकास नहीं हो सका है।इसमें दो राय नहीं कि चीन की प्रगति का एक कारण दमनात्मक अनुशासन रहा है परंतु उस से भी बड़ा कारण रहा है,वहॉं के हर वर्ग का,सामर्थ्यानुसार,देश के,विकास कार्यक्रम में सहयोग तथा सहभागिता।
आज के युग में,सारी गति-विधियाँ आपस में प्रत्यक्ष,अथवा,परोक्ष रूप में जुड़ी हुवी हैं,संगठन मूल-मंत्र है।संगठित इकाई में,हर व्यक्ति को निर्धारित सीमा में,निर्धारित विधि से, निर्धारित कार्य करना होता है।संगठन किसी भी विचार-धारा पर आधारित हो,परंतु नियमों,परिनियमों का अनुपालन अनिवार्य है।रोग-ग्रस्त शरीर का उपचार चाहे किसी भी विधि से हो,कोई भी करे,वैद्य,हकीम,अथवा डाक्टर,परंतु,मस्तिष्क अपना,ह्रदय अपना,यकृत अपना,अमाशय अपना,अर्थात हर अंग,अपना-अपना,कार्य करेगा तभी उपचार सफल होगा।हमारी असफलता का कारण है,हमारी मानसिकता। कोई भी शादी,कोई भी धर्म-गुरु करवाये,हर बराती दूल्हा बनना चाहता है।
भारत का बौद्धिक वर्ग देश की वास्तविक दशा जानते हुवे भी प्राय: निष्क्रिय रहा है।हॉं,आर्थिक,सामाजिक व राजनैतिक सुधारों की आवश्यकताओं पर भाषण,अभिभाषण,तथा गोष्ठियाँ अवश्य आयोजित होती रही हैं परंतु
इन सब से उपजी अंनुशंसाऔं की,देश में अनुपालन की स्थिति पर,उदासीन ही नहीं रहे,वरन,अपने सीमित कार्य- क्षेत्र में भी उनको लागू करने में तक में रुचि नहीं दिखाई।दुर्भाग्य है कि यह वर्ग ख़राबियों गिनाने में अधिक,तथा,उनके सुधार सुझाने में कम ध्यान देता है।इस वर्ग का,सुधार-कार्यक्रमो में सक्रिय भाग लेना प्राय नगण्य रहा है,परंतु प्रचार-प्रसार सर्वव्यापी है।
सत्ताहीन राजनैतिक दल,जो भी विपक्ष में रहे हैं,उनका केवल यही प्रयत्न रहा है,कि जो कार्य वे सत्ता में रह कर,न समझ सके,न कर सके,उसे सत्तासीन दल की सरकार को भी,नहीं करने दिया जाय।जब उनकी सरकार समस्या नहीं समझ सकी,तो यह सरकार कैसे समझ सकती है।आख़िरकार जनता क्या सोचेगी,क्या उनकी सरकार नासमझ थी?यह तो इज़्ज़त बचाने का सवाल है।योजना देशहित में सही है या नहीं इस से कोई सरोकार नहीं।यह जानते हुवे भी,कि जनतांत्रिक व्यवस्था की गाड़ी दो घोड़ों से चलती है,पक्ष और विपक्ष,तथा,दोनों घोड़ों का एक साथ,आगे की ओर ज़ोर लगाना ज़रूरी है तभी गाड़ी रफ़्तार पकड़ेगी,विपक्ष,सदैव,बिदके घोड़े की तरह उछल-कूद ही मचाता रहा है।गाड़ी,जस की तस,खड़ी है,प्रगति कहॉं से होगी।ऐसा विरोध लगभग सभी संस्थाओं में,सभी स्तर पर,होता रहा है। पंचों का फ़ैसला सर -माथे पर,मगर नाली तो यहीं निकलेगी!ग्राम-सभा से लेकर संसद तक यही हाल है।
प्रशासन,संविधान के तहत बनाये नियमों परिनियमों की सीमाओं में रह कर प्राय: सभी कुछ कर सकता है।अधिकारी का कार्य नियम क़ानून के तहत जन-समस्याओं का समाधान निकालना है न कि यह बतलाना कि कार्य क्यों नहीं हो सकता।नियम-परिनियम समस्या का न्यायोचित हल निकालने के लिये बने हैं न कि समस्या उलझाने के लिये।बिरले प्रशासक ही समस्या के निदान का प्रयास करते है,अधिकांश अधिकारी समस्या को वहीं दफ़ना देते हैं,अथवा,संचिका-व्यूह में आजन्म विहार को छोड़ देते हैं।कारण कुछ भी हो सकता है,अहम,स्वार्थ-वश राजनैतिक दबाव में झुकना,अथवा,समस्या को समझने,तथा,सुलझाने की मेहनत बचाना।
देश का विचित्र दुर्भाग्य है,सब कुछ है,सब कुछ हो सकता है,सब को समझ है,पर होता नहीं है।अजब हाल है,रोशनी है पर अंधेरा ही दिखाई देता है।