खत्म करें संसद का गतिरोध

लेकिन यह भी एक विडंबना यह है कि विपक्ष हमेशा उन मुद्दों पर तत्काल बहस की मांग करता है जिनसे उसे राजनीतिक लाभ हो सकता है और सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा सकता हो। सरकारें भी विपक्ष के मुद्दों पर तत्काल बहस की अनुमति देने से बचती हैं और इस तरह से लंबे समय तक के लिए संसद की कार्यवाही बाधित रहने का रास्ता बन जाता है।

वी एस पाण्डेय

मानसून सत्रा की शुरुआत से विपक्षी दलों ने दोनों सदनों के कामकाज को ठप कर रखा है और विपक्ष के सदस्यों को केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानून और कथित पेगासस जासूसी कांड को लेकर पेपर फेंकते हुये, नारेबाजी करते हुये और वेल में आकर हंगामा करते हुये देखा जा सकता है। सरकार ने विपक्ष के इस असंसदीय व्यवहार की निंदा की है और विपक्षी दलों पर सदन के पटल पर बहस से दूर भागने और लगभग 100 करोड़ के सार्वजनिक धन को बर्बाद करने का आरोप लगाया है। वहीं विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार पेगासस कांड की संयुक्त संसदीय समिति द्वारा जांच कराने से कतरा रही है।

यह पहली बार नहीं है जब विपक्षी दलों ने कई हफ्तों तक सुचारू रूप से चलने वाली संसद की कार्यवाही को बाधित किया है। पिछले कई दशकों के दौरान हमारी संसद ने बहुत बार ऐसे मौके देखे हैं जब किसी न किसी बहाने से लगातार कई हफ्तों तक कार्यवाही में व्यवधान डालकर कामकाज ठप किया गया। हमारे संसदीय लोकतंत्रा में हमने आज सत्ता में बैठे लोगों को कई दशकों तक विपक्षी बेंचों पर और आज विपक्ष में बैठे लोगों को लंबे समय तक ट्रेजरी बेंच पर बैठे देखा है। बोफोर्स तोप खरीद घोटाला, 2 जी घोटाला, कोयला घोटाला, सुखोई खरीद घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला जैसे कुछ मुद्दों पर कई बार संसद की कार्यवाही को कई हफ्तों तक ठप रखा गया। जिससे जनता के सैकड़ों करोड़ रुपये की बर्बादी हुई।
स्वाभाविक रूप से सत्ताधारी दल संसद के कामकाज में रुकावट नहीं चाहता जबकि विपक्षी दल सरकार को नीचा दिखाने के लिए एक संवैधानिक तरीके से संसद को ठप करने का प्रयास करते हैं ताकि उनकी बात सुनी जाए और उनकी उपेक्षा न की जाए।
यदि कोई हमारे देश में संसद में इन रुकावटों के कारणों का विश्लेषण करता है तो यही देखा जाएगा कि संसद को लंबी अवधि के लिए ठप करने का प्रमुख कारण उस वक्त की सरकार द्वारा किसी मुद्दे पर तत्काल चर्चा या जांच की मांग पर ध्यान देने से इनकार करना है, जिसे विपक्ष महत्वपूर्ण समझता है। सवाल यह है कि यदि सरकार यदि सही है तो फिर आखिर क्यों बहस या जांच का आदेश देने से कतरा रही है। निश्चित रूप से यह किसी भी सरकार के सही नहीं है कि वह खुद को नीचा दिखाने का कोई मौका विपक्षी को दे। आखिरकार हमारे देश के संविधान में विपक्ष की अवधारणा को मान्यता दी गयी है और उसे सरकार की गलतियों को खोजने और शासन की कमियों को उजागर करने का अधिकार भी प्रदान किया गया है। ताकि जनता को पता चल सके कि आज की सरकार कैसे काम कर रही है। सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह हर उस मुद्दे पर सफाई और जवाब दे, जिस पर विपक्ष को संदेह हो अथवा सवाल पूछे।

लेकिन यह भी एक विडंबना यह है कि विपक्ष हमेशा उन मुद्दों पर तत्काल बहस की मांग करता है जिनसे उसे राजनीतिक लाभ हो सकता है और सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा सकता हो। सरकारें भी विपक्ष के मुद्दों पर तत्काल बहस की अनुमति देने से बचती हैं और इस तरह से लंबे समय तक के लिए संसद की कार्यवाही बाधित रहने का रास्ता बन जाता है। यह सभी शासन व्यवस्थाओं का चरित्रा रहा है, चाहे वह कोई भी रहा हो। पिछले कई दशकों से चाहे वामपंथी हो, दक्षिणपंथी हो या सेकुलर, सभी पार्टियों की सरकारों ने उन मुद्दों पर प्रतिक्रिया देने में एक समान तरीके से व्यवहार किया, जहां पर वे प्रथम दृष्टया खुद को पाक-साफ साबित करने में विफल रहीं हैं। यदि किसी सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है तो उसके लिए किसी भी मुद्दे से निपटना, किसी भी प्रश्न का उत्तर देना या बहस करना बहुत आसान है। सरकार हो या कोई संगठन सभी के लिए यही सच है।
यदि वे कानून के अनुसार कार्य करते हैं, केवल जनहित को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेते हैं और अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करते हैं तो वे विपक्षी दलों द्वारा पेश की गई किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। यह केवल एक ही बात पर निर्भर करता है कि क्या सरकार नैतिक तरीके से काम कर रही है और क्या उनके कार्यों से बड़े राष्ट्रीय और सार्वजनिक हितों की पूर्ति हो रही है। हमारे संविधान और कानूनों की यही मांग है कि सरकार के सभी अंग ईमानदारी से काम करें और लोगों के हित को सर्वाेपरि रखें।
हर सरकार को इन परीक्षाओं को पास करना होता है, चाहे उनकी पसंद या नापसंद कुछ भी हो। लोकतंत्रा मांग करता है कि कानून का शासन कायम रहे और लोग और उनकी सोच लगातार इसी दिशा में आगे बढ़ते रहें। हमारे देश में हमारे कानून कहीं भी अभद्र व्यवहार की अनुमति नहीं देते हैं, इसलिए इससे हर जगह बचने की जरूरत है।
लंबे संघर्ष और बड़े बलिदान के बाद हमने अपना लोकतंत्रा हासिल किया है। हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन का बलिदान दिया ताकि हम पूर्ण लोकतांत्रिक अधिकारों के साथ अपनी स्वतंत्राता का आनंद उठा सकें। हमारे पूर्वजों के साहस और उनकी दूरदर्शिता ने ही हमारे देश के प्रत्येक नागरिक को एक बार में ही राजनीतिक समानता दी, जबकि अधिकांश अन्य लोकतांत्रिक देशों में लोगों को सार्वभौमिक मताधिकार हासिल करने के लिए सदियों तक संघर्ष करना पड़ा था।
आइए इन लाभों को छोटे-छोटे राजनीतिक झगड़ों के लिए न खोएं और हमारी संसद को सुचारू रूप से चलने दें। सरकार और विपक्ष दोनों को अपने राष्ट्र के व्यापक हित में इस गतिरोध को खत्म करना होगा और भविष्य में इस तरह के गतिरोध की पुनरावृत्ति नहीं होने देनी चाहिए। ऐसा होने के लिए राज्य और केंद्र में, वर्तमान और भविष्य में, हर सरकार को देश के कानून के अनुसार नैतिक और सख्ती से कार्य करना होगा और चाहे जो हो जाये, इस रास्ते से विचलित नहीं होना चाहिए। नागरिकों को हमारे संसद और विधानसभाओं के अंदर और बाहर उनके चुने हुए प्रतिनिधियों के व्यवहार पर कड़ी नजर रखनी होगी और चुनाव का समय आने पर उन्हें उसी के अनुसार सबक सिखाना होगा।
(वी एस पाण्डेय, पूर्व सचिव भारत सरकार)

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