दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए अध्ययन द्वारा निर्धारित स्पष्ट रोड मैप के बावजूद, कार्य योजना के कार्यान्वयन ठीक प्रकार से नहीं किया गया। नतीजा हमारे सामने है
वी.एस.पांडे
सुप्रीम कोर्ट ने कल यानी सोमवार को दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए नगर निगमों को भी जिम्मेदार ठहराने के लिए दिल्ली सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के झूठे ढोंग हमें आपके विज्ञापनों पर खर्च और कमाई का ऑडिट करने के लिए मजबूर करेंगे। ये टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में अत्यधिक प्रदूषण के स्तर से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए की थी। वर्तमान में दिल्ली पिछले वर्षों की तरह एक बार फिर प्रदूषण के गंभीर स्तर की चपेट में है, वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का स्तर मापने वाले उपकरणों की क्षमता से बहुत अधिक है। यह पिछले कई दशकों से है और यह न केवल दिल्ली या एनसीआर की हालत है बल्कि हमारे कई शहर हैं जहां वायु प्रदूषण एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन गया है। दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 21 भारत में हैं और हाल के आंकड़ों पर आधारित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में कम से कम १४ करोड़ लोग अत्यंत प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं जो डब्ल्यूएचओ की सुरक्षित सीमा से 10 गुना या अधिक है। इसी तरह दुनिया भर के वायु प्रदूषण के उच्चतम वार्षिक स्तर वाले इन 20 शहरों में से १३ शहर भारत में ही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार वायु प्रदूषण हर साल लगभग 20 लाख भारतीयों की अकाल मृत्यु में योगदान देता है। यह भी सर्व विदित है कि जहाँ शहरों में प्रदूषण मुख्य रूप से धूल, वाहनों और उद्योगों से उत्सर्जन के कारण होता है, ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश प्रदूषण खाना पकाने और गर्म रखने के लिए बायोमास जलाने से होता है। शरद ऋतु और वसंत के महीनों में, कृषि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर फसल अवशेषों को जलाना – जो कि यांत्रिक जुताई का एक सस्ता विकल्प है – धुएं, धुंध और कण प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है। हालांकि भारत में ग्रीनहाउस गैसों का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन कम है, लेकिन कुल मिलाकर देश चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्पादक है।
यद्यपि वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981 में पारित किया गया था, लेकिन नियमों के खराब प्रवर्तन के कारण प्रदूषण को कम करने में यह विफल रहा है।
कुछ साल पहले आईआईटी कानपुर द्वारा अन्य संबंधित एजेंसियों के सहयोग से दिल्ली में प्रदूषण की समस्या का एक व्यापक अध्ययन किया गया था। अध्ययन में प्रदूषण के स्तर को सहनीय सीमा तक लाने के लिए कई उपायों की सिफारिश की गई थी। इनमें होटल/रेस्तरां में कोयले के उपयोग को रोकना, नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट को जलाने से रोकना और इसके संग्रह और निपटान में सुधार करना, निर्माण क्षेत्र को ठीक स्क्रीन के साथ कवर करना, निर्माण कार्यों मैं प्रयोग होने वाली सामग्री की हैंडलिंग और भंडारण (पूरी तरह से सामग्री को कवर करना), पानी का छिड़काव और विंड ब्रेकर और परिसर के अंदर कचरे को उचित कवर के साथ स्टोर किया जाना , निर्माण सामग्री के सड़क पर आवागमन के समय, इसे पूरी तरह से कवर किया जाना , प्रमुख सड़कों की वैक्यूम स्वीपिंग (चार बार एक महीने में ), पानी के साथ यांत्रिक सफाई धुलाई, छोटी झाड़ियाँ, बारहमासी चारा, घास के आवरण, डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर का रेट्रो फिटमेंट, भारी शुल्क वाले वाहनों (गैर-सीएनजी बसों और ट्रकों) सहित सभी डीजल वाहनों के लिए बीएस-VI का कार्यान्वयन सहित कई अन्य उपाय सुझाये गए थे । उपरोक्त के अलावा, अध्ययन ने हरियाणा, पंजाब और अन्य जगहों में बायोमास जलाने पर रोक के साथ फसल अवशेष जलाने के प्रबंधन की भी सिफारिश की। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया कि सभी नियंत्रण विकल्पों के कार्यान्वयन के बावजूद, राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को पीएम 10 (100 माइक्रोग्राम / एम 3) और पीएम 2.5 (60 माइक्रोग्राम / एम 3) को हासिल किया जाना मुश्किल होगा । वायु गुणवत्ता मानकों को प्राप्त करने की दिशा में अगले कदम के रूप में यह भी प्रस्तावित किया गया कि सभी अनुशंसित नियंत्रण विकल्प पूरे एनसीआर के लिए भी हों और दिल्ली में नियंत्रण विकल्पों के कार्यान्वयन के साथ-साथ लागू किए जाएँ और तभी एनसीआर, दिल्ली में समग्र वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार होगा और अपेक्षित पीएम10 का स्तर 120 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम2.5 का 72 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर होगा। उपरोक्त नियंत्रण विकल्पों के अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ स्थानीय प्रयासों की आवश्यकता होगी कि दिल्ली और एनसीआर शहर पूरे वर्ष और संभवतः आने वाले कई वर्षों तक वायु गुणवत्ता मानकों को प्राप्त करें। अंत में अध्ययन ने स्पष्ट रूप से कहा कि सीमित वित्तीय संसाधनों को देखते हुए, यह सुझाव दिया जाता है कि स्रोत-रिसेप्टर प्रभावों को फिर से स्थापित करने के लिए एनसीआर और दिल्ली में फिर से किसी अध्ययन की आवश्यकता नहीं है; बल्कि फोकस कार्य योजना के शीघ्र कार्यान्वयन पर होना चाहिए।
दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए अध्ययन द्वारा निर्धारित स्पष्ट रोड मैप के बावजूद, कार्य योजना के कार्यान्वयन ठीक प्रकार से नहीं किया गया। नतीजा हमारे सामने है, साल दर साल हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप का खेल बदस्तूर जारी है। न तो दिल्ली सरकार ने कार्ययोजना को लागू करने के लिए कोई ठोस काम किया और न ही केंद्र सरकार ने। निस्संदेह इन नीतिगत सिफारिशों को न केवल दिल्ली में बल्कि पटना, ग्वालियर, रायपुर, अहमदाबाद, लखनऊ, फिरोजाबाद कानपुर, अमृतसर, लुधियाना आदि शहरों में लागू करने की आवश्यकता है जहां पीएम2.5 का स्तर खतरनाक स्तर पर है। ऐसा होने के लिए, सभी राज्य सरकार और केंद्र सरकार को एक साथ मिल कर काम करना होगा और सभी संस्तुतियों को गंभीरता पूर्वक लागू करना शुरू करना होगा। इसके बिना प्राणघाती प्रदूषण से छुटकारा पाना कदापि संभव नहीं हो पाए गए। अब तक बहुत हो चुकी बयान बाजी और परस्पर दोषारोपण , जनता खोखे आश्वासनों से ऊब चुकी है। अख़बारों और टेलीविज़न पर विज्ञापन चला लेने मात्रा से कुछ भी होने वाला नहीं है। अब काम दिखना चाहिए न कि नेताओं कि फोटो।
(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)