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(Update 12 minutes ago)

धन और बाहुबल ने भारतीय लोकतंत्र को नष्ट कर दिया

विभिन्न राजनीतिक संगठनों के तथाकथित नेता, कतिपय धार्मिक और जाति के नेता, यह सभी बाजार में स्वतंत्र रूप से बिकने के लिए उपलब्ध हैं, जिन्हें नकद, पार्टी टिकट, मंत्री पद के साथ खरीदा या व्यापार किया जा सकता है

वी.एस.पांडे
प्राचीन काल से ही मानव जाति की सभ्यता के बुद्धिमान और इसके सबसे प्रबुद्ध संतों, विचारकों ने इस सत्य पर जोर दिया था कि आपसी सम्मान, मतभेदों की सहनशीलता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व ही ऐसे सिद्धांत है जो मानव जाति की समृद्धि सुनिश्चित करती है। हर धर्म, अपने सार में, करुणा और निस्वार्थ जीवन जीना सिखाता है और सभी प्रकार के लोभ से मुक्त रहने की बात कहता है । हमारे मामले में, चाहे वह अद्वैतवादी हो या द्वैतवादी, बौद्ध धर्म या जैन धर्म, सांख्य या न्याय दर्शन, या इस्लाम और ईसाई जैसे अब्राहमिक धर्म, सभी समाज की निस्वार्थ सेवा करना और सांसारिक संपत्ति और लोभ , मोह के प्रति पूर्ण उदासीनता सिखाते हैं। हमारे तत्त्व ज्ञान ने भी हमेशा स्वयं से पहले दूसरों की सेवा का प्रचार किया और सभी प्राणियों और प्रकृति के साथ सहानुभूति के साथ व्यवहार करना बताया । सार्वभौमिक भाईचारा हमारी सभ्यता की आधारशिला रहा है और आज हमें इसे और भी अधिक मजबूती से पालन करना चाहिए।
हमारी पृथ्वी ने अनगिनत शासकों को अनंत काल से शासन करते देखा है, लेकिन सिर्फ सिंहासन पर उनकी लंबी उम्र इतिहास में किसी शासक को एक सम्मानित स्थान दिला पाना सुनिश्चित नहीं कर सकती है। केवल उन्हीं शासकों को याद किया जाता है जिन्होंने ईमानदारी, करुणा, सम्मान और सत्यनिष्ठा के साथ लोगों की सेवा की। वे शासक जो न्यायप्रिय थे और लोगों के साथ न्याय पूर्ण व्यवहार करते थे, उन्हें सम्मान के साथ याद किया जाता है और उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। यद्यपि राजा और उनके राज्य बीते युगों के हैं, वर्तमान में लोकतंत्र में भी, कभी-कभी सत्ता के पदों पर बैठे लोग सर्वशक्तिमान राजाओं के रूप में व्यवहार करना शुरू कर देते हैं और यह बात पूरी तरह से भूल जाते हैं कि वे केवल जनता के सेवक मात्र हैं और उनके कल्याण को बढ़ावा देने के लिए ही चुने गए हैं। आजकल अधिकांश निर्वाचित प्रतिनिधि और शासक , विभिन्न राजनीतिक विचारधारा के बावजूद, बिल्कुल राजाओं की तरह व्यवहार करते हैं और लोगों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे मानो वह जानवर हों । उन्होंने धूर्तता , चालाकी जैसी तमाम तमाम गंदी चालों को अपनाकर चुनाव जीतने की कला में महारत हासिल कर ली है। चूंकि चुनावी राजनीति में पैसे ने एक प्रमुख भूमिका निभानी शुरू कर दी है, आज के नेताओं ने वोटों को एक व्यापार योग्य वस्तु में बदल दिया गया है। पिछले लगभग पांच दशकों से, नेता अब अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों की परवाह नहीं करते हैं, बल्कि अवसर का लाभ उठाते हुए जुनूनी रूप से बेरोकटोक करोड़ों की लूटपाट पर केंद्रित रहते हैं। इन नेताओं के मन मैं यह बात बैठ गई है कि पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है। विभिन्न राजनीतिक संगठनों के तथाकथित नेता, कतिपय धार्मिक और जाति के नेता , यह सभी बाजार में स्वतंत्र रूप से बिकने के लिए आज उपलब्ध हैं, जिन्हें नकद, पार्टी टिकट, मंत्री पद के साथ खरीदा या व्यापार किया जा सकता है – जैसा कि हाल ही में उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के चुनावों के दौरान देखा गया था। चुनाव की पूर्व संध्या पर टिकट वितरण से ठीक पहले सभी दलबदल होते हैं। इन नेताओं की “आत्मा” ठीक चुनाव से पहले जागती है और अंतरात्मा की आवाज के नाम पर, वे अपनी दागी पार्टी को छोड़ देते हैं, जहां उन्होंने वर्षों तक जनता के पैसे की लूट का आनंद लिया था और दूसरी पार्टी में बैंडबाजे के साथ शामिल हो जाते हैं , और उनकी नयी पार्टी पहले वाली पार्टी से यदि अधिक नहीं तो समान रूप से भ्रष्ट तो होती ही है । हमारे देश के राजनीतिक रंगमंच की सड़न इतनी विकराल है कि लोगों ने यह मानकर लिया है कि राजनीति केवल धूर्त , भ्रस्ट , लुटेरों की शरणस्थली है । इन हालातों को अगर इसी तरह जारी रहने दिया गया तो हमारी महान सभ्यता की भविष्य की संभावनाओं के बारे में सोचना भयावह है।

लगभग सभी देश लगभग इस तरह के राजनीतिक हालातों से गुजरे हैं, लेकिन, धैर्य और निरंतर प्रयासों से, वे इस गड़बड़ी को दूर कर आगे बढ़ सके । यदि समस्याएं हैं तो समाधान भी हैं, मानव सभ्यता ने वर्षों से यही सबक सीखा है। हम भाग्यशाली हैं कि हमारे पास एक ऐसा लोकतंत्र है जहां लोगों के पास वोट देने की शक्ति है जिसके माध्यम से जिन शासकों को वे पसंद नहीं करते हैं, उन्हें बदल सकते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर और राज्यों में हर पांच साल में चुनावों के माध्यम से एक क्रांति होती रहती है। आज के हालातों में लोगों द्वारा राजनीतिक व्यवस्था को साफ करने के लिए एक गंभीर क्रांतिकारी प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

दुर्भाग्य से, दशकों तक, केंद्र या राज्य की किसी भी सरकार द्वारा लोगों को भली भांति रूप से शिक्षित करने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया – जो कि किसी भी सफल लोकतंत्र की आधारशिला है। लोगों को इस बात को लेकर जागरूक करना होगा और उन्हें यह महसूस कराना होगा कि लोकतंत्र में जनता ही मालिक हैं और राजनेता केवल उनकी सेवा करने के लिए हैं और उसके बाद ही उन्हें सार्वजनिक खजाने से अपना पर्याप्त वेतन और सुविधाएं प्राप्त करनी चाहिए। लोगों को यह भी समझने की जरूरत है कि उनके सर्वोत्तम हित में क्या है और राष्ट्र निर्माण के कठिन कार्य को करने के लिए किन नेताओं में क्षमता, समझ और दूरदर्शिता है। लोगों को अपने वोट के मूल्य के बारे में साक्षर और जागरूक बनाने की जरूरत है, जिसे वे वर्तमान में कुछ मुफ्त अनाज और करेंसी नोटों के लिए बेच रहे हैं।

वर्तमान राजनीति के विकृत रूप को बदलने का एक संगठित निःस्वार्थ प्रयास की महती आवश्यकता है। नफरत, विभाजन, धन और बाहुबल की आज की राजनीतिक संस्कृति हमारे देश को जल्द ही गर्त की ओर ले जाएगी।
स्वच्छ राजनीती ही देश की आज की सभी समस्याओं का समाधान है। शासन के स्पष्ट एजेंडे के साथ मतदाताओं से संपर्क करने और उन्हें छल और झूठ की वर्तमान संस्कृति के बारे में समझाने के लिए ईमानदार लोगों द्वारा एक ईमानदार प्रयास किया जाना होगा । इसके अलावा किसी भी प्रकार के प्रयास पहले की तरह ही हालातों को बदलने में विफल सिद्ध होंगे।
(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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