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(Update 12 minutes ago)

अपने निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय प्रतीकों का राजनीतिकरण

संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इन प्रतिष्ठित हस्तियों के नामों का उपयोग करना, वर्तमान समय की राजनीति का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय है।

वी.एस.पांडे

राजनीतिक दलों द्वारा राष्ट्रीय प्रतीकों को हड़पने की विध्वंसक संस्कृति ने अब एक गंभीर मोड़ ले लिया है। इससे पहले शिवाजी, सरदार पटेल, डॉ अम्बेडकर और डॉ राम मनोहर लोहिया को विनियोजित किया गया था। अब शहीद भगत सिंह की बारी है। पंजाब सरकार के सभी कार्यालयों में डॉ. अम्बेडकर और भगत सिंह की तस्वीरें लगाने के हालिया विवाद की उत्पत्ति हमारे देश के समग्र बंजर राजनीतिक परिदृश्य में हुई है। राजनीतिक दल के नेता जिनके पास अपने चरित्र, कार्यों या सामाजिक योगदान के माध्यम से दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है, वे इन प्रतीकों का सहारा लेते हैं, जिन्होंने अपने बलिदान, निरंतर प्रयासों और अनुकरणीय साहस का प्रदर्शन करके अमरता प्राप्त की है। अपने कार्यों और बलिदानों के माध्यम से अमरता प्राप्त करने वालों के नक्शेकदम पर चलने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इन प्रतिष्ठित हस्तियों के नामों का उपयोग करना, वर्तमान समय की राजनीति का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय है।

जो लोग खुद को शिवाजी के सच्चे अनुयायी बताते हैं, उनके आचरण पर एक नज़र निश्चित रूप से उन्हें शर्मसार कर देगी। सदर पटेल की विरासत पृथ्वी पर सबसे ऊंची मूर्ति की स्थापना तक ही सीमित है, लेकिन उनके लौह कर्मों का अनुकरण नहीं किया गया है। अम्बेडकरवादियों का आचरण भी ऐसा ही था, जिन्होंने दलितों के लिए सेवा करने और सबसे वंचित वर्ग को सभ्य जीवन स्तर प्राप्त करने में मदद करने के बजाय लगातार खुद को अकूत धन जमा करने में लगा दिया। लोहियावादियों का आचरण भी ऐसा ही रहा है। लोहिया की समाजवादी विचारधारा के पथ-प्रदर्शकों ने सत्ता में आने के तुरंत बाद, अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे सर्वहारा वर्ग के दुखों का समर्थन करने और उन्हें कम करने के बजाय अमीरों के साथ बेशर्मी से गठबंधन करना शुरू कर दिया। समाजवाद के पुरोधा लोहिया पार्क और ऐसे अन्य पार्क, लोहिया द्वार, जय प्रकाश नारायण सम्मेलन केंद्र आदि के निर्माण में व्यस्त हो गए, जिसकी लागत हजारों करोड़ थी और इन सब के पीछे मूल रूप से इन सिद्धांत विहीन नेताओं ने अपने महापुरुषों की विरासत का पालन करने और उन्हें लागू करने के बजाय अपनी जेब भरने के लिए यह सब करने लगे । यह सब अधर्म समाजवाद की आड़ में किया गया था।
वर्तमान में हमारे पास केजरीवाल महान क्रांतिकारी भगत सिंह के नवजात भक्त के रूप मैं प्रकट हुए हैं, जो उनकी विरासत को हथियाने का प्रयास कर रहे हैं। हमें यह याद करने की जरूरत है कि भगत सिंह किस लिए खड़े थे। ‘सांप्रदायिक दंगे और उनके उपचार’ शीर्षक वाले अपने लेख में उन्होंने लिखा – “लोगों को आपस में लड़ने से रोकने के लिए वर्ग-चेतना की आवश्यकता है। गरीबों, मेहनतकशों और किसानों को यह स्पष्ट रूप से समझाया जाना चाहिए कि आपके असली दुश्मन पूंजीपति हैं, इसलिए आपको उनकी करतूत से दूर रहना चाहिए और उनके कहने पर कुछ भी नहीं करना चाहिए। उन्होंने पूंजीपतियों के साथ गठजोड़ करने के खिलाफ लोगों को बार-बार आगाह किया था। उनके नाम की शपथ लेने वालों का चरित्र और आचरण क्या है इसका उदहारण सभी के सामने है। हाल ही में केजरीवाल की पार्टी ने पंजाब से राज्यसभा के लिए पांच उम्मीदवारों को पार्टी के उम्मीदवारों के रूप में चुना-जिसमें तीन अरबपति उद्योगपति शामिल थे। इससे पहले भी, जब उन्होंने दिल्ली से तीन राज्यसभा उम्मीदवारों को चुना, तो दो अरबपति थे। केजरीवाल का अमीर खरबपतिओं लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर रखना उनकी कथित विचारधारा और उनके कर्मों की वास्तविकता के बीच पाखंडी खाई का उदाहरण है।
हमारे राष्ट्रीय प्रतीक एक सदी से भी पहले पैदा हुए थे और उन्होंने उस उन्नत स्थान को हासिल करने के लिए अपना जीवन अथक परिश्रम करते हुए बिताया। हम सभी को उन लोगों के बताये हुए पदचिन्हों पर चलना चाहिए जिन्होंने लोगों के दिलों पर स्थायी प्रभाव डाला। इन महान लोगों से सीखने और प्रेरणा लेने के लिए बहुत कुछ है। लेकिन अंततः खुद के कर्म ही उन विचारों की कुंजी और कसौटी है, जिन पर चलने की कोई घोषणा करता है। इस कसौटी पर हर राजनीतिक दल बुरी तरह विफल होता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई किस महापुरुष का अनुसरण करता है लेकिन महत्वपूर्ण तो यह है कि क्या लोग सत्य, ईमानदारी, देश के लिए प्यार और समाज के वंचित वर्गों के लिए करुणा पूर्ण आचरण करते हैं या नहीं। दुर्भाग्य से, हमारे राजनेताओं की वर्तमान फसल इन प्रतीकों के नामों का उपयोग केवल अपने कुकर्मों को छिपाने और निकृष्ट आचरण को कवर करने के लिए ही उपयोग करते है।
केजरीवाल ने अरबपतियों को इनाम देकर और आम आदमी की अनदेखी करके जो किया है, वही मुख्य धारा की पार्टियां सालों से करती आ रही हैं, लेकिन छोटे स्तर पर। वह नई नस्ल के नेता हैं इसलिए उन्हें इस क्षेत्र में भी दूसरों से आगे निकलना था । इस कथा का दुखद हिस्सा संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों के लिए हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों के गौरवशाली नामों को बदनाम करना है। वे इस प्रवृति के तमाम घातक परिणामों को आसानी से अनदेखा कर देते हैं- जैसे आज की पीढ़ी जब इन भ्रष्ट, अयोग्य और आत्मकेंद्रित राजनेताओं को इन प्रतीकों के नाम पर गलत काम करते हुए देखती है, तो उनका अपनी पुराणी पीढ़ी से भी मोहभंग हो जाने का खतरा पैदा हो जाता है, जो एक दुखद स्थिति कही जा सकती है।
हमारे देश की विडम्बना यह है कि कई दशकों से हम एक राष्ट्र के रूप में सत्यनिष्ठा, साहस और निस्वार्थ भावना वाले राजनेताओं को आगे बढ़ाने में विफल रहे हैं, जिनकी ओर लोग देख सकते हैं। हम कब इस गलती को सुधारेंगे यह तो भविष्य ही बता पायेगा।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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