तथाकथित विश्व गुरु बनने के लिए भारत को अभी लंबा सफर तय करना है

यह सभी नागरिकों के लिए चिंता का विषय है कि वैश्विक राजनीतिक अधिकारों और स्वतंत्रता पर अपनी हालिया रिपोर्ट में, फ्रीडम हाउस ने भारत को एक स्वतंत्र लोकतंत्र से “आंशिक रूप से मुक्त लोकतंत्र” में डाउनग्रेड कर दिया। इसी तरह स्वीडन स्थित वी-डेम इंस्टीट्यूट ने भारत को “आंशिक निरंकुशता” के रूप में लेबल किया है, और बाद में भारत को “त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र” के रूप में करार दिया है।

वी.एस. पांडेय

पिछले महीने महाराष्ट्र राज्य में सत्ता का खेल हुआ था, और कुछ दिन पहले ही हमारे सामने बिहार की राजनीति की गाथा चल रही थी और जल्द ही हम अपनी आजादी के पचहत्तर साल का जश्न मनाना शुरू करेंगे। इसलिए समय आ गया है कि हम एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में अपनी अब तक की यात्रा पर आत्मनिरीक्षण करें। हमारी पहली और सबसे प्रमुख गौरवशाली उपलब्धि यह है कि हम एक लोकतंत्र बने रहने में सफल हुए हैं, नियमित रूप से चुनाव करवाए हैं और इन सभी वर्षों में सफलतापूर्वक चुनावी लड़ाइयों में विजेताओं को सत्ता का सुचारू हस्तांतरण सुनिश्चित किया है। हम अपने देश की अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखने में भी सफल हुए हैं। वर्तमान में हम विभिन्न मोर्चों पर अपने कुटिल पड़ोसियों द्वारा पैदा किये गए गंभीर खतरों से जूझ रहे हैं। हमने सदैव ही अपनी सम्प्रभुता कायम रखने में सफलता हासिल की क्योंकि हमने एक राष्ट्र के रूप में एक बहादुर, पेशेवर और सक्षम कर्मियों की एक विशाल सेना बनाए रखा है जिन्होंने बार-बार विकट बाधाओं के खिलाफ हमारी संप्रभुता की रक्षा करने की अपनी क्षमता दिखाई है। हमारे कट्टर विरोधियों की ओर से किसी भी दुराचार को रोकने के लिए हमारे परमाणु हथियार पर्याप्त हैं। अब हम पिन से लेकर विशालकाय पानी के जहाजों, हवाई जहाजों, मिसाइलों और उपग्रहों तक हर चीज का निर्माण करते हैं, हम रॉकेट लॉन्च करते हैं, और हम आत्मानिर्भर हैं। हमारी सॉफ्टवेयर जनशक्ति सचमुच दुनिया को शक्ति प्रदान करती है। आज भारत इस ग्रह पर चौथे सबसे अमीर व्यक्ति के रूप में एक भारतीय के होने का दावा कर सकता है और साथ ही भारतीयों की संख्या लगभग दैनिक आधार पर अरबपतियों की चुनिंदा सूची में शामिल हो रही है। ऐसी अनेक उपलब्धियां हैं जो हमें एक राष्ट्र के रूप में गौरवान्वित करती हैं। लेकिन कुछ मोर्चों पर कुछ खामियां हैं, और इससे पहले कि हम अपने लिए तथाकथित “विश्व गुरु” का दर्जा प्राप्त करने की घोषणा करें, उन्हें दूर करने की आवश्यकता है।
आज हमें इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि पचहत्तर साल के स्वशासन के बाद हम राष्ट्रपिता और हमारे संविधान के लेखकों और अन्य दिग्गजों के सपने के भारत के मुकाबले कहां खड़े हैं। डॉ. अम्बेडकर के अनुसार, लोकतंत्र केवल चर्चा वाली सरकार या लोगों की सरकार, लोगों द्वारा और लोगों के लिए सरकार ही सिर्फ नहीं होता , बल्कि उन्होंने लोकतंत्र को सरकार को एक ऐसे रूप और तरीके के रूप में परिभाषित किया, जिससे लोगों के जीवन में बिना रक्तपात के आर्थिक और सामाजिक समानता के रूप में क्रांतिकारी परिवर्तन हों । उन्होंने कहा कि समाज में घोर असमानताएं नहीं होनी चाहिए और कोई उत्पीड़ित वर्ग नहीं होना चाहिए। ऐसा वर्ग भी नहीं होना चाहिए जिसके पास सभी विशेषाधिकार हों और एक ऐसा वर्ग भी न हो जो सभी बोझ उठाने के लिए हो। दुर्भाग्य से हमारा देश अभी भी ऐसा है जहां हम बढ़ती सामाजिक-आर्थिक असमानताओं का अनुभव कर रहे हैं जो हमारे लोकतंत्र को कलंकित कर रहा है।
अम्बेडकर सत्ता में सरकार की निरंकुश प्रवृत्तियों को रोकने के लिए एक मजबूत विपक्ष के अस्तित्व के प्रबल समर्थक थे। डॉ. अम्बेडकर के अनुसार, एक कमजोर विपक्ष लोकतंत्र के कमजोर होने की ओर ले जाएगा और यह किसी भी राष्ट्र के लिए खतरे का संकेत है। वह स्पष्ट था कि लोकतंत्र एक सम्मानजनक जीवन जीने की स्वतंत्रता को विकसित करता है, जिसमें वह करने की स्वतंत्रता होती है जिसे लोग महत्व देते हों ।
दुर्भाग्य से हम मानव स्वतंत्रता सूचकांक में और लोकतांत्रिक साख में भी काफी पीछे दिख रहे हैं। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 2 जुलाई, 1931 को यंग इंडिया में लिखा था, “मेरे लिए राजनीतिक शक्ति एक अंत नहीं है, बल्कि लोगों को जीवन के हर पक्ष में उनकी स्थिति को बेहतर बनाने में सक्षम बनाने का एक साधन है।” गांधीजी की राय में, स्वतंत्रता और न्याय लोकतंत्र के दो बुनियादी स्तंभ थे। उन्होंने सभी का कल्याण तभी देखा जब समान स्वतंत्रता और न्याय उपलब्ध हो। उन्होंने लोकतंत्र में व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बहुत जोर दिया और कहा, “यदि व्यक्तिगत स्वतंत्रता जाती है, तो निश्चित रूप से सब कुछ खो जाता है, क्योंकि अगर व्यक्ति खुली हवा में सांस लेना बंद कर देता है, तो समाज के पास क्या बचा है?
यह सभी नागरिकों के लिए चिंता का विषय है कि वैश्विक राजनीतिक अधिकारों और स्वतंत्रता पर अपनी हालिया रिपोर्ट में, फ्रीडम हाउस ने भारत को एक स्वतंत्र लोकतंत्र से “आंशिक रूप से मुक्त लोकतंत्र” में डाउनग्रेड कर दिया। इसी तरह स्वीडन स्थित वी-डेम इंस्टीट्यूट ने भारत को “आंशिक निरंकुशता” के रूप में लेबल किया है, और बाद में भारत को “त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र” के रूप में करार दिया है। द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा प्रकाशित नवीनतम डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत दो पायदान नीचे 53वें स्थान पर आ गया है। दुर्भाग्य से हमारे देश ने वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2022 में लगातार नीचे की ओर रुझान दिखाया है, जिसमें नागरिकों की खुशी को मापा जाता है । भारत 146 देशों की सूची में 136 वें स्थान पर है और पाकिस्तान, इराक, श्रीलंका, नाइजीरिया, म्यांमार, इथियोपिया, युगांडा, ईरान, बांग्लादेश आदि देशों से नीचे है। इस बीच, भारत 2021 में आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक में 121 वें स्थान पर है और इस संबंध में प्रकाशित विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था अधिकतर अमुक्त श्रेणी के मध्य में बनी हुई है।
दुर्भाग्यवश आज हमें दुनिया के सबसे आर्थिक रूप से गैर बराबर देशों में से एक माना जाता है जहां अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार बढ़ रही है। हमारे देश में आज भी गरीबी रेखा से नीचे लगभग पचास करोड़ लोग रहते हैं और दुनिया भर में सबसे ज्यादा गरीब अपने देश में ही होने का संदिग्ध गौरव हमारे देश को प्राप्त है। हमारी चरमराती शिक्षा व्यवस्था के बुनियादी ढांचे और खराब स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का उन देशों से कोई मेल नहीं है जिनसे हमें प्रतिस्पर्धा करनी है। हमारी न्याय वितरण प्रणाली न्याय देने में न केवल अत्यंत सुस्त रही है बल्कि बहुत ही खर्चीली मानी जाती है और केवल अमीर और शक्तिशाली ही हमारी न्यायिक प्रणाली के उच्च स्तर तक पहुंचने की आकांक्षा कर सकते हैं, जो कि अधिकांश भारतीयों के सामर्थ की सीमा से बाहर है। इस “आज़ादी के अमृत महोत्सव” काल के दौरान राष्ट्र की यह स्थिति है।
ये सभी चिंताजनक संकेतक हैं। हम, भारत के लोगों को, स्थिति की गंभीरता को समझने और आवश्यक सुधार प्रक्रियाओं को शीघ्रता से शुरू करने की आवश्यकता है। कानून का शासन ही हमारा लक्ष्य बनना है न कि अपवाद और “मुझे चेहरा दिखाओ, तो हम नियम दिखाएंगे ” की संस्कृति को बिना किसी और देरी के समाप्त करना होगा। 75 साल की उम्र में भारत के पास और कोई आसान विकल्प अब नहीं बचा है। हम अपने लिए उपलब्ध सभी सॉफ्ट विकल्पों को पहले ही समाप्त कर चुके हैं। कठिन विकल्पों के चुनाव का समय आ गया है और तभी आजादी का अमृत सभी को पसंद आएगा।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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