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(Update 12 minutes ago)

भ्रष्ट, बेईमान राजनेताओं को हटाने के लिए बदलाव की तत्काल आवश्यकता है

अब नए साल में कई विधान सभाओं के चुनाव होने हैं और इन सभी राज्यों में राजनीतिक घमासान शुरू हो चुका है । और इसी के साथ शुरू हो चुका है किसी भी स्तर पर जाकर एक दूसरे को नीचा दिखाने का खेल । जाति , धर्म को लेकर ध्रुवीकरण करने की होड़ में कोई किसी से पीछे नहीं रहने को तैयार है । सभी तथाकथित नेता और उनके दल इस बात को भूल ही चुके हैं कि राजनीति समाज की सेवा का एक माध्यम मात्र है और यह मार्ग जनता को लूट कर घर भरने और सत्ता की मलाई चाटने के लिए नहीं बना था

वी एस पाण्डेय

देश की राजनीति वर्षों से झूठ, फ़रेब , काले धन और धूर्तता पर अवलंबित रही , इस पर कोई संदेह नहीं लगता । ग़रीबी हटाओ के नारे पर वर्षों तक राज करने वाली पार्टी के कार्यकाल के दौरान ग़रीबों की संख्या लगातार बढ़ती रही । वहीं अच्छे दिन लाने का वादा करने वाली पार्टी के समय में बेरोज़गारी और महंगाई की मार से जनता बेहाल है । समाजवाद का नारा लगाने वाली पार्टी पूँजीपतिओं और अपराधियों के सामने नतमस्तक रही और बहुजन की राजनीति वाले समय में तो स्वजन का ही भला हो पाया , बहुजन आज भी किस हालत में हैं इसको जानने की तो किसी को फुर्सत भी नहीं । भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाने वाले और ईमानदारी का गोहार लगाने वाले नेताओं ने सत्ता पाते ही भ्रष्टाचार के संडास में ऐसी डुबकी मारी कि उसमें से निकलने का नाम ही नहीं लेते। जनता की मजबूरी है कि जब हमाम में सभी नंगे हैं , तो वह जाए तो कहाँ जाए । आज की राजनीति में सभी एक दूसरे की बेइमानी उजागर करने की होड़ में लगे हैं और जनता इस तमाशे को देख कर यही सोचने पर मजबूर है कि इन बेईमानों की जमात में कौन सबसे भ्रष्ट है , इसका निर्णय कैसे हो ।
अब नए साल में कई विधान सभाओं के चुनाव होने हैं और इन सभी राज्यों में राजनीतिक घमासान शुरू हो चुका है । और इसी के साथ शुरू हो चुका है किसी भी स्तर पर जाकर एक दूसरे को नीचा दिखाने का खेल । जाति , धर्म को लेकर ध्रुवीकरण करने की होड़ में कोई किसी से पीछे नहीं रहने को तैयार है । सभी तथाकथित नेता और उनके दल इस बात को भूल ही चुके हैं कि राजनीति समाज की सेवा का एक माध्यम मात्र है और यह मार्ग जनता को लूट कर घर भरने और सत्ता की मलाई चाटने के लिए नहीं बना था । देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए भी लोगों ने कई पार्टी बनाई थी और उस समय के नेता बिना कुछ पाने की आशा किए हुए सिर्फ़ देश और समाज के लिए ही वर्षों तक जेल की सलाख़ों के पीछे रहने की त्रासदी भोगते रहे ।

हमारे राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी राजनीति के विकृत रूप के बारे में अच्छी तरह से समझते थे और इसीलिए उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा में सत्य और अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया । उन्होंने लिखा है-’’मैं जिन धार्मिक व्यक्तियों से मिला हूं, उनमें से अधिकांश छिपे वेश में राजनीतिज्ञ हैं। किन्तु राजनीतिज्ञ का चोला धारण करने वाला मैं अपने हृदय से एक धार्मिक व्यक्ति हूं।’’ उन्होंने राजनीति के विकृत रूप अर्थात् धर्महीन राजनीति के बारे में आगे कहा है-’’यदि मैं राजनीति में भाग लेता हूं, तो इसका कारण यही है कि राजनीति हम सबको सर्प के समान घेरे हुए हैं, जिससे कोई चाहे कितनी ही चेष्टा करे, बाहर नहीं निकल सकता, मैं उस सर्प से युद्ध करना चाहता हूं।” इससे स्पष्ट है कि गांधी जी ने राजनीति में हिस्सा, उसे जनसेवा का साधन बनाने के लिए ही लिया। उन्होंने जीवन भर राजनीति में ऐसे प्रयोग किए, जो जन-कल्याण को बढ़ावा देने वाले थे, ना कि अपने स्वार्थ के लिए ।
राजनीति के आज के विकृत स्वरूप को तो अब सही तौर पर बयान कर पाना भी असम्भव सा हो गया है । राजनीति के इस विकृत स्वरूप को कैसे बदला जाए , यही यक्ष प्रश्न आज देश के सामने मुँह बाये खड़ा है । नकारात्मक सोंच वालों की माने तो अब कुछ भी बदलने वाला नहीं है और आगे भी इसी प्रकार भ्रष्ट , दुराचारी , झूठे , फ़रेबी और अपराधी राजनीति पर अपनी कुंडली मार कर बैठे रहेंगे और निरीह जनता पहले की तरह ही पिसती रहेगी । ऐसी सोंच वालों की तादाद बहुत बड़ी है लेकिन सौभाग्य वश तथ्य और तर्क उनकी इस सोंच के एकदम विपरीत हैं । हमारे देश की हज़ारों साल की सभ्यता और उसका इतिहास इस बात का गवाह है कि झूठ , फ़रेब , कुटिलता पर आधारित समय और मनुष्य, दोनों का अंत होता ही होता है और इसी तरह आज की भ्रष्ट , नैतिकता विहीन राजनीति का भी शीघ्र ही अंत होना अवश्यंभावी है । बात सिर्फ़ इतनी सी है कि निःस्वार्थ भाव से देश और समाज के लिए कुछ करने की भावना और सही रास्ते पर विश्वास रखने वालों को बदलाव का अगुवा बनने की भूमिका निभाने के लिए तैयार होना पड़े गा ।
सभी देशों और मानव सभ्यता का इतिहास इस बात का गवाह है कि बदलाव सिर्फ़ मुट्ठी भर साहसी , कर्मठ एवं निःस्वार्थ भाव से काम करने की भावना रखने वालों ने ही हमेशा लाया है और आज भी सिर्फ़ ऐसे ही कुछ मुट्ठी भर लोगों की इस देश को ज़रूरत है । निश्चित रूप से देश में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो इन बिगड़े हालातों को बदलने की दिल से इच्छा रखते हैं । आज समय की ज़रूरत है कि ऐसे लोगों को साथ में लाकर राजनीति की दिशा और दशा को बदला जाए और ऐसी राजनीतिक व्यवस्था स्थापित की जाए जिसमें जाति, धर्म , काले धन , झूठ , फ़रेब और बदकारी के लिए कोई जगह ना हो । इस प्रकार के राजनैतिक बदलाव के होने पर ही देश वर्षों से व्याप्त ग़रीबी , अन्याय, अन्धेर , अत्याचार , और असमानता की विभीषिका से मुक्ति पा सकेगा ।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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