नियामक निकाय निवेशकों के हितों की रक्षा करने में विफल रहे हैं

वी एस पांडेय कहते हैं अगर आज कुछ दिनों से अदानी का मामला सदन में हंगामे का कारण बना है तो इससे पहले किसी और का मामला था और उससे पहले कुछ और उद्योगपतियों द्वारा बैंक का पैसा लेकर विदेश भागने का मामला जनता और मीडिया के बीच में छाया रहा । कहानी वही पुरानी है सिर्फ़ पात्र बदलते रहते हैं । कहने को तो हमारे यहाँ कई मज़बूत संस्थान स्थापित किए गए हैं जिनका काम ही सिर्फ़ एक है कि वह आम जनता द्वारा बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों में किए गए निवेश एवं उनके हितों को सुरक्षित रखने के लिए सतत काम करें लेकिन विगत वर्षों में जिस प्रकार से कतिपय उद्योगों एवं उनके कर्ताधर्ताओं द्वारा बैंक एवं अन्य संस्थाओं के पैसे को अनापशनाप ढंग से लेकर फिर उनका दुरुपयोग किए जाने का मामला सामने आया है उससे लगता है कि यह सभी संस्थाएं भी अपना अपना दायित्व निभाने में पूर्णतः असफल रही है और वह केवल छोटे छोटे मामलों में दख़ल देकर यह दिखाने का प्रयास करती रहती है कि वह निवेशकों के हितों की रक्षा में लगी रही है।

देश के लिए , आज कल सुर्ख़ियों में छाए अड़ानी उद्योग का मामला कोई नया नहीं है। देश को आज़ादी मिलने के के कुछ वर्षों बाद से राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों में भारी पैसा ख़र्च करने की जो प्रथा स्थापित की गई वह आगे आने वाले वर्षों में विकराल रूप में देश के सामने अपना नंगा नाच करने लगी। जब हर चुनावों में हज़ारों करोड़ रुपया ख़र्च किए जाएंगे और जनता को चुनाव के दौरान खुले आम शराब , मुर्ग़ा और नगदी बाँटी जाएगी तो निश्चित रूप से इस सब पर खर्च होने वाले पैसे को यह नेता लोग और उनके राजनीतिक दल या तो भ्रष्टाचार के माध्यम से आम जनता की जेब काट कर यह धन इकट्ठा करेंगे या उद्योगपतियों को उपकृत के उनसे धन उगाही करेंगे । एक बार जब कोई उद्योगपति किसी राजनीतिक दल या उसके नेता को चुनाव जिताने के लिए पैसा लगा देता है तो वह उसकी वसूली तो ज़रूर करेगा क्योंकि उद्योगपति तो उद्योगपति रहा और व्यापारी तो व्यापारी रहा, वह लगायी गई पूंजी का कई गुना वसूले बिना तो चुप बैठने वाला नहीं । वह चुनाव में खरबों रुपए धर्म कर्म के लिए तो लगाने वाला नहीं ही है ।
यहीं से शुरू होती है जनता के हितों की अनदेखी और भ्रष्टाचार की संस्कृति का पैर पसारना ।हमारा देश आदि काल से दुनिया के सबसे समृद्ध देशों में से एक रहा है और हमारे देश में किसी भी चीज़ की कोई कमी कभी नहीं रही , इस बात का भी हमारा इतिहास गवाह है । हमारा संविधान दुनिया भर के देशों में से किसी भी देश के संविधान से किसी भी तरह से कम नहीं है और इसमें आम नागरिकों के सभी मौलिक अधिकारों को प्रदान करते हुए इनको धरातल पर लाने के लिए भी सारी व्यवस्था स्थापित की गई। इसके बाद भी देश में गरीबों की संख्या अभी भी करोड़ों में है और हमारा देश आज भी ग़रीब देशों की श्रेणी में ही रखा जाता है।यही नहीं , विकास के लगभग सभी स्थापित मापदण्डों को अगर हम देखें तो हमारे देश की स्थिति आज भी ठीक नहीं है और इसमें हाल के वर्षों में देखा जाए तो प्रगति होती नहीं दिख रही है । यह स्थिति हर दृष्टि से चिंताजनक है और यह प्रदर्शित प्रदर्शित करती है कि हमने एक देश के रूप में स्थापित व्यवस्था को चलाने में कहीं कुछ भारी गलती कर रखी है जिसके चलते सब कुछ होने के बाद भी आज हम एक पिछड़े और भ्रष्ट देश की श्रेणी में रखे जाते है।

अगर आज कुछ दिनों से अदानी का मामला सदन में हंगामे का कारण बना है तो इससे पहले किसी और का मामला था और उससे पहले कुछ और उद्योगपतियों द्वारा बैंक का पैसा लेकर विदेश भागने का मामला जनता और मीडिया के बीच में छाया रहा । कहानी वही पुरानी है सिर्फ़ पात्र बदलते रहते हैं । कहने को तो हमारे यहाँ कई मज़बूत संस्थान स्थापित किए गए हैं जिनका काम ही सिर्फ़ एक है कि वह आम जनता द्वारा बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों में किए गए निवेश एवं उनके हितों को सुरक्षित रखने के लिए सतत काम करें लेकिन विगत वर्षों में जिस प्रकार से कतिपय उद्योगों एवं उनके कर्ताधर्ताओं द्वारा बैंक एवं अन्य संस्थाओं के पैसे को अनापशनाप ढंग से लेकर फिर उनका दुरुपयोग किए जाने का मामला सामने आया है उससे लगता है कि यह सभी संस्थाएं भी अपना अपना दायित्व निभाने में पूर्णतः असफल रही है और वह केवल छोटे छोटे मामलों में दख़ल देकर यह दिखाने का प्रयास करती रहती है कि वह निवेशकों के हितों की रक्षा में लगी रही है।

बैंकों में भी उद्योगों आदि को ऋण देने की एक विस्तृत व्यवस्था बनाई गई है जो काग़ज़ पर पूर्णतः नियमों के अनुसार है । इसके बावजूद लगातार वर्षों से सत्ता के निकट उद्योगपतियों को हज़ारों हज़ार करोड़ रुपया बिना उन उद्योगपतियों की असली हालत को देखे और पड़ताल किए बिना हुए अथवा सभी ज़रूरी अभिलेखों की गंभीरता से जाँच पड़ताल किए बिना ऋण दिए जाने के कारनामे रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं । इसी प्रकार की सत्ता और धन्नासेठों के अवैध गठजोड़ के चलते लाखों करोड़ों रूपये के पहले स्वीकृत किए गए ऋण को सरकारों को बट्टे खाते में डालना पड़ा है जबकि यह पैसा आम लोगों द्वारा की गई बचत का पैसा था ।
इन हालातों में बदलाव लाया जाना बहुत ज़रूरी है क्योंकि अगर इसी तरीक़े से राजनीति और धन्नासेठों के बीच के अवैध गठजोड़ की स्थिति आगे आने वाले वर्षों में भी बनी रही और उसको रोकने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया तो हमारे देश की जनता जिन समस्याओं जैसे ग़रीबी ,असमानता ,बेरोज़गारी ,भ्रष्टाचार और अन्याय से आज जूझ रही है उसकी हालत में सुधार आना असंभव सा प्रतीत होता है । परिस्थितियों में बदलाव के लिए राजनीति की दशा और दिशा में बदलाव किया जाना ही होगा क्योंकि वर्तमान की सड़ी गली राजनीति से देश का भला होने वाला नहीं है । यह स्पष्ट है राजनीति में आज व्याप्त धन के वर्चस्व को समाप्त किया जाना सबसे ज़रूरी है और राजनीति पर से धन के वर्चस्व को समाप्त करने के लिए उसे सबसे पहले जनोन्मुखी किया जाना होगा। आज की राजनीति हमारे देश का भविष्य कदापि नहीं बना सकती और देश की ग़रीबी , विपन्नता को दूर करने के बजाय आगे आने समय में उसको बढ़ावा देती रहेगी । इसके लिए ज़रूरत है ऐसी राजनीतिक व्यवस्था की जिसमें जाति , धर्म , काले धन , झूठ , फ़रेब के स्थान पर सच , ईमानदारी , न्याय का वर्चस्व हो और जनता से संवाद और उसके पास जाकर समर्थन लेकर चुनाव में विजय प्राप्त की जाए ना कि आज की तरह बिचौलियों के कंधे पर , रैली, रोड शो, हंगामा , पोस्टर , बैनर , होर्डिंग, अख़बार , टेलिविज़न विज्ञापन पर पैसा लुटा करके।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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