मूर्खों के हाथों में सत्ता विनाशकारी सिद्ध होती है

पूर्व आईएएस अधिकारी वीएस पांडे कहते हैं यह तथ्य सर्वमान्य है कि सत्ता और उसकी शक्ति लोगों को बदल देती है। जब लोग किसी राजनीतिक दल में शामिल होते हैं, तो ऐसा लगता है कि वे ज्यादातर चीजों के बारे में स्वतंत्र रूप से सच के माध्यम से सोचने के बजाय घिसी पिटी सोच का पालन करना चुनते हैं। सत्ता की ताकत किसी भी व्यक्ति की बुद्धि को नष्ट कर सकती है, उसे एक पुतले के समान बना कर छोड़ देती है।

एक मशहूर कहावत है कि एक मूर्ख से बहस करना एक कबूतर के साथ शतरंज खेलने की कोशिश करने जैसा है – कबूतर शतरंज के मोहरों को न केवल गिरा देता है बल्कि शतरंज की बिसात को भी गन्दा कर देता है और फिर जीत का दावा करने के लिए अपने झुंड में वापस उड़ जाता है। यह एक मजाकिया और चतुर कहावत है लेकिन इसका एक गूढ़ मतलब भी है। हम सभी के जीवन में भी ऐसे लोग होते हैं जिनके बारे में हम थोड़ा हल्का सोचते हैं – जरूरी नहीं कि हर चीज के बारे में, लेकिन निश्चित रूप से कुछ चीजों को लेकर, लेकिन हम सभी सामान्यतः उनके बारे में कुछ कहने से बचते हैं।
जर्मनी के विख्यात धर्मशास्त्री और दार्शनिक डायट्रिच बोन्होफ़र ने जर्मनी पर नाजिओं के बढ़ते हुए खतरनाक प्रभाव और हिटलर के एक छत्र प्रभाव का गंभीरता से अध्ययन करके कुछ निष्कर्ष निकाले जो वर्त्तमान समय में भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितना कि उस समय थे। बॉनहोफर के अनुसार मूर्ख व्यक्ति अक्सर दुष्ट व्यक्ति की तुलना में अधिक खतरनाक होता है। जहाँ दुष्ट व्यक्ति के बारे में किस्से , कहानी की किताबों और एक्शन फिल्मों में हम जान जाते हैं कि खलनायक कौन है क्योंकि वे अजबोगरीब कपड़े पहनते हैं, लोगों को यूँ ही मार डालते हैं, और अपनी शैतानी योजना पर पागलों की तरह काम करते दीखते हैं , वहीँ मूर्ख व्यक्तिओं को पहचान पाना मुश्किल होता है । वास्तविक जीवन में भी हमारे पास विश्वभर में बड़ी संख्या में स्पष्ट रूप में खलनायक हैं जिनमें खुलेआम मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले तानाशाह , तमाम तरह के गंभीर अपराधों में लिप्त अपराधी सरगने और भारी संख्या में हिंसक अपराधी शामिल हैं । ये लोग बहुत दुष्ट प्रकृति के लोग हैं लेकिन बॉनहोफर के अनुसार वे सबसे बड़े खतरे नहीं हैं, क्योंकि वे जाने जाते हैं और उनके बारे में सब को पता है कि वो क्या हैं और क्या क्या करते हैं । एक बार जब बुरे लोगों और उनकी बुराई की जानकारी हो जाती है, तो दुनिया की अच्छाई उसकी रक्षा करने और उसके खिलाफ लड़ने के लिए एकजुट हो सकती है। बॉनहोफर कहते हैं, “ किसी भी बुराई का विरोध किया जा सकता है; इसे उजागर किया जा सकता है और यदि आवश्यक हो तो बल प्रयोग से रोका जा सकता है। बुराई हमेशा अपने भीतर अपने स्वयं के विनाश का कीटाणु लिए रहती है।” लेकिन उसके विपरीत ,मूर्खता पूरी तरह से एक अलग समस्या है। हम दो कारणों से इतनी आसानी से मूर्खता से नहीं लड़ सकते। सबसे पहले, हम सामूहिक रूप से इसके प्रति अधिक सहिष्णु हैं। बुराई के विपरीत, मूर्खता ऐसा दोष नहीं है जिसे हममें से अधिकांश गंभीरता से लेते हैं। हम अज्ञानता के लिए दूसरों की आलोचना नहीं करते हैं। हम चीजों को नहीं जानने के लिए लोगों पर चिल्लाते नहीं हैं। दूसरा, मूर्ख व्यक्ति फिसलन भरा विरोधी होता है। वे बहस या तर्क से नहीं हारेंगे और तो और, जब मूर्ख व्यक्ति की पीठ दीवार से टिकी होती है — जब उनका सामना उन तथ्यों से होता है जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता — तो वे झिड़कते और फटकारते हैं। बोन्होफ़र ऐसे लोगों के बारे में कहते हैं कि “न तो विरोध और न ही बल प्रयोग से यहाँ कुछ हासिल होता है; कारण यह कि सभी तर्क बहरे कानों पर पड़ते हैं और ऐसे तथ्य जो किसी के पूर्वाग्रह का खंडन करते हैं तो उन पर विश्वास करने की ऐसे लोग कोई आवश्यकता ही नहीं समझते है – ऐसे क्षणों में मूर्ख व्यक्ति भी आलोचनात्मक हो जाता है – और जब तथ्य अकाट्य होते हैं, तो उन्हें केवल अप्रासंगिक, आकस्मिक के रूप में एक तरफ धकेल दिया जाता है। इस सब में मूर्ख व्यक्ति, दुर्भावनापूर्ण व्यक्ति के विपरीत, पूरी तरह से आत्म-संतुष्ट होता है और आसानी से चिढ़ जाता है, हमला तक करने को तैयार हो जाता है और खतरनाक हो जाता है।”

साफ़ तौर पर मूर्खता, बुराई की तरह, तब तक कोई खतरा नहीं है जब तक उसके पास शक्ति नहीं है। सामान्यतः हम सभी उन चीजों पर हंसते हैं जब तक वे हानिरहित होती हैं। लेकिन मूर्खता के साथ समस्या यह है कि यह अक्सर सत्ता के साथ-साथ चलती है। बॉनहोफर लिखते हैं, ” गंभीरता से परीक्षण करने पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि सार्वजनिक क्षेत्र में सत्ता का हर मजबूत उभार, चाहे वह राजनीतिक या धार्मिक प्रकृति का हो, मानव जाति के एक बड़े हिस्से को मूर्खता से संक्रमित करता है।” यह दो तरह से काम करता है। पहला यह कि मूर्खता आपको किसी पद या सत्ता पर काबिज होने से नहीं रोकती। इतिहास और राजनीति ऐसे उदाहरणों से भरे रहे हैं जब मूर्ख लोग शीर्ष पर पहुंच गए हैं । दूसरा, शक्ति की प्रकृति के लिए आवश्यक है कि आम लोग बुद्धिमान विचारों के प्रचलन के लिए आवश्यक कुछ क्षमताओं जैसे स्वतंत्रता, आलोचनात्मक सोच जैसी क्षमताएं का समर्पण करें। बॉनहोफर का तर्क है कि जो जितना अधिक सत्ता का हिस्सा बनता है, वह उतना ही व्यक्ति के रूप में छोटा बन जाता है। कोई भी करिश्माई व्यक्ति जो बुद्धिमत्ता और समझदार सोच से भरा हुआ होता है , ऐसा व्यक्ति जिस क्षण सत्ता में पदभार ग्रहण करता है, वह बेवकूफी भरा आचरण करने लग जाता है और ऐसा लगने लगता है कि जैसे नारे, जुमले और इसी तरह की चीजों ने उसे अपने कब्जे में ले लिया है।
यह तथ्य सर्वमान्य है कि सत्ता और उसकी शक्ति लोगों को बदल देती है। जब लोग किसी राजनीतिक दल में शामिल होते हैं, तो ऐसा लगता है कि वे ज्यादातर चीजों के बारे में स्वतंत्र रूप से सच के माध्यम से सोचने के बजाय घिसी पिटी सोच का पालन करना चुनते हैं। सत्ता की ताकत किसी भी व्यक्ति की बुद्धि को नष्ट कर सकती है, उसे एक पुतले के समान बना कर छोड़ देती है।
बॉनहोफर का तर्क यह है कि मूर्खता को बुराई से भी बदतर रूप में देखा जाना चाहिए। मूर्खता में हमारे जीवन को नुकसान पहुँचाने की कहीं अधिक क्षमता है। मैकियावेलियन स्कीमर्स के गिरोह की तुलना में एक शक्तिशाली बेवकूफ द्वारा अधिक नुकसान पहुंचाया जाता है। हम बुराई के बारे में ठीक से जानते है और हम इसे शक्ति से नकार सकते हैं। किसी भी भ्रष्ट, दमनकारी और परपीड़क के सम्बन्ध में हम जानते हैं कि हम कहाँ खड़े हैं , अपना स्टैंड लेना जानते हैं, लेकिन मूर्खता को मिटाना बहुत कठिन है। इसलिए यह एक खतरनाक हथियार है: क्योंकि दुष्ट लोगों को सत्ता हथियाने में कठिनाई होती है, उन्हें अपना काम कराने और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मूर्ख लोगों की आवश्यकता होती है जिन्हें किसी भी जगह भेंड़ों की तरह कई चीजों को करने के लिए एक साथ निर्देशित और संचालित किया जा सकता है। बुराई एक कठपुतली मास्टर है और यह नासमझ कठपुतलियां ही उसे उसके उद्देश्य को प्राप्त कराने में सफल करते हैं – वे चाहे आम जनता हों या सत्ता के गलियारों के अंदर बैठे लोग ।
बॉनहोफर का सबक है कि उन बेहूदा, मूर्खतापूर्ण पलों पर तभी तक हंसना ठीक है जब तक उससे कोई नुक्सान होता न दिखे लेकिन, जब मूर्खता हावी हो जाए तो हमें उसपर गुस्सा होना और डरना भी चाहिए। किसी भी समाज और देश को अपने आस पास पैदा हो रही परिस्थितिओं पर पैनी नजर रखते हुए समय रहते यह ताड़ लेना चाहिए कि यह हॅसने का समय है या गुस्सा करने का।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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