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(Update 12 minutes ago)

पानी की परेशानी

प्रो. एच सी पांडे

रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून,
पानी बिना न उबरे मोती,मानस,चून।

विश्व में जलसंकट लगातार बढ़ता जा रहा है और कहा जा रहा है कि शायद यही तीसरे विश्व-युद्ध का कारण बने।पर जो भी हो,इसका सीधा असर भारत के राजनैतिक परिद्रश्य पर भी हो रहा है।लगता है कि जल की कमी से ही राजनैतिक विचारधारा लुप्तप्राय हो गई है।धारा सूख गई है,और,विचार किनारों पर,धूल के कणों के समान बिखरे पड़े हैं।एक तरफ़,जब विचार स्थिर हो जाते हैं तब वे निष्प्रभावी हो जाते हैं क्योंकि समय गतिमान है,प्लेटफ़ार्म में बैठे रहने से समय की गाड़ी छूट जाती है और वे विचार बस कहानी रह जाते हैं,किसी जीवन्त समाज का हिस्सा नहीं।दूसरी तरफ़,राजनैतिक हवा के रुख़ के अनुसार,विचार,इधर-उधर,उड़ते रहते हैं, और अगर स्वार्थ की ऑंधियॉं चली तो इनकी धूल से दल नेताओं की ऑंखें बन्द हो जाती हैं,उचित अनुचित देखना संभव नहीं होता,परिणाम स्वरूप राजनैतिक दल को स्पष्ट विचार-धारा नहीं दिखती वरन विचारों के दलदल का आभास होता है।
आज़ादी का आठवां दशक,पर अभी तक एक भी राजनैतिक दल अपने घोषित सिद्धान्तों को न तो समझ पाया है और न संभाल पाया है।गांधीवाद,समाजवाद,साम्यवाद और न जाने क्या,क्या वाद सभी के मायने बदल चुके हैं।इतना ही नहीं वास्तव में सभी वाद प्राण त्याग चुके हैं और मिस्र के फ़ैरो की परिपाटी में ममी के रूप में, संबंधित दलों ने प्रदर्शनार्थ रखे हुए है।राजनैतिक सिद्धांत केवल भाषण देने अथवा पुस्तिका के रूप में छापने के लिये नहीं होते हे इनको निज जीवन शैली में अपनाना अनिवार्य है।आज के युग में सभी गांधीवादी,जो कभी सत्य और अहिंसा में आस्था रखते थे,वे,अब केवल महात्मा गांधी के चित्र को,आस्था के अस्थि- कलश स्वरूप,रख रहे हैं ।गांधी अभी जीवित हैं क्योंकि उनकी जयंती हर वर्ष मनाई जाती है पर गॉंधीवाद मर चुका है।कॉंग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता,खद्दर के परिधान,संभवत: २ अक्टूबर और ३० जनवरी को ही पहनते हैं,जवाहर जैकेट का स्थान बरबरी जैकेट ने ले लिया है,और,हज़ारों रुपये के जूते पहन कर गरीब जनता की भावनाओं को जूते मारते रहते हैं।समाजवादी भी स्पर्धा में हैं।समाजवाद की अंत्येष्टि कभी की हो चुकी और डा०राम मनोहर लोहिया की जयंती मनाना,मूलतः,समाजवाद का वार्षिक श्राद्ध रह गया है।साइकिल सवार समाजवादी,चुनाव जीतने पर कुछ ही समय में हज़ारों करोड़ की संपत्ति के स्वामी हो जाते हैं पर महज़ पॉंच-दस लाख के व्यापारी पर जनता को लूटने का आरोप लगाते रहते हैं।साइकिल को पार्टी चिन्ह बनाते हैं और साइकिल ट्रैक बनवाते हैं पर ख़ुद लग्ज़री गाड़ियों से नीचे पैर रखना पसंद नहीं करते।डा०लोहिया का अपना घर तक नहीं था पर समाजवादी मंत्री बड़े बड़े सरकारी बंगले हथियाने से चूकते नहीं है,और, मुख्यमंत्री ३-३ करोड़ की गाड़ियाँ,अपनी सवारी के लिये,सरकारी घन से क्रय करते है।समाजवाद से ‘स’मिट गया है और ‘आ’ की मात्रा ‘म’से हटकर ‘ज’ में लग गई है ।साम्यवादी दल शासित राज्यों में सामाजिक साम्य तक नहीं बन सका है आर्थिक साम्य तो दूर की कौड़ी है।हॉं,इतना अवश्य हुआ है कि भ्रष्टाचार के मामलों में सभी दलों के साथ साम्य बख़ूबी से बैठ गया है।भारत में साम्यवादी अवधारणा,शब्दों तथा लेखों तक ही सीमित रखी जाती है,जीवन-शैली में अपनाने को नहीं।वातानुकूलित कक्षों में,ब्रान्डेड परिधान सुसज्जित कामरेड,देशव्यापी क्रांति की योजना बनाते है पर कक्ष के बाहर निकलते ही,योजना को,चिलचिलाती धूप में पटरी पर बैठे हुए,ग़रीबों को थमा देते हैं,यह कह कर ,कामरेड तुम संघर्ष करो हम (स्टूडियो में बैठे हुए) तुम्हारे साथ हैं।क्या आसान तरीक़ा है इंक़लाब का !! माओ त्से तुंग जहां भी हैं,सोचते होंगे,काश,ऐसी क्रांति हम भी करते तो दो हज़ार मील के कष्टदायक मार्च से बच जाते,और,लेनिन,रेड इसक्वायर समाधि में,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की इस आसान जुगाड़ से ईर्ष्या से लाल हो रहे होंगे ।
“हरि अनंत,हरि कथा अनंता”,किस किस दल का बखान किया जाये ।
राजनैतिक दलो ने अपने चेहरे का पानी अपने स्वार्थ के तौलिए से सोख लिया है परंतु पढ़ा लिखा वर्ग भी बहुत पीछे नहीं रहा है ।ईमान का पानी कम होता जा रहा है,और ख़ुदगर्ज़ी के तौलिए,हर माप,हर रंग और हर तर्ज में मिल रहे हैं।जुलाहे तो क्या मशीनें तक थक रही हैं।

किराये के घर थे,बदलते रहे।”

वे दलदल में परिणित हो जाते हैं

(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)

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