झूठ और प्रपंच की राजनीति से सिर्फ़ देश का ही नुक़सान

ऐसा लगता है कि अपने करीबी और सहयोगी मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी से अरविंद केजरीवाल डरे हुए हैं और आबकारी घोटोले को लेकर सीबीआई और ईडी की जांच के परिणाम से आशंकित हैं। किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में, जब नीतिगत फैसलों को कैबिनेट द्वारा मंजूरी दी जाती है तो जिम्मेदारी मुख्यमंत्री पर आ जाती है। हजारों करोड़ के इस आबकारी घोटाले को लेकर केजरीवाल को बहुत कुछ जवाब देना होगा। प्रधानमंत्री या किसी अन्य पर आरोप लगाने से उन्हें कोई राहत नहीं मिलेगी। बल्कि उनकी मुश्किलें ही बढ़ेंगी जिसके लिए भी वह खुद ही जिम्मेदार होंगे।

विजय शंकर पांडेय
हमारे देश में राजनीतिक बयानबाजी का स्तर दिन पर दिन गिरता जा रहा है। प्रधानमंत्री के खिलाफ अरविंद केजरीवाल का हालिया बयान जो यू-ट्यूब पर वायरल हो रहा है, इस गिरावट का ताजा उदाहरण है। भारतीय लोकतंत्र में, संविधान ने नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई इसका खुलेआम उल्लंघन कर सकता है और किसी के बारे में बिना सबूत के कुछ भी कह सकता है।
शिक्षित लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वे कानून और उनके निराधार कथनों का परिणाम जानें। हम एक मीडिया समाज में रहते हैं जहां लगातार बहुत कपटपूर्ण ढंग से झूठ बोला जाता है और जितनी बार झूठ बोला जाता है, उसके अनुसार जनता में धारणा बनती है।
वर्तमान समय में राजनीति का मतलब केवल झूठ बोलकर और जनता को बेवकूफ बनाकर ऐसी कहानी गढ़नी है जो सच्चाई से कोसों दूर हो।
जितना जल्दी हो सके उतनी जल्द हमारे राजनेताओं के झूठ को बिके हुए मीडिया संस्थानों, समर्थक एंकरों द्वारा स्थापित करना बंद कर दें क्योंकि भोली जनता द्वारा उनकी कही बात को सच मान लिया जाता है। झूठ और गलत बातों को फैलाना नए और पुराने राजनेताओं की आदत सा बन गया है ।अरविंद केजरीवाल अपने शासन की ईमानदारी का विज्ञापन कर रहे हैं जबकि यह कड़वी सच्चाई भी आसानी से दिख रही है कि उनकी कैबिनेट के मंत्री भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में सलाखों के पीछे हैं। केजरीवाल, जिनकी गर्दन खुद दिल्ली में हुए हजारों करोड़ रूपये के आबकारी घोटाले में फंसी हुई है, वह प्रधानमंत्री पर आरोप लगाने का दुस्साहस कर रहे हैं।
ऐसा लगता है कि अपने करीबी और सहयोगी मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी से अरविंद केजरीवाल डरे हुए हैं और आबकारी घोटोले को लेकर सीबीआई और ईडी की जांच के परिणाम से आशंकित हैं। किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में, जब नीतिगत फैसलों को कैबिनेट द्वारा मंजूरी दी जाती है तो जिम्मेदारी मुख्यमंत्री पर आ जाती है। हजारों करोड़ के इस आबकारी घोटाले को लेकर केजरीवाल को बहुत कुछ जवाब देना होगा। प्रधानमंत्री या किसी अन्य पर आरोप लगाने से उन्हें कोई राहत नहीं मिलेगी। बल्कि उनकी मुश्किलें ही बढ़ेंगी जिसके लिए भी वह खुद ही जिम्मेदार होंगे। उन्हें जरूर याद रखना चाहिए कि कई राजनेताओं और औद्योगिक घरानों के खिलाफ झूठे आरोप लगाने की आदत ने उन्हें अतीत में अपूरणीय क्षति पहुंचाई है और उन्हें कई बार बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी है।

पिछले दशकों के दौरान, ऐसे लोगों ने झूठ बोलने की कला में इतनी निपुणता हासिल कर ली है कि वे शून्य से पहाड़ बना लेते हैं। इन दिनों एक मिथक प्रचारित किया जा रहा है कि सिसोदिया के रूप में भारत के पास दुनिया के सबसे अच्छे शिक्षा मंत्री हैं। पेड मीडिया की सक्रिय सहायता और मिलीभगत से केजरीवाल ने जिस झूठ को बढ़ावा दिया है, वह आश्चर्यजनक है। दिल्ली के शिक्षा मंत्री के रूप में सिसोदिया के कार्यकाल में दिल्ली सरकार ने कथित तौर पर चमत्कार किया है जो सही नहीं है क्योंकि
आधिकारिक डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि दिल्ली मॉडल के नाम पर गलत सूचनाओं को जनता के सामने पेश किया गया ।दिल्ली के मुख्यमंत्री ने इस बात को जोर-शोर से प्रचारित किया है कि सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज और सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा उनके तथाकथित दिल्ली मॉडल की पहचान रही है। हालांकि, उन्होंने जानबूझकर इस बुनियादी तथ्य को छोड़ दिया है कि देश भर की सभी राज्य सरकारें कई दशकों से लोगों को मुफ्त शिक्षा और मुफ्त चिकित्सा प्रदान कर रही हैं! आबकारी घोटाला, बस खरीद घोटाला आदि ने केजरीवाल के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का असली चेहरा पूरी तरह से बेनकाब कर दिया है।
वोट पाने और चुनाव जीतने के लिए भोली- भाली जनता को बेवकूफ बनाना पुरानी राजकीय कला है। हमारे देश के सभी राजनीतिक दल दशकों से इस संस्कृति को बनाए रखने के दोषी हैं। लेकिन बड़े-बड़े झूठ फैलाना, जनता के हजारों करोड़ों का गलत इस्तेमाल कर गलत बातों को फैलाना एक ऐसा हथियार है, जिसमें आज के नेताओं ने बड़ी चतुराई से महारत हासिल की है। वह जानते हैं कि है जिस झूठ को बार-बार बोला जाता है और उसे चुनौती भी नहीं मिलती है तो जनता उस झूठ को ही सच मान लेती है। दुर्भाग्य से मीडिया विज्ञापनों पर करोड़ों खर्च करने वालों का साथी बन गया है।
समय आ गया है कि लोग ऐसे लोगों द्वारा फैलाए जा रहे झूठ के बारे में जागरूक हों और उन्हें नकार दें। मीडिया को भी हमारे राजनीतिक वर्ग द्वारा फैलाए जा रहे इन झूठे आख्यानों से होने वाले भारी नुकसान का एहसास होना चाहिए। वे भुगतान किए गए विज्ञापनों के बोझ तले सच्चाई को दबा नहीं सकते हैं और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में अपनी जिम्मेदारियों से दूर नहीं हो सकते हैं। उन्हें यह महसूस करना होगा कि एक ईमानदार, सतर्क और जनहितैषी मीडिया के बिना लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता है। मीडिया हाउस के हितों की सेवा करना नैतिक पत्रकारिता नहीं है। ऐसे राजनेताओं द्वारा फैलाई जा रही झूठ और झूठ की संस्कृति को समाप्त करने के लिए उन्हें एक साथ आना होगा। नेतृत्व एकता, ईमानदारी और जवाबदेही के बारे में है। हमें विपरीत तथ्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए। नैतिकता से राजनीति को परिभाषित करना चाहिए। केजरीवाल और उनके जैसे लोगों को इस पर विचार करना चाहिए।

(विजय शंकर पांडेय भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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