जब तक महिलाएं आर्थिक विकास में बड़े पैमाने पर योगदान देना शुरू नहीं करतीं, तब तक समृद्धि और विकास लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सकता है। सभी विकसित देशों में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी दर पर एक नजर डालने से पता चलता है कि महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग पुरुषों के बराबर है। जाहिर है, सभी स्तरों पर कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाए बिना एक समृद्ध और शक्तिशाली भारत का सपना एक दूर का सपना बनकर रह जाएगा।
वी0एस0 पांडेय
महिलाएं हमारी आबादी का लगभग पचास प्रतिशत हैं, लेकिन सरकारी नौकरियों में उनकी उपस्थिति हमारे नीति निर्माताओं के लिए चिंता का विषय है। संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सिविल सेवा परीक्षा के परिणामों की घोषणा के बाद हर साल देश की इस प्रतिष्ठित परीक्षा में महिलाओं के प्रदर्शन को मीडिया में प्रमुख स्थान दिया जाता है। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष अंतिम रूप से चयनित महिलाओं का प्रतिशत बढ़ा है। कई दशकों से, सिविल सेवा परीक्षाओं में सफल महिला उम्मीदवारों का प्रतिशत 20 से 25 प्रतिशत के बीच रहा है। लेकिन जहां तक सरकारी नौकरियों में महिलाओं की हिस्सेदारी की बात है तो समग्र तस्वीर निराशाजनक बनी हुई है, हाल ही में प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार सरकारी नौकरियों में उनका प्रतिनिधित्व अभी भी 11 से कम है।
निस्संदेह सरकारी नौकरियों में महिलाओं की संख्या में वर्षों से उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। इससे यह महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि क्या सरकारों को इस मुद्दे के समाधान के लिए कुछ और प्रयास करने की आवश्यकता है।
आर्थिक अवसरों के मामले में पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता भारत सहित दुनिया भर के अधिकांश देशों में हमेशा एक समस्या रही है। जब श्रम बल में देश में पुरुषों और महिलाओं की भागीदारी की बात आती है, तो कुछ राष्ट्र दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। विश्व स्तर पर, पुरुष आबादी का एक उच्च हिस्सा कार्यरत है। कुल मिलाकर, इस तथ्य के बावजूद कि सामान्य रूप से अधिक से अधिक महिलाएं काम कर रही हैं, लेकिन वह लगभग हमेशा सरकार में कम प्रतिनिधित्व करती हैं और काफी कम शीर्ष पदों पर पहंुच पाती हैं। हमारे देश में एक हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी हाल ही में 2005 में 36.7 प्रतिशत से गिरकर 26 प्रतिशत हो गई है, यह दर्शाता है कि 95 प्रतिशत या 19.5 करोड़ महिलाएं असंगठित क्षेत्र या अवैतनिक नौकरियों में कार्यरत हैं।
इसी तरह सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा हाल ही में किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) से पता चलता है कि वित्तीय वर्ष 2018 में शहरी महिलाओं में बेरोजगारी दर 10.8 प्रतिशत पर सबसे अधिक थी, जबकि ग्रामीण महिलाओं में यह 3.8 प्रतिशत थी। नीति आयोग ने अपने ’75वें साल में इंडिया’ रोड मैप में सुझाव दिया था कि सरकार को महिला श्रम बल की भागीदारी को 30 फीसद तक बढ़ाने की दिशा में प्रयास करना चाहिए। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि वह महिला श्रम के लिए एक ऐसा रोडमैप तैयार करेगी कि आने वाले पांच वर्ष में आश्चर्यजनक ढंग से देश में महिला श्रम बल हिस्सेदार में बढ़ोत्तरी होगी।
भाजपा ने घोषणापत्र में महिलाओं के लिए बेहतर रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए कंपनियों को प्रोत्साहित करने का भी संकल्प लिया। यह परिकल्पना की गई थी कि यह एक बहु-क्षेत्रीय कार्य होगा और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए श्रम और रोजगार, महिला और बाल विकास, कौशल विकास और मानव संसाधन विकास सहित विभिन्न मंत्रालयों को एक साथ मिलकर काम करना होगा।
चूंकि सरकार एक योजना निर्धारित करती है इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि स्पष्ट रूप से की जाने वाली कार्रवाइयों को रेखांकित करती है और यह सुनिश्चित करती है कि इसके महिला-केंद्रित नीतिगत उपाय सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
जब तक महिलाएं आर्थिक विकास में बड़े पैमाने पर योगदान देना शुरू नहीं करतीं, तब तक समृद्धि और विकास लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सकता है। सभी विकसित देशों में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी दर पर एक नजर डालने से पता चलता है कि महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग पुरुषों के बराबर है। जाहिर है, सभी स्तरों पर कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाए बिना एक समृद्ध और शक्तिशाली भारत का सपना एक दूर का सपना बनकर रह जाएगा।
सरकारों को दीर्घकालिक और अल्पकालिक लक्ष्यों को देखते हुए नीतियां बनानी होंगी। कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए जो नीतिगत ढांचा तैयार किया गया है, उसमें शुरू से ही एक समयबद्ध कार्यान्वयन रोड मैप होना चाहिए। वर्तमान में ऐसा प्रतीत होता है कि विभिन्न मंत्रालयों द्वारा इस संबंध में 30 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
यहीं पर सरकारों को सही संकेत देने के लिए तत्काल कोई प्रभावी पहल करने की जरूरत है। ताकि महिलाएं राष्ट्र में एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए आगे आने में सक्षम बन सकें। हमारे संविधान निर्माता हमारी महिला आबादी के सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन के बारे में जानते थे। इसीलिए हमारे संविधान के अनुच्छेद 15(3) में प्रावधान है कि राज्य को महिलाओं के लिए कोई विशेष प्रावधान करने से कोई नहीं रोक सकता। इसलिए एक अल्पकालिक लक्ष्य के रूप में, महिलाओं को आगे आने और राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है।
इस संबंध में, कई राज्य सरकारों ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं को पार्श्व आरक्षण प्रदान करने जैसे कुछ कदम उठाए हैं और मौजूदा परिस्थितियों में महिलाओं के सामने आने वाली प्रतिकूलताओं को ध्यान में रखते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं में महिला उम्मीदवारों को आयु में छूट प्रदान की है।
इसी तरह केंद्र सरकार को यूपीएससी द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षाओं और ऐसी अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महिला उम्मीदवारों के लिए ऊपरी आयु सीमा को बढ़ाकर 35 वर्ष करके इस दिशा में पहला कदम उठाने की जरूरत है। इसके अलावां केंद्र सरकार की सभी नौकरियों में 30 प्रतिशत पार्श्व आरक्षण का प्रावधान करना चाहिए। यह छोटा कदम एक मजबूत संकेत देगा कि सरकार महिलाओं को शीर्ष पदों पर पहुंचाने के लिए और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए गंभीर है। इसी तरह की सुविधा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए उपलब्ध है, जिन्हें न केवल इन कदमों से लाभ हुआ है, बल्कि सरकारी पदों और सिविल सेवाओं में उनकी संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कार्यबल में महिलाओं की 30 प्रतिशत भागीदारी हासिल करना भाजपा का चुनावी वादा था, उस दूरदर्शी संकल्प को भुनाने के लिए ये ठोस कदम उठाने का समय आ गया है। लैंगिक समानता एक समावेशी और जवाबदेह लोक प्रशासन का मूल है। सेवाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना लैंगिक असमानताओं को दूर करने में महत्वपूर्ण साबित होगा।
(वी0एस0 पांडेय पूर्व सचिव भारत सरकार)