मणिपुर जातीय हिंसा को नियंत्रित करने के लिए निष्पक्ष दृष्टिकोण जरूरी

मणिपुर में जारी हिंसा के मामले में अब समय आ गया है कि निष्पक्षता से कार्रवाई कर और कड़े कदम उठाकर हिंसा को जल्द खत्म किया जाए। आबादी के सभी वर्गों को यह कड़ा संकेत दिया जाना होगा कि हिंसा में शामिल सभी लोगों से सख्ती से निपटा जाएगा। पूर्व आईएएस अधिकारी वी0एस0 पाण्डेय लिखते हैं, हिंसा थमने के बाद, विवाद के सभी हितधारकों को सौहार्दपूर्ण ढंग से और सभी की संतुष्टि के लिए मुद्दे को हल करने के लिए बुलाया जा सकता है।

विजय शंकर पांडे

हिंसा आम तौर पर दुनिया भर में अन्याय से ही उत्पन्न होती है। यह अन्याय की एक कथित भावना मात्र भी हो सकती है। मानव सभ्यता अन्याय के उदाहरणों से भरी पड़ी है जिसके परिणामस्वरूप बड़े बड़े युद्ध हुए, जिसके परिणामस्वरूप रक्तपात हुआ और बहुमूल्य जिंदगियों की भारी क्षति हुई। भारत में चाहे वह नक्सलवाद हो या सांप्रदायिक संघर्ष या जातीय युद्ध, उन सभी की उत्पत्ति आबादी के एक वर्ग के साथ किए गए अनुचित व्यवहार के चलते ही हुई है, जिन्हें न्याय और सही व्यवहार से वंचित रखा गया था।
एक शक्तिशाली समूह द्वारा लगातार शोषण के कारण शोषितों के लिए जब न्याय पाने का कोई रास्ता नहीं रह जाता है, तो उसके कारण ही वर्तमान और अतीत में अधिकांश संघर्ष और झगड़े हुए हैं। मणिपुर में जातीय हिंसा इस प्रकार के संघर्ष का एक और उदाहरण है, जिसके कारण मणिपुर राज्य में अभूतपूर्व हिंसा हुई है, जिससे कई निर्दोष लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।
राज्य में काफी समय से जातीय हिंसा भड़क रही थी क्योंकि इम्फाल घाटी में जातीय समूहों के बीच आपसी संदेह का एक लंबा इतिहास रहा है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, वर्तमान संघर्ष तब शुरू हुआ जब मणिपुर सरकार ने आदिवासी ग्रामीणों को आरक्षित वनों से बेदखल करने का अभियान शुरू किया। मणिपुर में हिंसा में वर्तमान वृद्धि की जड़ें अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के लिए मैतेई समुदाय की पुरानी मांग में हैं।
मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को 29 मई तक केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को मैतेई समुदाय के लिए एसटी का दर्जा दिए जाने की सिफारिश करने का निर्देश देने के बाद स्थिति और खराब हो गई। याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट के समक्ष तर्क दिया था कि इस समुदाय को भारतीय संघ में मणिपुर के विलय से पहले एक बार एसटी का दर्जा मिला था और उन्होंने इस स्थिति की बहाली की मांग की है।
मणिपुर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया और मैतेई समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिए मणिपुर के सभी दस पहाड़ी जिलों में एक छात्र संगठन द्वारा बुलाए गए आदिवासी एकजुटता मार्च में हजारों लोगों ने भाग लिया।
मणिपुर में सरकार चाहे किसी भी पार्टी की रही हो, हमेशा से प्रशासन पर मैदानी मैतेई लोगों का वर्चस्व रहा है, जो राज्य की आबादी का लगभग 53 प्रतिशत हैं, जबकि आदिवासी ज्यादातर नागा और कुकी हैं जो मणिपुर की आबादी का 40 प्रतिशत हैं और अधिकांश घाटी के आसपास की पहाड़ियों में रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि पहाड़ी जिले के कई क्षेत्रों को आरक्षित वन/संरक्षित वन घोषित किए जाने के बाद सैकड़ों कुकी आदिवासियों को उनके पारंपरिक क्षेत्र से बेदखल कर दिया गया था। कुकी नेताओं का दावा है कि कुकी लोगों की वर्तमान पीड़ा बेदखली को लेकर नहीं है, बल्कि सैकड़ों से अधिक प्रभावित लोगों को पुनर्वास प्रदान करने में विफलता को लेकर है।
वर्तमान विवाद के पीछे चाहे जो भी विवादास्पद कारण हों, किसी भी प्रकार के मुद्दे को सुलझाने के लिए कहीं भी, किसी के द्वारा भी हिंसा अक्षम्य और अस्वीकार्य है। हिंसा में लिप्त और कानून को अपने हाथ में लेने वालों को स्थापित प्रक्रियाओं का पालन करते हुए देश के कानून के अनुसार दंडित करने की आवश्यकता है। अपने नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करना प्रत्येक राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी है। इस मोर्चे पर सरकारों की किसी भी विफलता को सभी हितधारकों द्वारा बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। जब भी कहीं भी अचानक स्वतः स्फूर्त हिंसा भड़क उठती है तो उसे रोका जाना मुश्किल होता है लेकिन एक बार जब ऐसी घटनायें सरकारों के संज्ञान में आ जाती है, तो आगे की हिंसा और अनियंत्रित विनाश को रोका जा सकता है, यदि कानून-व्यवस्था मशीनरी ऐसा करने की इच्छाशक्ति और इरादा दिखाती है।
किसी भी विवाद या असहमति में सवाल यह नहीं है कि कौन सही है और कौन गलत है। सरकार के लिए हमारे देश के हर हिस्से में रहने वाले लोग उसके नागरिक हैं और राज्य प्रत्येक व्यक्ति के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने के लिए बाध्य है। यह इतिहास का एक लाभप्रद सबक है कि प्रत्येक विवाद को हल किया जा सकता है यदि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग ऐसा करना चुनते हैं। उन्हें जाति, पंथ, धर्म, भाषा की परवाह किए बिना सभी के साथ न्याय करने की इच्छा दिखानी चाहिए।
हमारे देश की संवैधानिक व्यवस्था में राज्य की कोई जाति या धर्म नहीं होता है और यह हमारे संविधान के अनुसार सभी को कानून की समान सुरक्षा प्रदान करने के लिए बाध्य है। मणिपुर में जारी हिंसा के मामले में अब समय आ गया है कि निष्पक्षता से कार्रवाई कर और कड़े कदम उठाकर हिंसा को जल्द खत्म किया जाए। आबादी के सभी वर्गों को कड़ा संकेत देना होगा कि हिंसा में शामिल सभी लोगों से सख्ती से निपटा जाएगा। हिंसा थमने के बादए विवाद के सभी हितधारकों को मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से और सभी की संतुष्टि के लिए हल करने के लिए बुलाया जा सकता है। अतीत में ऐसे विवादों को सफलतापूर्वक सुलझाने का हमारा एक लंबा इतिहास है। अब राज्य और केंद्र सरकारों को न केवल आग बुझाने के लिए तेजी से काम करना चाहिए, बल्कि सभी को उचित समाधान प्रदान करने के लिए निष्पक्षता से काम करना चाहिए।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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