सभी सरकारें व्याप्त भ्रष्टाचार को ख़त्म करने में पूरी तरह विफल रही हैं

आजादी के बाद से देश और उसके राज्यों ने कई पार्टियों की कई सरकारों को देखा परखा लेकिन सभी जाने अनजाने एक चीज़ पर हमेशा एक राय दिखे कि भ्रष्टाचार तो रहेगा ही इस लिए उसको समाप्त या कम करने के हवा हवाई वादे तो सभी ने कभी कभार ज़रूर किए लेकिन किया कुछ भी नहीं । नतीजा देश के सामने है कि थाने , तहसील , सरकारी दफ़्तर में बिना रिश्वत या सिफ़ारिश के न्याय पाना अत्यंत दुर्लभ आज भी है । यह सब देख कर भी आज सभी नेता और पार्टी अपने आँखों पर पट्टी बांधे बैठी हैं जैसे सब कुछ ठीक ठाक हो और भ्रष्टाचार कही ग़ायब हो चुका हो ।

वी यस पाण्डेय

देश की लोक सभा के आम चुनाव महीनों की गहमा गहमी के बाद पूरे हुए , परिणाम भी आगाए । जैसा हमेशा होता है कि कोई ना कोई तो जीतता ही है और उसके गले को मालाएँ सुशोभित करती है , गद्दी भी मिलती है , हुकूमत भी हाथ में आती है ।लेकिन जो हार गए वह तो हार के कारणो को ढूँढने में जुट जाते हैं और फिर वही ढाल के तीन पात । जीते कोई भी , आम लोगों को शायद ही कोई फ़र्क़ पड़ता हो । पाँच सौ साल से अधिक पहले गोस्वामी तुलसीदास की प्रसिद्ध चौपाई “ कोय नृप होय हमें का हानी, चेरी छोड़ न होइबे रानी “ आज पूर्णतः चरितार्थ है । नए नए नेता आए और गए , सत्ताधारियों के झंडे बदले , रंग भी बदला । जो नहीं बदला वह सभी को मालूम है – सत्ता का चरित्र

।आजादी के बाद से देश और उसके राज्यों ने कई पार्टियों की कई सरकारों को देखा परखा लेकिन सभी जाने अनजाने एक चीज़ पर हमेशा एक राय दिखे कि भ्रष्टाचार तो रहेगा ही इस लिए उसको समाप्त या कम करने के हवा हवाई वादे तो सभी ने कभी कभार ज़रूर किए लेकिन किया कुछ भी नहीं । नतीजा देश के सामने है कि थाने , तहसील , सरकारी दफ़्तर में बिना रिश्वत या सिफ़ारिश के न्याय पाना अत्यंत दुर्लभ आज भी है । यह सब देख कर भी आज सभी नेता और पार्टी अपने आँखों पर पट्टी बांधे बैठी हैं जैसे सब कुछ ठीक ठाक हो और भ्रष्टाचार कही ग़ायब हो चुका हो ।

राजनीतिक पार्टियों और देश के नेताओं के इस आचरण और व्यवहार पर कभी कोई चर्चा तक ना होना क्या किसी बड़े संकट की आहट तो नहीं, यह सवाल उठना बहुत ही लाज़मी है । सच्चाई तो यह है कि वर्षों से सार्वजनिक जीवन में सर्वत्र व्याप्त बेइमानी , झूट और फ़रेब की ओर से आँख फेर कर बैठी व्यवस्था के कर्मों का फल आज हम सभी के सामने है – देश दो भागों में बटा हुआ दिखता है , जिसमें लगभग बीस करोड़ लोग ऐसे जिनके जीवन की सभी आवश्यकताओं की भली भाँति पूर्ति हो रही है , उनको सभी नागरिक सुविधाएँ अनवरत बिजली , नल का साफ़ पानी , सुसज्जित घर , व्यवस्थित नाली और नाबदान , सुविधा युक्त शौचालय एवं रसोईघर , चलने के लिए चार पहिया वाली गाड़ी , बच्चों की पढ़ाई के लिए सुसज्जित स्कूल, चिकित्सा की सम्यक् सुविधा , पढ़े लिखे होने के कारण ठीक ठाक नौकरी और ज़रूरत पड़ने पर न्याय पाने का दम मौजूद है । दूसरी तरफ़ सौ करोड़ से भी ज़्यादा ऐसी जनता खड़ी है जिसके पास शायद ही कुछ हो । इस जनता के बारे में शायद अब सत्ताधारियों ने सोचना बंद सा कर दिया है क्योंकि इन्हीं लोगों की विपन्नता को प्रदर्शित करने के लिए सिर्फ़ एक आँकड़ा काफ़ी है – हमारा देश प्रति व्यक्ति सालाना आय के मामले में दुनिया भर के देशों की सूंची में आज भी १२९ वें नम्बर पर खड़ा है , यानी दरिद्र देशों की सूंची के बीच में ।ऐसा लगता है कि सत्ता पर बैठे लोगों ने इस सच्चाई की ओर से आँख बंद सी कर रखी है कि वर्षों से सिर्फ़ अमीरों के हितों को ध्यान में रख कर बनाई गई आर्थिक नीतियों के परिणाम स्वरूप आज हमारे देश में अमीरों और ग़रीबों की बीच की खाई बढ़ते बढ़ते इतनी गहरी हो गई है कि दुनियाभर में भारत इस मामले में सबसे अव्वल दर्जे पर आज बैठ गया है । इस तथ्य को सभी अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन उसके बाद भी देश की सरकार के द्वारा अपनी आर्थिक नीतियों में परिवर्तन करने के कोई भी संकेत नहीं दिए जा रहे हैं , यह स्पष्ट है ।देश में बढ़ती जा रही आर्थिक विषमता को ध्यान में रखते हुए यह अत्यंत आवश्यक है कि ग़रीबों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने हेतु तत्काल युद्ध्स्तर पर कदम उठाए जाएँ और ऐसी आर्थिक नीतियाँ लागू की जाएँ जो आम लोगों के जीवन में व्याप्त तमाम तरह की विपन्नता को समयबद्ध तरीक़े से दूर कर सके ।
इसके लिए ज़रूरी होगा कि सभी के लिए समान स्तर की शिक्षा की व्यवस्था सुनिश्चहित हो और इस के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रारम्भ किया जाए जिसके तहत प्रत्येक सात से आठ गाँव के बीच कक्षा एक से कक्षा बारह तक की उच्चतम कोटि की शिक्षा प्रदान करने वाले सभी व्यवस्था से सुसज्जित विद्यालय स्थापित किए जाएँ ताकि देश में आम जनों में व्याप्त शिक्षा की ग़रीबी को समाप्त किया जा सके । इसी तरह सभी के लिए निशुल्क एवं उच्च स्तरीय चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए अगले तीन वर्षों में सभी ज़िला अस्पतालों को पूर्णतः सुसज्जित किया जाए और साथ ही देश में मेडिकल शिक्षा की सीट वर्तमान में एक लाख से बढ़ा कर अगले पाँच वर्षों में सात लाख करनी होगी ताकि चिकित्सकों की वर्षों से व्याप्त कमी को दूर किया जा सके । तीसरा – सभी गाँव का पुनर्निर्माण करने की राष्ट्र्व्यापी दस वर्षीय योजना को समयबद्ध तरीक़े से क्रियान्वित किया जाना होगा जिसके तहत सभी गाँव में सभी नागरिक सुविधाओं को उपलब्ध कराया जाना होगा ।यह तीन कदम राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए ज़रूरी हैं और इनसे गरीब और अमीर के बीच की खाई को पाटा जा सकेगा और जन सामान्य को जीवन की दौड़ में बराबरी से हिस्सेदार बनाने में मील का पत्थर साबित होंगे।लेकिन सर्वोच्च प्राथमिकता भ्रष्टाचार समाप्त करने को देनी होगी । यह काम सबसे आसान है क्योंकि इसको करने के लिए सिर्फ़ ईमानदार नीयत की ज़रूरत है । हाँ उसके पहले राजनीतिक परिदृश्य में काले धन की व्यापकता को समाप्त करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाने होंगे ।

देश के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है , यह स्पष्ट है ।ज़रूरत इस बात की है कि संसाधनों का सदुपयोग देश की आम जनता के भले के लिए किया जाए और देश को समृद्धशाली देश बनाया जाए जहां अमीर और गरीब के बीच में कोई खाई ना हो , विषमता भी सिर्फ़ ऐसी हो जो किसी को ना खले । यह कार्य बिल्कुल मुश्किल नहीं । ज़रूरत है सिर्फ़ जनोन्मुखी राजनीतिक इच्छाशक्ति की ।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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