दिल्ली के मतदाताओं को बेईमान और नकली राजनेताओं से सतर्क रहने की जरूरत

आज समय की माँग है कि राजनीति को ईमानदारी से करने के लिए लोग आगे आयें और ऐसा करते हुए सभी को सदैव नक्कालों से सावधान रहना होगा ताकि कहीं “दूसरा केजरीवाल” फिर से ना पैदा हो जाए और लोगों को झाँसा देकर सत्ता हथिया ले और जनता फिर ना ठगी जाये । यह बात साफ़ है कि राजनीति को शुद्ध करना आसान नहीं लेकिन असंभव भी नहीं ।विश्व के कई देश अपनी राजनीति को काफ़ी कुछ ठीक करने में सफल रहे है और इन देशों की सरकारें आम जन का जीवन निरापद बनाने में सफल रहे हैं ।
वी यस पाण्डेय

हमारे देश की राजनीति में चाटुकारिता सदैव से सफलता का सबसे बड़ा मूलमंत्र रहा है , चाहे सत्तर के दशक में इंदिरा इस इंडिया का नारा रहा हो , या तत्कालीन प्रधान मंत्री को चण्डी का नाम देना या अब दिल्ली का शासन भगवान राम के अयोध्या का शासन उनके भाई भरत के द्वारा उनकी खड़ाऊँ के उदाहरण के अनुकरण करते हुए चलाने का नाटक करने का मामला हो । दुःखद तो यह है कि चाटुकारिता की दौड़ में नीचे गिरने की अब कोई सीमा नहीं रही , यह बात इस खेले जा रहे ड्रामे के नायकों के आचरण पर मात्र दृष्टिपात करने से ही साफ़ हो जाएगी । कहाँ एक तरफ़ मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम का चरित्र और दूसरी तरफ़ शराब घोटाले में लिप्त सैकड़ों करोड़ की रिश्वत लेने के मामले में महीनों तक जेल काट चुके केजरीवाल । कहाँ एक तरफ़ भरत जैसे त्यागी भ्राता भक्त और वही दूसरी और लगातार झूठ बोल कर भ्रष्टाचार में लिप्त केजरीवाल को देश का सबसे ईमानदार व्यक्ति बताने वाली दिल्ली की वर्तमान मुख्यमंत्री ।
आज देश के सामने यह यक्ष प्रश्न खड़ा है कि क्या कभी देश को इस प्रकार के चाटुकारों से और ऐसी चाटुकारिता भरी राजनीतिक संस्कृति से मुक्ति मिलेगी या सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा और देश को राजनीतिक परिदृश्य पर चाटुकारिता के नये नये कीर्तिमान देखने को इसी प्रकार मिलता रहेगा ।
प्रकृति का यह अटूट नियम है कि किए गए कर्म के अनुरूप ही परिणाम प्राप्त होते है यानी परिवर्तन के लिए आवश्यक है कि तदनुरूप कर्म किया जाये अन्यथा जैसा चल रहा वैसे ही चलता रहेगा ।दूसरा यक्ष प्रश्न मुँह बाये देश के सामने यह खड़ा है कि इस भ्रष्ट , चाटुकारिता परिपूर्ण राजनीतिक परिदृश्य जो पूरी तरह से काले धन और जाति /धर्म के आधार पर आम जन को बाँट कर सत्ता पाने का खेल बन कर रह गया है , को कौन बदलेगा और कैसे ? निर्विवादित रूप से हर कालखंड में ऐसी परिस्थितियों विश्वभर में लोगों के सामने आती रहीं और लोगों ने मिलजुल कर परिस्थितियों का बहादुरी से ना केवल उनका सामना किया बल्कि हालातों को आम जन के अनुकूल बनाने में सफलता भी पाई ।
आम लोगों के संघर्ष का ही यह परिणाम है कि विश्व के अधिकांश देशों से राजशाही को उखाड़ फेंका गया और लोगों की सत्ता लोकतंत्र के रूप में स्थापित हुई । अब यह लोकशाही भी चाटुकारिता, भ्रष्टाचार, ग़ैरबराबरी , असमानता , कमज़ोरों के शोषण जैसे मर्ज़ से ग्रसित हो गई है । अब समय आगया है कि इन मर्ज़ों से लोकतांत्रिक व्यवस्था को मुक्त करने के लिए एकजुट होकर संघर्ष किया जाये और देश के संविधान निर्माताओं द्वारा स्थापित व्यवस्था को मनसा , वाचा , कर्मणा लागू करवाया जाए जहां सबके लिए बराबर का न्याय उपलब्ध हो , जहां ऊँच- नीच का कोई भेद ना रहे , ग़रीबी का नामोनिशान ना हो और सभी निश्चिंत हो कर अपनी पूर्णता को प्राप्त कर सकें ।
इस प्रयास की शुरुआत ऐसी शुद्ध राजनीति से ही संभव है जहां जाति, धर्म , काले धन और बाहुबल की कोई जगह ना हो । दुर्भागवश आज देश के राजनीतिक परिदृश्य में सक्रिय अधिकांश राजनीतिक दल किसी ना किसी रूप में जाति, भाषा , धर्म , अलगाववाद , क्षेत्रवाद के आधार पर ही वोट इकट्ठा करने में लगे हुए दिखते हैं । इससे भी बड़ी दुःखद स्थिति तो यह है कि इन तमाम दलों को कई राज्यों में वर्षों तक सत्ता मिली लेकिन उसके बाद भी छोटे मोटे बदलाव के अलावा कोई भी राजनीतिक दल ईमानदारी से आम जन को सामाजिक और आर्थिक न्याय दिला पाने में पूर्णतः असफल रहे ।
देश की सरकारों पर काबिज रहे विभिन्न राजनीतिक भी देश की आज की हालत के लिए ज़िम्मेदार है जहां अभी भी पचास करोड़ लोग गरीब हैं और प्रति व्यक्ति आय के मामले में हमारा देश दुनिया के फिसड्डी देशों की क़तार में आज खड़ा है । आश्चर्य की बात तो यह है कि सभी दल हर चुनाव से पहले अपना लंबा चौड़ा घोषणा पत्र प्रस्तुत करके लोगों की तमाम समस्याओं के समाधान का आश्वासन तो ज़रूर देते हैं लेकिन सतहत्तर वर्षों की आज़ादी के बाद भी अस्सी करोड़ लोगों को हर महीने पाँच किलो खाद्यान्न देना सरकार की मजबूरी बनी हुई है ।
आज समय की माँग है कि राजनीति को ईमानदारी से करने के लिए लोग आगे आयें और ऐसा करते हुए सभी को सदैव नक्कालों से सावधान रहना होगा ताकि कहीं “दूसरा केजरीवाल” फिर से ना पैदा हो जाए और लोगों को झाँसा देकर सत्ता हथिया ले और जनता फिर ना ठगी जाये । यह बात साफ़ है कि राजनीति को शुद्ध करना आसान नहीं लेकिन असंभव भी नहीं ।विश्व के कई देश अपनी राजनीति को काफ़ी कुछ ठीक करने में सफल रहे है और इन देशों की सरकारें आम जन का जीवन निरापद बनाने में सफल रहे हैं । यही वह देश हैं जो अपनी व्यवस्था से भी भ्रष्टाचार को काफ़ी हद तक समाप्त कर चुके हैं । इन देशों की सफलता के मूल में इन देशों की काफ़ी हद तक साफ़ सुथरी , भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति ही रही है । हमारे देश का भविष्य तभी सुखद होगा जब राजनीति ईमानदार रास्ते पर चलेगी ।भ्रष्ट राजनीति का खामियाजा देश सतहत्तर वर्षों से भुगत रहा है । देश को अब कहना ही पड़ेगा कि – बहुत हुआ , अब और नहीं ।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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