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(Update 12 minutes ago)

मोदी बनाम राहुल बनाने की कांग्रेस रणनीति को झटका

राजेन्द्र द्विवेदी

चन्द महीनों बाद होने जा रहे 2019 लोकसभा चुनाव में मोदी बनाम राहुल बनाने की कांग्रेस की रणनीति को झटका लगा है। लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आैर केन्द्र सरकार पर जमकर हमला किया था। जिससे राहुल को देश भर में काफी समर्थन भी मिला। प्रधानमंत्री से गले मिलने की घटनाए राफेल डील पर कमीशन लेने का आरोप जैसे तमाम मुद्दो पर राहुल की आक्रामक शैली से बड़ी चर्चा शुरू हो गयी थी कि देश में मोदी के विकल्प राहुल ही है। जनसमर्थन एवं मीडिया समर्थन से उत्साहित कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव के दूसरे दिन ही कार्य समिति बैठक बुलायी आैर उसमें राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया। कांग्रेस को उम्मीद थी जिस तरह से अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल को समर्थन मिला है उससे राजनीतिक रूप से तत्काल बनाना चाहिए। इसीलिए आनन.फानन में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्यासी घोषित कर दिया। कांग्रेस की रणनीति थी कि राहुल का नाम आगे करने से भाजपा विरोधी दल समर्थन करेंगे आैर 2019 का चुनाव मोदी बनाम राहुल हो जायेगा कांग्रेस की इस रणनीति को विपक्ष का समर्थन न मिलने से करारा झटका लगा। देवगौड़ा को छोड़कर किसी भी नेता ने राहुल गांधी से प्रधानमंत्री पद के दावेदारी का समर्थन नही किया। ममता वनर्जी पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय स्तर की बड़ी रैली करने जा रही है जिसमें सोनिया गांधी सहित समस्त भाजपा विरोधी दलों को बुलाया गया है। यह माना जा रहा है वामपंथियों के गढ़ को तोड़कर सात वर्षो से लगातार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता अब राष्ट्रीय स्तर अपनी दावेदारी पेश करना चाहती है। इस रैली में ममता को बड़े ही सुनियोजित तरीके से विपक्षी दलों के उपास्थिति में प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करना चाहती है। ममता समर्थकों का यह कहना है बिना किसी गाड फादर के ममता ने राजनीतिक सूझ-बूझ से तीन दशक से अधिक लगातार राज करने वाले वामपंथियों को उखाड़ फेका। ममता की राजनीतिक क्षमता है कि वह जनता का समर्थन लेकर प्रधानमंत्री के रूप में देश को एक नयी दिशा दे सकती है। हालांकि ममता के इस अभियान को पश्चिम बंगाल की कांग्रेस ने ही नकार दिया है।
मायावती चूप रहकर दलित वोट बैंक को गैर भाजपा दलों को दिलाने के नाम पर दलित महिला प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही है। बसपा के स्थापना से ही रणनीति रही है उसे मजबूत नही मजबूर सरकार चाहिए इसका फायदा भी उत्तर प्रदेश ने उठाया। भाजपा के समर्थन से तीन बार मजबूर सरकार और चौथी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी लेकिन मायावती के सत्ता चलाने की कार्यशैली से जनता आैर भाजपा के नेता दोनों दूर हो गये परिणाम 2014 में खाता नही खुला आैर 2017 में 19 सीटों तक सिमट रह गयी। मायावती की राजनीतिक चाल आज भी पुराने एजेन्डे पर चल रही है कि बसपा को मजबूत नही मजबूर सरकार चाहिए। मोदी की कार्यशैली आैर केन्द्र सरकार के खिलाफ जनाक्रोश का दावा करके मायावती दलित वोट वैंक को विपक्ष के साथ जोड़ने के नाम पर प्रधानमंत्री पद का दावा पेश करना चाहती है। 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा को 31.34 प्रतिशत आैर कांग्रेस 19.52 प्रतिशत मत मिले थे। जबकि बसपा 403 सीटों पर चुनाव लड़ी आैर 4 प्रतिशत मत मिले लेकिन खाता नहीं खुला। 503 में 447 जमानते भी जब्त हुई। देश भर में मायावती दलित उत्पीड़न को भी अपना एक सुत्रीय एजेन्डा बनाकर आगे बढ़ना चाहती है। ममता एवं मायावती की रणनीति से कांग्रेस व दूसरे विपक्षी दल भी समझ गये है एनसीपी एवं देश के कद्दावर नेता शरदपवार एक चतुर राजनीतिक की तरह चुप्पी साधे हुए है पवार चाहते है कि केन्द्र में तीसरे मोर्चे का बहुमत हो तो प्रधानमंत्री की दावेदारी पेश की जाय। एनसीपी के वरिष्ठ नेता का कहना है कि शरद पवार अगर प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश करते है तो महाराष्ट्र में भाजपा को छोड़कर सभी दल एक साथ पवार का समर्थन कर सकते है। नेता का यह दावा है कि शिवसेना भी महाराष्ट्र के नाम पर पवार का समर्थन कर सकती है। दक्षिण भारत के कद्दावर नेता चदंबाबू नायडु देश की राजनीति में आने से इन्कार कर रहे है लेकिन राजनीतिक स्थितियां बदली दक्षिण भारत से गैर भाजपा आैर गैर कांग्रेस सदस्यों की संख्या बढ़ती है तो दावा पेश करने से पीछे नही हटेंगे। विपक्ष के आैर कई बड़े.बड़े नेता भाजपा आैर कांग्रेस दोनों से सामान्य दूरी बना करके चल रहे है। समय आने पर देवगौड़ा आैर गुजराल की तरह अवसर मिल सकता है। प्रदेश स्तरीय छत्रपो के महत्वाकांक्षाओं के कारण कांग्रेस की राहुल बनाम मोदी बनाने पर पानी फिरता जा रहा है। देश के इतिहास में 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे खराब स्थिति में रही है। 60 वर्षो से लगातार केन्द्र एवं प्रदेश में अधिकांश समय एक छत्र राज्य करने वाली कांग्रेस की ऐसी दुर्गति हुई कि 20 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में कांग्रेस का खाता तक नही खुला। 16 राज्य व केन्द्र शासित प्रदेश में मात्र 44 सीटों पर सिमट गयी। कुल सीटों का 10 प्रतिशत मत न मिलने से विपक्ष का दर्जा भी हासिल नही हो सका। चार वर्षो में मोदी के खिलाफ कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में कोई ऐसा धारदार प्रासंगिक भूमिका में नही आ सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुभव आैर भाजपा तथा संघ की रणनीति में राहुल उलझ गये है विपक्ष की आक्रामक भूमिका में आने के स्थान पर राहुल का चेहरा भाजपा के कार्यो का खिलाफ एक रियक्शनरी राजनेता का बन गया है। देश के समास्यों पर विपक्ष की भूमिका के रूप में अगुवाई न करके केवल भाजपा के बुने हुए हिन्दू गैर हिन्दू, गाय कांग्रेस मुस्लिम पार्टी ऐसे तमाम मुद्दों पर उलझ गये है। कांग्रेस के रणनीति कारों की मोदी बनाम राहुल बनाने की योजना फलाप हो गयी।

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