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(Update 12 minutes ago)

ईवीएम बनाम बैलेट पेपर आयोग के लिए चुनौती बना

लखनऊ देश में ईवीएम बनाम बैलेट पेपर की बहस चल रही है। भारतीय जनता पार्टी ईवीएम से चुनाव कराने की वकालत कर रही है। सपा, बसपा, कांग्रेस,आप, टीएनसीए आदि 17 राजनीतिक दल बैलेट पेपर से चुनाव कराने के पक्षधर है। इन 17 राजनीतिक दलों ने आयोग से मिलकर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की है। राजनीतिक दलों का ईवीएम से चुनाव को लेकर अलग-अलग समय पर विचार बदलते रहते है। चुनाव जीतते है ईवीएम सही लगती है और चुनाव हारते है तो ईवीएम में खराबी दिखती है। भारतीय जनता पार्टी जो ईवीएम से ही चुनाव कराने की मांग कर रही है। 2009 में लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी ने ईवीएम पर सवाल उठाये थे। ईवीएम पर सवाल उठाने वाले सपा को 2004 में लोकसभा में 36 सीटे और 2009 में 22 सीटें मिली थी। 2012 विधान सभा चुनाव में पूर्ण बहुमत की सरकार बना चुकी है। बसपा ईवीएम के मतदान से 2007 में उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बना चुकी है। केजरीवाल को दिल्ली में ईवीएम के मतदान से ही 70 में से 67 सीटे मिल चुकी है। ममता बनर्जी ईवीएम के मतदान से पश्चिम बंगाल में पूर्ण बहुमत की सरकार चला रही है। कांग्रेस 2004 एवं 2009 में ईवीएम के चुनाव से 10 साल तक केन्द्र में सत्ता में रही है। सवाल यह है कि ईवीएम आखिर विवाद का कारण है ? क्या जवाब स्पष्ट है कि जब 2014 में 282 सीटें भाजपा को मिली और मोदी के नेतृत्व में पहली बार केन्द्र में पूर्ण बहुमत सरकार बनी। इस चुनाव में बसपा का खाता तक नही खुला। मायावती ने ईवीएम को लेकर सवाल खड़े किये थे। 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित 325 सीटे मिली। इसके बाद ईवीएम का विरोध में तेजी आयी है। लेकिन उत्तर प्रदेश के तीन लोकसभा गोरखपुर, फूलपुर, और कैराना में हुए उपचुनाव में सपा एवं लोकदल के सांसद चुने गये। इस परिणाम को लेकर सवाल नही उठे। इतना जरूर रहा कि उपचुनाव मतदान के दौरान ईवीएम को लेकर कई शिकायते आयी थी। इन शिकायतों पर आयोग ने जवाब दिया था। तकनीकि कारणो से ईवीएम में दिक्कते हुई है। जहां तक बैलेट पेपर से चुनाव कराने की बात है बैलेट पेपर के चुनाव में हो रही बूत कैपरचिंग तथा अन्य तमाम परेशानियों के कारण ही 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी के संस्तुति आम दलों के सहमति से भारत निर्वाचन आयोग ने ईवीएम से चुनाव प्रक्रिया शुरू की है। अब तक ईवीएम से 1999, 2004, 2009 और 2014 चार लोकसभा चुनाव और 30 से अधिक विभिन्न राज्यों के चुनाव हो चुके है। इन सभी चुनाव में अलग-अलग परिणाम आये और विभिन्न दलों की सरकारें बनी जो आज भी सत्ता में है।
राजनीतिक के बीच ईवीएम बनाम बैलेट पेपर से चुनाव कराने के बहस पर भारत निर्वाचन आयोग के लिए 2019 लोकसभा चुनाव एक चुनौती बन गया है। निर्वाचन आयोग अगर ईवीएम से चुनाव कराता है और भाजपा को सफलता मिलती है विपक्षी सीधा आरोप ईवीएम पर ही लगायेगें। अगर विपक्ष चुनाव जीतता भी है तो भी सीटों की संख्या कम ज्यादा और जीत का अन्तर को लेकर सवाल खड़े करेंगे। दूसरी तरफ अगर आयोग बैलेट पेपर से चुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू करता है तो निष्पक्ष चुनाव एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। देश में मतदाताओं की बढ़ती संख्या को देखें तो 1952 में 17 करोड़ मतदाता थे जो 1957 में 19 करोड़, 1962 में 21 करोड़, 1967 में 25 करोड़, 1971 में 27 करोड़, 1977 में 32 करोड़, 1980 में 35 करोड़, 1984 में 40 करोड़ मतदाता थे। यानी प्रति पांच वर्ष में दो करोड़ मतदाता की बढ़ोत्तरी होती थी। 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मतदाताओं की उम्र 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दिया। इसके बाद मतदाताओं की संख्या में गुणात्मक वृद्धि होने लगी। 1989 के लोकसभा चुनाव में मतदाता 10 करोड़ बढ़ गये। मतदाताओं की बढ़ने की गुणात्मक वृद्धि अभी जारी है। 2004 में 67 करोड़ मतदाता थे। 2009 में 71 करोड़ और 2014 में 83 करोड़ मतदाता हो गये। यही वृद्धि 2019 में होगी और अनुमान के अनुसार लगभग 90 करोड़ मतदाता होगें। मतदान प्रतिशत के बढ़ते क्रम को देखा जाय तो अगर 60 से 70 प्रतिशत के बीच में मतदाता होते है तो लगभग 60 से 65 करोड़ मतदाता मतदान में शामिल होंगे। इतनी बड़ी संख्या को लेकर बैलेट पेपर से चुनाव कराना काफी चुनौती पूर्ण होगा। बूत कैपचरिंग और मतगणना में मतों के हेर-फेर पर हारा प्रत्याशी, राजनीतिक दल जरूर सवाल उठायेगें। आयोग के लिए दोनों स्थितियों में ईवीएम या बैलेट पेपर से निष्पक्ष चुनाव कराना जिस पर जनता भी भरोसा करें। एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। आयोग ने ईवीएम पर सवाल उठानें वालो को चुनौती दी थी और एक समय सीमा निर्धारित करके आयोग आफिस में ईवीएम में टैम्परिंग करके दिखाने के लिए राजनीतिक दलों और तकनीकि विशेषज्ञों को आंमत्रित किया थाए लेकिन ईवीएम पर सवाल उठाने वाले आयोग के चुनौती को स्वीकार नही कियाए केवल बाहर-बाहर ही ईवीएम से चुनाव न कराने का विरोध कर रहे है। समय बतायेंगा कि भारत निर्वाचन आयोग ईवीएम एवं बैलेट पेपर से कैसे निष्पक्ष चुनाव कराता है जो राजनीतिक दलों और जनता के बीच सर्वमान्य हो सकें।

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