एससी – एसटी एक्ट का दुरुपयोग रोकना भाजपा सरकार के लिए चुनौती

राजेन्द्र द्विवेदी

लखनऊ मायावती एवं दलित सांसदों के दवाब में मोदी सरकार ने एससी – एसटी एक्ट का विधेयक लोकसभा और राज्य सभा से पास करा दिया है जो अब कानून बन गया है। एससी – एसटी के शिकायत पर सीधे गिरफ्तारी होगी। इस एक्ट के दुरूपयोग को रोकना भाजपा के लिए चुनौती बन गया है। यह मुद्दा केवल सवर्ण समाज के लिए नहीं बल्कि 20 बनाम 80 हो गया है। दलित की शिकायत पर केवल सवर्ण ही नहीं बल्कि पिछड़े एवं मुस्लिम भी सीधे जेल जायेंगे। यह विधेयक कोई नया नहीं है पहले से ही है जिसे उच्चतम न्यायालय ने शिकायत पर सीधे गिरफ्तारी से रोक लगा दी थी। उच्चतम न्यायालय के इसी निर्णय के खिलाफ भाजपा सरकार ने दलितों के दवाब में पुरानी स्थिति बहाल कर दी है। यह सही है कि दलितों के उत्पीड़न पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए लेकिन यह भी सही नहीं है कि केवल शिकायत पर ही सीधे जेल भेज दिया जाए। आज जो भी दलित समाज के बड़े-बड़े नेता और दलितों की वकालत करने वाली राजनितिक पार्टियां है उन्हें दलितों के नाम पर सियासत के बजाय उनका वास्तविक रूप से विकास में ध्यान देना चाहिए। वास्तविकता ये है की मायावती, रामविलास पासवान सहित दलितों के नाम पर राजनीति करने वाले नेता ये भूल गए है कि 20 प्रतिशत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी के नाम पर सत्ता भोगने वाले देश भर में 4000 से 5000 दलित परिवार ही हैं। राम विलास पासवान बाप बेटे सांसद हैं भाई विधायक है और कई रिश्तेदार राजनीतिक एवं प्रसाशनिक क्षेत्रों में काबिज है। यही स्थिति देश के 543 में आरक्षित में 84 एससी 47 एसटी की लोकसभा सीटों और 1242 विधायकों की है। चंद परिवार और उनके रिश्तेदार ही इन सीटों पर काबिज है। नौकरियों में भी दलित के नाम पर चुनिंदा परिवार ही आरक्षण का लाभ ले रहे हैं।
20 प्रतिशत का लाभ केवल चंद परिवार ही उठा रहे हैं। दुसरी तरफ आज समाज में जो स्थिति है वो दलितों से ख़राब एवं दायनीय आर्थिक हालत सवर्ण एवं पिछड़े व मुस्लिम वर्ग के 80 प्रतिशत से अधिक परिवार की हैं। दलितों को आरक्षण नहीं बल्कि उन्हें आबादी के हिसाब से भागीदारी दी गयी है लेकिन ये भागीदारी चंद परिवारों में कैद है यही परिवार दलितों के नाम पर हल्ला मचाते और सरकारों पर दबाब बनाते हैं।
दलितों के सर्वागीण विकास हेतु दलित समाज के ही सांसद, विधायक और बड़े-बड़े नेता ही सबसे बड़े बाधक है AC कमरों में बैठ कर मीडिया के माध्यम से हल्ला मचाने वाले दलित समाज के नेता वास्तिविक रूप से दलितों का उत्थान नहीं चाहते और सरकार भी इतनी कमजोर और वोट की राजनितिक के दवाब में आ गयी कि बिना सोचे समझे दलितों के हितों के नाम पर सामाजिक ताना बना को भंग कर दिया है आखिर संविधान में सबको सामान अधिकार प्राप्त है तो सरकारों में ऐसी क्या कमजोरी है कि वो उत्पीड़ित होने वाले हर व्यक्ति को न्याय दिलाने के बजाये दलित एक्ट पास करके शिकायत पर गिरफ्तारी का निर्णय करती है। आने वाले दिनों में जिस तरह से समाज में सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ता जा रहा है उसे देखते हुए 20 बनाम 80 के बटवारे को जनता की भावनाओ को रोकना भाजपा के लिए चुनौती बनती जा रही है। सवर्ण समाज या पिछड़े या अल्पसंख्यक किसी के साथ भी अगर फ़र्ज़ी शिकायत पर गिरफ्तारी होती तो समाज में इसका कितना दुष्प्रभाव पड़ेगा इसका आकलन करना बहुत कठिन है।
इस एक्ट से भाजपा ही नहीं सपा भी उत्तर प्रदेश में बहुत प्रभावित होगी। प्रमोशन में आरक्षण को लेकर सपा ही एक ऐसी पार्टी थी जिसने प्रमोशन में आरक्षण का खुलेआम विरोध किया। उच्चतम न्यायालय तक प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जीती भी। मायावती सरकार में प्रमोशन में आरक्षण का लाभ लाये हुए कर्मचारी और अधिकारी सपा सरकार में पुनः पुरानी स्थिति में भेज दिए गए और उनसे यह लाभ छीन लिया गया। प्रमोशन में आरक्षण जिसके कारण आज भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। आरक्षण बचाओ और आरक्षण रोको संघर्ष समिति लड़ाई लड़ रही है। अखिलेश यादव ने भाजपा को रोकने के नाम पर बसपा से समझौता करके 80 प्रर्तिशत के नेता होने एक सुनहरा अवसर खो दिया है। आज अगर अखिलेश यादव जिस तरह से प्रमोशन में आरक्षण का विरोध कर रहे थे उसी तरह बिना जांच के गिरफ्तारी के कानून का विरोध करने तो देश के 80 प्रतिशत आबादी के बड़े रहनुमा के रूप में उभरते। सियासत है नेता हैं अपनी अपनी सोच होगी लेकिन जिस तरह से राजनितिक दल जाति एवं धर्म के नाम पर सियासत कर रहे हैं उससे सामाजिक समरसता टूट रही है। गरीब और अमीर के बीच खाई पढ़ती जा रही है जो देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है। भारतीय जनता पार्टी की सरकारें एससी – एसटी एक्ट के दुरूपयोग को कैसे रोकेंगी यह आने वाला समय बताएगा लेकिन जिस तरह से सोशल मीडिया पर 20 बनाम 80 का प्रचार हो रहा है उससे भाजपा के साथ साथ सपा व कांग्रेस के सामने भी चुनौती है। सोशल मीडिया में प्रचारित अभियान के तहत अगर कोई ऐसी राजनितिक पार्टी आगे आती है या बनती है जो 20 बनाम 80 के रूप में शिकायत के आधार पर गिरफ्तारी का खिलाफत करती है तो फिर आने वाले समय में राजनितिक दिशा में एक नया बदलाव देखने को मिल सकता है ।

Share via

Get Newsletter

Most Shared

Advertisement