2019 धर्म एवं जाति आधारित होगा चुनावीं एजेन्डा

राजेन्द्र द्विवेदी

लखनऊ । जैसे-जैसे 2019 नजदीक आता जा रहा है देश में जाति एवं धर्म आधारित सियासत बढ़ती जा रही है। उत्तर हो या दक्षिण, पूरब हो या पश्चिम, राष्ट्रीय दल हो या क्षेत्रीय दल अथवा छोटी-छोटी पार्टिया सभी का 2019 का चुनावीं एजेन्डा केवल जाति एवं धर्म के आस-पास ही घूम रहा है। केन्द्र एवं प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार चला रही भाजपा कहने के लिए विकास को चुनावीं मुद्दा बनायेगी लेकिन वास्तविकता यह है कि भाजपा ने अपनी पूरी चुनावीं रणनीति जाति एवं धर्म के आधार पर तैयार कर रही है। मुस्लिम एक ऐसा वोट बैंक है जो भाजपा से बहुत दूर माना जाता है। इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने तीन तलाक का मुद्दा बनाया है। इससे भाजपा को लगता है कि मुस्लिम आबादी में 50 प्रतिशत महिला आबादी जो तीन तलाक से परेशान है वह भाजपा को समर्थन दे सकती है। लोकसभा में तीन तलाक का विधेयक पारित हो गया है लेकिन राज्यसभा में बहुमत के अभाव में विधेयक पास नही हो पाया। भारतीय जनता पार्टी ने राज्यसभा में पास कराने के लिए विशेष आम सहमति बनाने का प्रयास भी नही किया। क्योंकि तीन तलाक को 2019 में चुनावीं मुद्दा बनाना है इसलिए विपक्ष पर यह आरोप लगाने के लिए तैयारी हो रही है कि विपक्ष महिला विरोधी है और मुस्लिम महिलाओं का उनका हक दिलाने के लिए समर्थन नही किया। तीन तलाक के मुहिम से यह तो, यह निश्चित है मुस्लिम समुदाय में महिलओं का एक बहुत बड़ा वर्ग जो तीन तलाक से पीड़ित है वह भाजपा को समर्थन जरूर देंगा। भाजपा की तरह कांग्रेस, सपा, बसपा व अन्य दल भी धर्म की सियासत करने में पीछे नही है। कांग्रेस व समूचा विपक्ष यह बताने का प्रयास कर रहा है कि भारतीय जनता पार्टी धर्म के आधार पर राजनीति कर रही है धार्मिक भावनाओं को भड़का रही है। छोटे-छोटे भगवाधारी उपद्रव को विपक्ष भाजपा को धार्मिक उन्माद फैलाने की सियासत बता रहा है। असम में घुसपैठियों का मामला हो, कावरियों का उपद्रव, पार्को व अन्य स्थानों का भगवाकरण आदि तमाम ऐसे विषय है जिन्हें विपक्ष भाजपा को मुस्लिम विरोधी और धार्मिक आधार पर देश के बंटवारे का आरोप लगा है।

धार्मिक सियासत से कही ज्यादा जातीय राजनीति चुनावीं एजेन्डा बनाने की तैयारी भाजपा और गैर भाजपा दल दोनों कर रहे है। भाजपा उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा के जातीय गठबन्धन से लड़ने के लिए दलितों एवं पिछड़ों के एजेन्डे पर बहुत ही प्रमुखता से कार्य कर रही है। उच्चतम न्यायालय से निर्णय के विरोध में मोदी सरकार ने एससी एसटी एक्ट को लोकसभा एवं राज्यसभा से पारित कराने में सफल रही। दलित एजेन्डा होने के कारण किसी भी दल ने एससी एसटी एक्ट का विरोध नही किया। इस एक्ट में दलितों के शिकायत पर तत्काल गिरफ्तारी हो सकती है। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि दलित शिकायत पर जांच के बाद ही गिरफ्तारी की जानी चाहिए जिसका मायावती एवं भाजपा के सहयोगी दलित नेता एवं देश भरकर के दलितों ने विरोध किया। पूरे देश में धरना प्रदर्शन और हिसंक घटनाएं हुई। दलितों की नाराजगी को दूर करने के लिए भाजपा ने एससी एसटी एक्ट को पारित करके विवाद पर विराम लगा दिया लेकिन इस एक्ट के विरोध में आंशका भी बढ़ गयी हैं कि 20 प्रतिशत दलित आबादी, 80 प्रतिशत पिछड़े सर्वण, मुस्लिम आदि पर गलत इस्तेमाल न कर सकें। प्रमोशन में आरक्षण भी दलित एजेन्डा का महत्वपूर्ण मुद्दा है उत्तर प्रदेश में मायावती लगातार प्रमोशन और दलित एससी एसटी एक्ट में संशोधन की मांग कर रही थी। दलित एक्ट पारित हो गया लेकिन प्रमोशन में आरक्षण विवाद अभी भी जारी है। इस विवाद को भाजपा कैसे हल करती है यह आने वाला समय बतायेगा। भाजपा उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 2014 में भी 73 सीटों का आकड़ा, 2019 में खोना नही चाहती। इसीलिए सपा, बसपा के जातीय गठबन्धन को कमजोर करने के लिए दलित पिछड़े एजेन्डे पर पूरी ताकत लगा दी है। दलितों को रिझाने के लिए एससी एसटी एक्ट का कानून बनाना और पिछड़ी जातियों को जोड़ने के लिए लगातार अति-पिछड़ी जातियों राजभर, कुम्हार-बढ़ई, लोहार, प्रजापति, आदि जाति आधारित सम्मेलन कर रहे है। लखनऊ में पिछले दो महीने से पिछड़े दलित सम्मेलन आयोजित करके भाजपा सपा, बसपा के गठबंधन को कमजोर करने के लिए जुटी हुई है। दलित पिछड़े एजेन्डे पर ही रणनीति बनाने के लिए मेरठ में कार्यसमिति का आयोजन किया है। कार्यसमिति में 700 से अधिक भाजपा के विभिन्न जाति, धर्म से जुड़े प्रभावीं नेताओं के सुझाव से दलित पिछड़े को जोड़ने के लिए रणनीति तैयार की जायेगी। इस कार्य समिति में राजनाथ सिंह, अमित शाह सहित देश के सभी नेता शामिल होगें। माना जा रहा है कि गोरखपुर, फूलपुर, कैराना और नूरपुर उप चुनाव में मात खायी भाजपा बहुत फूक-फूक कर कदम रख रही है। इसी रणनीति के तहत विकास एजेन्डा तो दिखावा है पूरी सियासत संसदीय क्षेत्र के जातीय व धार्मिक एजेन्डे के आधार पर ही तैयार हो रही है। इसी आधार पर प्रत्याशियों का चयन भी हो रहा है।

भाजपा की तरह विपक्ष भी धार्मिक एवं जातीय एजेन्डे पर ही 2019 की विसात तैयार कर रहा है। सपा एवं बसपा जातीय आधार पर गठबन्धन करके मुस्लिम वर्ग को जोड़ने की तैयारी में है। मुस्लिम मतदाताओं का हमेशा रूख रहा है जो भाजपा को हरायेगा उसे ही मत देंगे। अलग-अलग चुनाव लड़ने से मुस्लिम मतदाता बंटते रहे। 2019 में गैर भाजपा दलों का यही प्रयास है कि जातीय गठबन्धन से मुस्लिम मतदाताओं को यह संदेश दे कि भाजपा का विकल्प गठबन्धन ही है। इसी तरह से जातीय व धार्मिक सियासत ममता बनर्जी, चन्द्र बाबू नायडू, नवीन पटनायक सहित देश के सभी राज्यों में गैर भाजपा दल कर रहे है। कुल मिलाकर 2019 की पूरी सियासत धार्मिक एवं जातीय एजेन्डे के आस-पास सिमटती जा रही है।

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