अर्बन मिरर संवाददाता
नई दिल्ली, 30 अगस्त: लोक गठबंधन पार्टी (एलजीपी) ने आज कहा कि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की रिपोर्ट ने नवंबर 2016 में उच्च मूल्य के नोटों की बंदी की सफलता के बारे में एनडीए सरकार के द्वारा किये गए लंबे दावों की पोल खोल कर रख दी है । एलजीपी ने कहा कि 99.3% मुद्रा बैंकों मैं वापस आ जाने के साथ ही एनडीए सरकार के काले धन के खिलाफ लड़ने का दावा एक भद्दा मजाक साबित हुआ है।
पार्टी के प्रवक्ता ने गुरुवार को यहां कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि कुल 15.44 लाख करोड़ रुपये की अवैध मुद्रा ,500 रुपये और 1000 रुपये के
जिनका मूल्य 15.3 लाख करोड़ रुपये था , बैंकों को लौटा दी गई थी जो कुल धनराशि का 99.3% थी। प्रवक्ता ने कहा कि उस समय परिसंचरण में लगभग पूरे पैसे के बैंकों में वापस आने वाले साथ यह स्पष्ट कि देश का सारा काला धन और आतंकवादी धन बैंकों मैं जमा कर दिया गया है। प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट ने साबित कर दिया है कि सरकार का नोट बंदी का सारा अभ्यास व्यर्थ एवं देश के हित के खिलाफ था और इसका उद्देश्य एनडीए के करीबी उच्च और शक्तिशाली लोगों की मदद करना मात्र था। प्रवक्ता ने कहा कि काले धन को लाने से ज्यादा नोट बंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचायI और कम से कम 100 गरीब लोगों की मौत का जिम्मेदार बना जिन्होंने बैंकों के बाहर अपने अमान्य नोट्स को बदलने के लिए महीनों तक लाइन लगाने के लिए मजबूर थे । प्रवक्ता ने कहा कि यह विनाशकारी निर्णय था जिसका प्रतिकूल प्रभाव अभी भी देश को हतोत्साहित कर रहा है। प्रवक्ता ने कहा कि आरबीआई का यह दावा भी सही नहीं है कि इससे वित्तीय प्रणाली में डिजिटलीकरण में मदद मिली है।
प्रवक्ता ने कहा कि साफ़ तौर पर नोट बंदी कि इस कार्यवाही के पीछे एक गहरा षड्यंत्र होना प्रतीत होता है , जिसे पता लगाया जाना चाहिए ताकि इस बेहद अजीब और लापरवाही के फैसले के लिए ज़िम्मेदार लोगों को दंडित किया जा सके। प्रवक्ता ने कहा कि बीजेपी नेतृत्व अच्छी तरह से जानता था कि निर्णय देश के हित में बिल्कुल नहीं था और इसका लक्ष्य कुछ उच्च और शक्तिशाली लोगों की मदद करना था। प्रवक्ता ने इस मूर्खता पूर्ण कदम को बिना पूरी तैयारी और पर्याप्त सुरक्षा उपायों की अनुपस्थिति में लागू किया जाना बताते हुए कहा कि इस कदम ने पूरी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। प्रवक्ता ने कहा कि एनडीए सरकार द्वारा दावा किए गया था कि इससे काले धन और आतंकवादी वित्त पोषण पर हमला होगा , जो गलत साबित हुआ और बजाय नोट बंदी के यह मूर्खता पूर्ण निर्णय देश के लिए बेहद हानिकारक साबित हुआ है। प्रवक्ता ने कहा कि एनडीए नेतृत्व और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) दोनों देश को आपदा और मौद्रिक अराजकता के कगार पर धकेलने के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं। एलजीपी ने कहा कि नोट बंदी के माध्यम से नकली मुद्रा का पता लगाने और उसपर रोक लगाने का दवा भी एक मजाक सा बन गया है। प्रवक्ता ने कहा कि आम आदमी को इस कदम के कारण बहुत कुछ भुगतना पड़ा, लेकिन इससे उन लोगों की मदद मिली जिन्होंने भ्रष्ट साधनों के माध्यम से अकूत काला धन इकठ्ठा कर रखा था।