ख़्वाबों की उड़ान

लीना पाण्डेय

आंखों में ढेर सारी ख्वाहिश दिल में ढेर सारी बंदिशें,
ख्वाबों ने की उड़ान भरने की तैयारी,
विश्वास नेकहीं कोने किसी डर को पकड़ा,
तोड़कर उस डर की जंजीर,
आज दिल चाहता है चल प डू उस डगर,
जहां कहीं कोई डर ना हो,
मैं हूं और मेरे ख्वाब, बस मन में यह ठाना है आज सिर्फ अपने लिए ही जीना है।
उम्र के इस पड़ाव पर पीछे मुड़कर देखती हूं,
अपनी नींद अपने सपने अपनी चाहते सबको सिर्फ खोजती हूं,
सारी उम्र अपने सपनों पर अपनों के लिए चद्दर डाल दी आज उस चद्दर को झाड़ना है आज से सिर्फ अपने सपनों के लिए जीना है।
ऐसा नहीं कि हमने अपनों के लिए अपना सब कुछ खोया,
ऐसा नहीं कि अपनों ने अपने लिए मेरे सपनों को नहीं सजाया
यह मेरी ही अपनी हद थी पहले उनकी फिर अपने सपनों की वाक़त थी ।
कभी अफसोस नहीं इस बात का लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर दिल एक बार जरूर पूछता है तूने क्या खोया और क्या पाया?
कभी दिल के इस सवाल का जवाब नहीं दे पाई ,
अपने और अपनों के सपनों के बीच खाई नहीं पढ़ पाई।
ताकत नहीं अब कि अपने सभी सपनों को चुन सकूं ,हां कोशिश करूं कि उनमें से किसी एक को तो सुन सकूं।
ए दिल फिर से कोशिश कर जीने की सभी नहीं पर कुछ जीवन के रस पीने की, पंख कमजोर तो है उतनी ऊंचाई तो नहीं पाएंगे ,
हौसले बुलंद है चांद नहीं तारे तो ढूंढ लाएंगे।

हम सब की दास्तान लीना के शब्दों में

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