अर्बन मीरर समवाददाता
मुलायम सिंह यादव देश के एक ऐसे राजनेता है जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी रास्ता निकाल लेते है। विरोधी, राजनीतिक दल एवं जनता कुछ भी सोचे लेकिन मुलायम सिंह ने अपनी राजनीतिक सूझ बुझ से बेटे अखिलेश यादव और भाई शिवपाल सिंह यादव दोनों के भविष्य के लिए बेहतर प्लेटफार्म बना दिया है राजनीति अगर संसाधनों के सुख भोगने और पावर का आनंद लेने के लिए की जाती है तो भाई शिव पाल सिंह यादव को अघोषित रूप से दोनों उपलब्धि मिल चुकी है। पूर्व मुख्यमंत्री का बगला , Z+ सुरक्षा और सत्ता की हनक सहित अन्य तमाम संसाधन उपलब्ध हो चुके है। समाजवादी सेक्युलर मोर्चा आने वाले लोकसभा चुनाव में क्या उपलब्धि हासिल करेगा ? इससब का कोई बहुत राजनीतिक मायने नहीं लगया जा सकता। बांग्ला एवं सुरक्षा को लेकर शिवपाल सिंह यादव पर भाजपा की मदद करने के आरोप लग रहे हैं लेकिन ऐसे आरोपों का भी राजनीति में कोई स्थाई महत्व नहीं होता। क्योकि मायावती भी भाजपा के समर्थन से 3 बार सरकार बनाने के बाद भाजपा को साम्प्रदयिक कह रही हैं इसलिए शिवपाल सिंह भाजपा की मदद कर रहें है या भाजपा शिवपाल की मदद कर रही हैं इसका बहुत ज्यादा महत्त्व नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मुलायम सिंह ने बहुत सूझ बुझ से शिवपाल सिंह यादव को राजनीति की ऐसी डगर पकड़ा दी है जिससे बेटे अखिलेश यादव की राजनीतिक डगर से सीधी टकराहट नहीं होगी। शिवपाल सिंह लोकसभा चुनाव में कितनी सीटों पर चुनाव लड़ाते है। परिणाम क्या होता है यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन 2022 तक अगले विधानसभा चुनाव तक भाजपा की सरकार में सरकारी संसाधन और सत्ता के लाभ अघोषित रूप से मिलेंगे ही। 2022 विधानसभा चुनाव क्या होगा, कैसा होगा, किसकी सरकार बनेगी, किन-किन दलों का गठबंधन होगा, इसके लिए काफी समय है। सियासत है हो सकता है लोकसभा चुनाव के बाद आने वाले दिनों में चाचा भतीजे को मोहब्बत के साथ एक ही प्लेटफार्म पर मुलायम सिंह यादव फिर ले आएं। भाई के साथ मुलायम सिंह यादव ने बेटे को भी राजनीति का एक मजबूत और बेहतर प्लेटफार्म दे दिया हैं। शिव पाल सिंह के बांग्ला एवं सुरक्षा के बाद से सेक्युलर मोर्चा के प्रति भाजपा विरोधी एवं सपा से नाराज रहने वाले नेताओ का मोहभंग हो गया है विशेषकर सपा का वोट बैंक मुस्लिम एवं यादव है उसमे शिवपाल सिंह यादव को सेंध लगाना आसान नहीं होगा। बिना बोले ही अखिलेश यादव को जनता की निगाहों में शिवपाल भाजपा के “बी” टीम बनते दिखाई दे रहे है। मुलायम सिंह ने देश के दो बड़े राजनीतिक पार्टियों भाजपा और कांग्रेस से बराबर की दोस्ती बेटे और भाई के माध्यम से अघोषित रूप से कर ली है जिसका लाभ मुलायम सिंह के पूरे परिवार को भी आने वाले दिनों में हमेशा हमेशा मिलता रहेगा। देश के जो राजनीतिक हालात है उसमे केंद्र में भाजपा या कांग्रेस की ही सरकार रहेगी इसमें कोई संदेह नहीं है। केंद्र में भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की सरकार बने दोनों में मुलायम सिंह और पूरे परिवार को किसी भी केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा परेशान करने की हिम्मत नहीं होगी। मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक सूझ बुझ से विरोधियों को यादव परिवार की लड़ाई में खुश होने की जरुरत नहीं है।
अखिलेश यादव के लिए गैर भाजपा मंच मजबूत हो गया है। मायावती से समझौता करें या कांग्रेस से अथवा सभी से इसमें अब सपा के नाराज़ नेताओ व कार्यकर्ताओं की सेक्युलर मोर्चे से जुड़ने की संभावनाएं बहुत कम हो गई हैं। मुलायम सिंह से राजनीतिक दलों को सीखना चाहिए कि परिवार में जब महत्वाकांक्षा और सत्ता की लड़ाई छिड़ जाये। लड़ाई में दोनों प्रिय हों ऐसे में अभिभावक को किस तरह से सत्ता के बटवारे कर अलग अलग कर दें। मुलायम सिंह की सियासत ऐसी हैं कि आज भी विरोधी और जनता यह नहीं समझ पा रही है कि नेता जी बेटे के साथ है या भाई के। क्योकि समय समय पर दोनों के मंच पर पहुंच कर आशीर्वाद देते रहते हैं।
मुलायम सिंह के परिवार में बालिग महिला हो या पुरुष सभी किसी न किसी राजनीतिक पद पर हैं। इनमें रामगोपाल यादव, उनके बेटे अक्षय यादव/ धर्मेंद्र यादव/तेज़ प्रताप यादव सहित तमाम पारिवारिक सदस्यों को यह सन्देश भी दे दिया हैं कि बेटा अखिलेश जितना प्यारा हैं वैसे ही भाई शिव पाल यादव भी प्रिये हैं। दोनों को राजनीतिक संरक्षण देकर अलग अलग सियासत करने का रास्ता दिखा दिया हैं इसलिए परिवार के सदस्य जिन्हे सियासत करनी हैं अपने राजनीतिक लाभ हानि को देखने हुए बेटे और भाई किसी के साथ रह सकते हैं।
राजनीतिक संभावनाओं को देखते हुए ये कहा जा सकता कि मुलायम की सियासत का सुखद अंत होगा और ताक़त आजमाइश के बाद चाचा भतीजे एक ही राजनीतिक प्लेटफार्म पर होंगे ?