नई दिल्ली / ईरान और अमेरिका के बीच तनातनी अब जंग का रूप इख्तियार करती हुई दिखाई दे रही है। अमेरिका की मिडिल ईस्ट में की जा रही तैयारी इसी तरफ इशारा भी कर रही है। हालांकि, अमेरिका की इस तरह की कार्रवाई से जहां कई देश सहमे हुए हैं वहीं कुछ देश इससे नाखुश भी हैं। इनमें से ही एक देश स्पेन है, जिसने अपने जंगी जहाज को यूएस नेवी स्ट्राइक ग्रुप का हिस्सा बनाने से अब इनकार कर दिया है। मेडरिड में हुई एक मीटिंग के बाद इसका फैसला लिया गया है। इसकी जानकारी भी पेंटागन को दे दी गई है। स्पेन का यह फैसला कई मायनों में बेहद खास है। आपको बता दें कि स्पेन 1982 से ही नाटो का सदस्य है। ऐसे में मिडिल ईस्ट में जंगी जहाजों के अमेरिकी फैसले का विरोध कर स्पेन ने कहीं न कहीं यह जता दिया है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का फैसला सही नहीं है।
गौरतलब है कि अमेरिका ने 5 मई को ईरान के खिलाफ मिडिल ईस्ट में अपने जंगी जहाज यूएसएस अब्राहम लिंकन और इसके कॉम्बेट ग्रुप को तैनात करने का एलान किया था। इस बेड़े में उस वक्त स्पेन का मेंडेज न्यूनेज भी शामिल था। लेकिन अब स्पेन के ताजा फैसले के बाद इसको इस बेड़े से बाहर कर दिया जाएगा। स्पेन अकेला नहीं है जो ईरान के मुद्दे पर राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले को गलत ठहरा रहा है, बल्कि अमेरिका के डेमाक्रेटिक सांसद भी ट्रंप को इस फैसले के खिलाफ चेतावनी दे चुके हैं। सांसदों ने ट्रंप से अपील की है कि वह दोबारा ईरान से बातचीत की प्रक्रिया शुरू करें। इतना ही नहीं हाउस की स्पीकर नेंसी पेलोसी का यहां तक कहना है कि कांग्रेस की मंजूरी के बिना ईरान के खिलाफ किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई न की जाए। इसके उलट रिपब्लिकन सांसद ट्रंप के इस फैसले को सही बताने में लगे हुए हैं।
इतना ही नहीं अमेरिका ने ईरान के खिलाफ जोर-शोर से तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। इसके तहत अमेरिका ने पिछले दिनों मिडिल ईस्ट में पेट्रियट मिसाइल की तैनीती बढ़ा दी थी। वहीं अब उसने इराक में मौजूद अपने दूतावास से कई कर्मचारियों को वापस आने के आदेश भी दे दिए हैं। अमेरिका का कहना है कि कुछ इमरजेंसी स्टाफ को छोड़कर अन्य स्टाफ तुरंत वापस आ जाए। इतना ही नहीं अमेरिका ने सऊदी अरब और इराक में मौजूद अपने नागरिकों की रक्षा के लिए दोनों देशों को उचित कदम उठाने को भी कहा है। इसके अलावा अमेरिका ने पिछले दिनों सऊदी अरब के दो जहाजों को डुबाने के मकसद से उन्हें नुकसान पहुंचाने का भी ठीकरा ईरान के ही सिर फोड़ा है। वहीं ईरान ने इस आरोप को खारिज कर दिया है। लेकिन इस घटना ने इलाके में माहौल को और अशांत करने का मौका जरूर दे दिया है। वहीं दूसरी तरफ डेमोक्रेट्स लगातार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन के उस बयान को भी मुद्दा बना रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि मिडिल ईस्ट में ईरान के खतरे को देखते हुए सवा लाख जवानों की तैनाती जानी चाहिए। उनके इस बयान की जानकारी न्यूयॉर्क टाइम्स ने सोमवार को दी थी।
ईरान को लेकर अमेरिका की कुछ चिंता ब्रिटेन के डिप्टी कमांडर मेजर जनरल क्रिस घिका ने भी बढ़ा रखी है। उनका कहना है कि ईरान से तनाव के चलते सीरिया और इराक में मौजूद अमेरिकियों पर हमले हो सकते हैं। हालांकि ब्रिटेन ने क्रिस के इस बयान को वापस ले लिया है, लेकिन अमेरिका इस पर विश्वास करते हुए अपनी रणनीति बनाने में लगा हुआ है। डेमोक्रेटिक सांसद लगातार ट्रंप पर इस बात का भी आरोप लगा रहे हैं कि वह हाउस को न तो किसी भी फैसले की जानकारी दे रहे हैं न ही उनसे कोई इस बारे में सलाह मशविरा ही कर रहे हैं। दूसरी तरफ अमेरिकी कार्रवाई के खतरे को भांपते हुए ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी ने देश के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खमेनी से एक बैठक की है। इसके बाद अमेरिका को अपने फैसले पर दोबारा गौर करने को भी कहा गया है। रुहानी ने यहां तक कहा है कि अमेरिका की यह कार्रवाई प्रेशर पॉलिटिक्स से ज्यादा और कुछ नहीं है।
सीएनएन की मानें तो अमेरिका ने दावा किया है कि ईरान उसको निशाना बनाने की तैयारी कर रहा है। इन सभी के बीच राष्ट्रपति ट्रंप ने एक ट्विट कर साफ कर दिया है कि वह इस मुद्दे पर सही हैं। उन्होंने इसमें लिखा है कि ईरान के मसले पर सभी के अपने विचार हो सकते हैं। लेकिन वह इस मुद्दे पर सही हैं और उनका फैसला ही अंतिम भी है। उन्होंने यह भी कहा है कि यह फैसला सभी बातों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। उन्हें इस बात की भी उम्मीद है कि ईरान दबाव के मद्देनजर बातचीत के लिए जरूर आएगा।
बहरहाल, इन सभी के बीच दो बातें काफी हद तक तय हैं। पहली ये कि मिडिल ईस्ट में वर्तमान में जो हालात बन गए हैं उनमें एक चिंगारी पूरे इलाके को जंग में झौंक सकती है। दूसरा ये कि यदि इस इलाके में युद्ध छिड़ा तो इसका असर किसी एक देश पर न होकर कई देशों पर दिखाई देगा, जिसमें भारत भी शामिल है। आपको बता दें कि इस इलाके में 16 देश आते हैं। इसमें मिस्र, ईरान, तुर्की, इराक, सऊदी अरब, यमन, सीरिया, जोर्डन, यूएई, इजरायल, लेबनान, फिलिस्तीन, ओमान, कुवैत, कतर और बहरीन शामिल हैं। अमेरिकी जहाज के इस इलाके में दाखिल होने का सबसे छोटा मार्ग स्वेज कैनाल से होकर आता है, जहां से वह दाखिल भी हुआ है। स्वेज कैनाल भूमध्य सागर और लाल सागर के बीच में स्थित है। ईरान की अपनी सीमा इराक, तुर्की, अर्मेनिया, अजरबेजान, तुर्कमेनिस्तान और अफगानिस्तान से मिलती है।
अब जरा इस इलाके में युद्ध छिड़ने की सूरत में भारत पर होने वाले असर की भी बात कर लेते हैं। दरअसल, इसका सबसे बड़ा असर भारत को होने वाली कच्चे तेल की सप्लाई पर पड़ सकता है। कच्चे तेल की सप्लाई के लिए यही एक मार्ग है। ऐसे में भारत में जरूरी चीजों की कीमत खासतौर पर तेल और गैस की कीमत भी बढ़ने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। इसके अलावा बालाकोट में हुई एयर स्ट्राक के बाद पाकिस्तान ने अपना एयर स्पेस भारत से जाने वाले विमानों के लिए बंद किया हुआ है। इसकी वजह से वर्तमान में भारत से जाने वाले विमानों को ओमान के रास्ते जाना पड़ रहा है। यह मार्ग कई विमानों के लिए काफी लंबा साबित हो रहा है और इसकी वजह से विमानन कंपनियों को नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। यदि इस इलाके में युद्ध होता है तो यहां से विमानों की आवाजाही पर असर पड़ेगा और भारतीय विमानों को वैकल्पिक मार्ग तलाशना होगा। इसके साथ ही मिडिल ईस्ट में मौजूद देशों से जो व्यापार भारत का होता है उस पर भी इस लड़ाई का सीधा असर होगा और यह प्रभावित होगा। (Courtesy: Dainik Jagran)