राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद: राम लला के वकील बोले- जन्मस्थान की नहीं है सटीक जगह

उच्चतम न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में लगातार तीसरे दिन सुनवाई शुरू की। राम लला के वकील दलीलें जारी रखेंगे। राम लला विराजमान के वरिष्ठ वकील के परासरन ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि ‘जन्मस्थान’ की सटीक जगह नहीं है, लेकिन इसका मतलब आसपास के क्षेत्रों से भी हो सकता है। पूरा क्षेत्र जन्मस्थान है। इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि यह जन्मस्थान भगवान राम का है। हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्ष इस विवादित क्षेत्र को जनम स्थान कहते हैं। न्यायालय ने वरिष्ठ वकील से पूछा कि क्या जमनास्थान एक न्यायिक व्यक्ति हो सकता है? मूर्ति एक न्यायिक व्यक्ति हो सकता है लेकिन क्या एक स्थान या जन्मस्थान न्यायिक व्यक्ति हो सकता है? इसके जवाब में के परासरन ने कहा, ‘मूर्ति का वहां मौजूद होना कानूनी व्यक्ति के निर्धारण के लिए एकमात्र परीक्षण नहीं है।

न्यायालय ने पूछा: क्या दुनिया की किसी अदालत में बेथहेलम में ईसा मसीह के जन्म जैसे सवाल उठे और उन पर विचार किया गया।

राम लाल विराजमान की ओर से परासरन ने कहा: मैं पता करूंगा और फिर बताऊंगा।

लंच से पहले सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से जमीन पर कब्जे के कागजी सबूत मांगे थे, सुप्रीम कोर्ट ने अखाड़े से पूछा कि क्या आपके पास अटैचमेंट से पहले रामजन्मभूमि पर मालिकाना हक का कोई कागजी सबूत या रेवेन्यू रिकॉर्ड हैं?

इसपर निर्मोही अखाड़े ने जवाब दिया कि 1982 में हुई डकैती में सारे रिकार्ड गायब हो गए। सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से कहा कि आप दस्तावेज तैयार करें। हम आपको बाद में सुनेंगे। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि निर्मोही अखाड़ा अपना दावा साबित करने के लिये मौखिक, दस्तावेजी साक्ष्यों के मामले में पूरी तरह तैयार नहीं है। अब राम लाल विराजमान की ओर से दलीलों पर वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरन सुनवाई शुरू कर चुके हैं।

बता दें कि निर्मोही अखाड़े ने मंगलवार को मजबूती के साथ सुप्रीम कोर्ट में विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर दावेदारी पेश की और तर्क दिया कि 1934 से मुस्लिमों का उस स्थान पर प्रवेश नहीं हुआ है।

मामले की सुनवाई कर रही पीठ में न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं।

पीठ ने पिछले शुक्रवार को तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट पर संज्ञान लिया था। इस समिति की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला कर रहे थे। समिति चार महीने की कोशिश के बावजूद किसी सर्वमान्य अंतिम नतीजे पर पहुंच नहीं पाई थी।

राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में मंगलवार को उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में हिंदू पक्षकार ने दावा किया कि 1934 से इस विवादित ढांचे में किसी भी मुस्लिम को प्रवेश की इजाजत नहीं थी और यह पूरी तरह से निर्मोही अखाड़े के अधिकार में था।
प्रघान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदसयीय संविधान पीठ के समक्ष अयोध्या प्रकरण में निर्मोही अखाड़े की ओर से बहस शुरू करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील जैन ने यह ढांचा पूरी तरह से उसके अधिकार में ही है और वे इस क्षेत्र का प्रबंधन और इस पर अधिकार चाहते हैं।

इस विवाद का मध्यस्थता के माध्यम से समाधान खोजने का प्रयास विफल होने के बाद संविधान पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैासले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर शुक्रवार से सुनवाई शुरू की है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

संविधान पीठ ने दैनिक सुनवाई शुरू करते हुए अयोध्या प्रकरण की कार्यवाही की रिकार्डिंग करने के लिये राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के पूर्व विचारक के एन गोविन्दाचार्य का आवेदन अस्वीकार कर दिया। सुशील जैन ने संविधान पीठ से कहा कि निर्मोही अखाड़े का वाद मूलत: इस पर अधिपत्य और इसके प्रबंधन के अधिकार के लिये है। उन्होने कहा, ‘मैं एक पंजीकृत संस्था हूं। मेरा वाद मूल रूप से वस्तुओं, अधिपत्य और प्रबंधन के अधिकार के लिए है।’ उन्होंने कहा कि इस ढांचे का भीतरी बरामदा और राम जन्मस्थान सैकड़ों साल से निर्मोही अखाड़े के पास है

जैन से कहा, ‘भीतरी बरामदा और राम जन्मस्थान सैकड़ों साल से हमारे पास है। इसके बाहरी बरामदे में स्थित ‘सीता रसोई’, ‘चबूतरा’, ‘भण्डार गृह’ हमारे पास है और यह कभी भी किसी मामले में विवाद का हिस्सा नहीं था।’

इन अपीलों पर चल रही सुनवाई के दौरान पीठ के सदस्यों और एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन के बीच तीखी नोंकझोंक भी हुई। पीठ ने निर्मोही अखाड़े के अधिवक्ता से कहा कि वह अपनी दलीलें दीवानी विवाद तक ही सीमित रखें और कुछ लिखित दस्तावेजों को पढ़ना छोड़ दें, इस पर धवन ने हस्तक्षेप किया और कहा कि संभवत: दलीलों में किसी प्रकार की कमी नहीं होगी।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि किसी भी तरह से सुनवाई या बहस में कटौती नहीं की जाएगी और इस बारे में किसी के भी मन में कोई संदेह नहीं रहना चाहिए। धवन ने दुबारा कहा कि यही तो हम भी कह रहे थे। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘डा धवन, न्यायालय की गरिमा बनाकर रखिए।’ धवन ने इस पर कहा कि उन्होंने तो कुछ सवालों के सिर्फ जवाब ही दिए थे।

पीठ ने उनसे कहा, ‘कृपया यह ध्यान रखिए कि आप न्यायालय के एक अधिकारी हैं और हम सिर्फ यही कह रहे हैं कि हम किसी की भी दलीलों को छोटा नहीं करने जा रहे हैं।’ सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि के 2.77 एकड़ विवादित हिस्से पर अपना दावा किया और कहा कि यह आदि काल से उसके ही पास है और इस स्थल पर राम लला की पूजा हो रही है।

इस पर पीठ ने कहा, ‘वैसे भी, उच्च न्यायालय की प्रारंभिक डिक्री में आपको विवादित क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा दिया गया है।’ सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही हैं। उच्च न्यायालय ने बहुमत के फैसले में कहा था कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि तीनों पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर बांट दिया जाए।

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