मानवता को शर्मसार कर रही है मजदूरों की बेबसी

राजेन्द्र द्विवेदी

पिछले 55 दिनों से भी अधिक समय से पूरे देश भर में लाखों लाख मजदूर अपनी बेबसी के साथ छोटे-छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं को लेकर नंगे भूखे चिलचिलाती धूप में नंगे पैर जलती हुई सड़कों पर चल रहे हैं। इससे पूरी मानवता ही शर्मसार हो गई है। व्यवस्था में बैठे और समाज के सक्षम लोग कितने संवेदनहीन हो गए हैं इसका उदाहरण मजदूरों की पीड़ा है। आजादी के 73 वर्ष बाद गांव गरीब मजदूरों ने सोचा नहीं होगा कि अपने घर जाने के लिए हमें अपनी जिंदगी को दांव पर लगाना पड़ेगा। तीसरा लॉक डाउन 17 मई को पूरा हुआ है। 18 मई से चौथा लॉकडाउन शुरू हुआ जो 31 मई तक चलेगा और कोरोना कमोबेश आने वाले दिनों में दिनचर्या का भाग बन जाएंगे। हमें कोरोना से बचने के लिए लॉकडाउन हो या ना हो। सोशल डिस्टेंसिंग और सावधानियों को अपने जीवन में लागू करना पड़ेगा।

वसुधैव कुटुंबकम का नारा देने वाले हिंदुस्तान में कोरोना संकट में जो त्रासदी गरीब झेल रहा है ऐसी कल्पना करके भी दिल दहल जाता है। घर जाने के जुनून में अभी तक विभिन्न दुर्घटनाओं में 500 से अधिक मजदूर मारे जा चुके हैं। 4000 से अधिक घायल हो चुके हैं। मजदूरों के दुर्घटना में मारे जाने और घायल होने का सिलसिला अभी भी जारी है। इतिहास में हम पलायन को पढ़ते थे चाहे आजादी के समय का पलायन हो या चाहे बांग्लादेशियों का पलायन हो या दुनिया के अन्य पलायन।

आज हम अपनी आंखों से पलायन की पीड़ा देख रहे है। कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक, उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक, पूरे देश में जहां भी आप देखें सर पर गठरी हाथ में बच्चे पकड़े महिलाओं को सहारा देते हुए रोते बिलखते मजदूर अपने घर जाने के लिए विनती कर रहे है लेकिन उनकी आवाज सियासत के बीच दब कर रह गई है। राज्यों ने अपनी सीमाएं सील कर दी है। सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार होगा।

सियासत करने वाले लोगों को सोचना चाहिए कि गरीब किसी भी प्रांत का क्यों न हो, आखिर वह अपना हिंदुस्तानी है। हमारे देश का नागरिक है। उसके गरीबी को इस तरह उपहास मत करें। मुख्यमंत्रियों को सोचना चाहिए कि सत्ता उनकी बपौती नहीं है वह उसके परमानेंट उत्तराधिकारी नहीं है। इसी गरीब जनता ने उन्हें राजा की कुर्सी सौंपी है। अगर यही गरीब नाराज हो गए तो कुर्सी तो जाएगी ही समाज में अपमान को भी झेलना पड़ेगा। इतना अफसोस हो रहा है प्रियंका गांधी कह रही है कि उनकी बसें उत्तर प्रदेश की सीमा पर खड़ी हैं और योगी सरकार गरीब मजदूरों को प्रदेश की सीमा में नहीं जाने दे रही। देश गरीबों का है न ही प्रियंका गांधी का और न ही योगी आदित्यनाथ का। अगर बसें खड़ी है तो मजदूरों को लेकर राज्यों में क्यों नहीं जा रही है और अगर मजदूर गाडी में बैठ गए हैं तो उत्तर प्रदेश सरकार को उनके घर जाने से रोकने के लिए किसी तरह का न तो संवैधानिक अधिकार है और ना ही नैतिक अधिकार है।

दुर्भाग्य ही है दोनों सियासत कर रहे हैं प्रियंका भी सियासत कर रही है और योगी आदित्यनाथ भी। अवसरवादी नितीश बाबू ने तो हदें पार कर दी। जिस तरह से गरीबों के प्रति उनका व्यवहार रहा है। लग नहीं रहा है कि वह बिहार जैसे गरीब राज्य के मुख्यमंत्री हैं और गरीब परिवार से आए हैं। नितीश की छवि साफ-सुथरी और ईमानदार नेता की मानी जाती थी लेकिन अवसरवादी सियासत तथा गरीबों के प्रति नफरत का रवैया अपनाकर नीतीश ने इतिहास में वह जगह बना ली है जो एक अहंकारी और क्रूर शासक की होती है। लगता है देश में न लोक बचा है और न ही तंत्र। सब कुछ को कोरोना ने नंगा कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे प्रभावशाली और लोकप्रिय नेता है जिन्होंने गरीबी नजदीक से देखी है उनके नेतृत्व में गरीबों के साथ हो रहा अत्याचार और सियासत बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रधानमंत्री को एक गरीब की भूमिका में रहते हुए कड़े से कड़े निर्णय करके सियासत करने वालों पर लगाम लगानी चाहिए और यह बताना चाहिए गरीबों घबराओ नहीं, एक गरीब का बेटा ही देश का प्रधानमंत्री है।

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