हमारे देश का मिज़ाज लोकतांत्रिक है हम सार्वभौमिक भाईचारा और सह-अस्तित्व के सिद्धांत पर चलते रहे हैं अछे लोकतांत्रिक व्यवस्था में भागीदारी प्रजातंत्र को बेहतर माना जाता है
वासिंद्र मिश्रा
कांग्रेस पार्टी एक और विभाजन के कगार पर खड़ी है इस बार के सम्भावित विभाजन के लिए राहुल गांधी को ज़िम्मेदार माना जाएगा राहुल गांधी की तुनक मिज़ाजी और एकला चलो की नीतियाँ ज़्यादा ज़िम्मेदार होंगी ।राहुल इस बात को कई बार बोल चुके है की वे अकेले लडेंग़े।
वास्तव में विभाजन की नीव तो २०१९ के चुनाव परिणामों के समय ही पड़ गयी थी जब चुनाव में पराजय के कारणो का पता लगाने के लिए बनी अंटोनी समिति की सिफ़ारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था
पार्टी में इंदिरा गांधी के वक्त हुआ विभाजन आपरेशन कामराज योजना और आपातकालीन लागू कर के वजाहों से हुआ था राजीव गांधी के वक्त के विभाजन की वजह शाह बानो केस और बोफ़ोर्स घोटाला था ।लेकिन इस वार के सम्भावित विभाजन की वजह राहुल होंगे ।
हमारे देश का मिज़ाज लोकतांत्रिक है हम सार्वभौमिक भाईचारा और सह-अस्तित्व के सिद्धांत पर चलते रहे हैं अछे लोकतांत्रिक व्यवस्था में भागीदारी प्रजातंत्र को बेहतर माना जाता है
लेकिन राहुल गांधी का तरीक़ा छापामार रणनीति का है आरोप लगाओ और बग़ैर जवाब सुने भाग लो डिबेट की चुनौती दो और जब सामने वाला तैयार हो जाय तो भाग लो चाहें वह संसद केभीतर हो या बाहर संघटन और सरकार को रिमोट कंट्रोल से चलाने की सोच इस सबसे पुरानी पार्टी की दुर्दशा का करण है ।!राहुल गांधी द्वारा संसद के दोनो सदनो में ऐसे नेताओं को आगे किया जाता रहा है जो अपने अपने होम स्टेट्स में कांग्रिस पार्टी का बर्बाद कर चुके हैं ज़्यादातर आधार हीन अदूरदर्शी नेता ही राहुल की पहली पसंद हैं राहुल अक्सर महत्वपूर्ण मौक़े पर विलु।प्त हो जाते है चाहे वह संसद का डिबेट हो या पार्टी के कार्य कर्म।राहुल की राजनीति में संगति, प्रतिबद्धता और दृढ़ विश्वास
नहीं दिखायी देता । कांग्रिस पार्टी के फ़ाउंडेशन डे के मौक़े पर राहुल नदारत थे किसान आंदोलन जब परवान पर था तब नदारत । कांग्रिस के समूह २३ का पत्र बम पार्टी की अंदरूनी हालात को ज़ाहिर कर चुका है हम इस मुद्दे पर अपने पहले के लेखों में तफ़्सील से लिख चुके हैं पार्टी के नेताओं में अपने भविष्य की चिंता है ।
किसी को फिर से राज्य सभा की सीट का दरकार है तो किसी को अपने हज़ारों करोड़ रुपए के साम्राज्य को बचाने की चिंता है । ग़ुलाम नबी आज़ाद भीऐसे नेताओं में से एक है ।
कश्मीर से धारा ३७० हटाने के ख़िलाफ़ छाती पीट कर रोने वाले ग़ुलाम अब उसी कश्मीर में विकास की गंगा बहते देख रहे है ।खुद को सबसे भाग्यशाली भारतीय मुसलमान बता रहे हैं ।उनका यह भी दावा है की उन्होंने अपने पूरे राजनैतिक जीवन में कभी पाकिस्तान की यात्रा नहीं की .
ग़ुलाम नबी के इन बयानो को उनकी भावी योजनाओं के संकेत के रूप में देखा जा सकता है ।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और ग़ुलाम नबी आज़ाद का एक दूसरे के प्रति दोस्ती का इज़हार भी एक भावी राजनीति का हिस्सा है ।
वास्तव में पार्टी की मज़बूती नेतृत्व के मज़बूती से होती है । कार्यकर्ता और कैडर नेता को का पालन करते हैं।लेकिन राहुल के मामले में स्थिति बिल्कुल अलग है । ऐसा लगता
है की राहुल गांधी अभी राज नीति का ट्यूशन ही ले रहे है । 136 साल पुरानी पार्टी की इतनी दुर्गति किसी ने सोची भी नहीं थी देश के प्रधानमंत्री ने सच ही कहा है कि कांग्रिस पार्टी लोक सभा और राज्य सभा में अलग है । एक ही मुद्दे पर संसद के दोनो सदनो में पार्टी के नज़रिया अलग अलग देखने को मिलता है । राहुल ज़्यादा तर राज्यों में अपने विरोधियों के मुक़ाबले हथियार डाले दिखायी दे रहे हैं पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर पूर्व के राज्यों में पार्टी की हालत ठीक नहीं है ।
पश्चिम बंगाल और असम में चुनाव है और राहुल गांधी पूरे दृश्य से ग़ायब है
आख़िर इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है ।
आज की तारीख़ में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व पूरी तरह भ्रमित दिखाईदे रहा है । राहुल को नेहरू और इंदिरा जी की नितियों को समझहना चाहिए । पार्टी का ट्रेडिशनल आधार अलग रहा है ।शायद यही कारण है की पार्टी के भीतर असंतोष बड़ रहा है ।अगर समय रहते इस पर क़ाबू नहीं किया गया तो पार्टी का एक गुट अलग होकर भाजपा का दमन थाम लेगा ।राज्यों में यह कार्य तो पहले से ही शुरू हो गया है।