राजनीति में सक्रिय रहने के दो उपाय हैं। श्रम अथवा भ्रम।देश की गर्म आबो-हवा में,कड़ी धूप में,खड़े होकर,श्रम करने का कष्ट कौन उठायेगा जब कि वातानुकूलित कक्षों में,सोफ़ा में बैठ कर भ्रम फैलाना उतना ही सहल है,जितना सिगरेट की कश के बाद धुआँ।लगता है
प्रो.एच सी पांडे
कोरोना के वैश्विक प्रकोप ने,विश्व के सभी देशों को,झंझकोर के रख दिया है।भारत में,आमजन से लेकर सरकार तक,कह रही है कि करोना भयंकर महामारी है।सभी,अपने-अपने ढ़ग से,इस महामारी से जूझ रहे हैं।हर देश में,सरकार की व जनता की अलग-अलग प्रतिक्रियायें हैं।रोग का नाम ही,खासी परेशानी पैदा कर रहा है।सभी इसे करोना,करोना कह रहे हैं।कहीं कहा जा रहा है,कि ऐसी कोई बीमारी है ही नहीं,इसलिये, कुछ भी करो ना।कहीं कहा जा रहा है कि यह ला-इलाज बीमारी है चाहे कुछ भी करो ना करो।
इधर,सरकार,हाथ जोड़ कर जनता से कह रही है,सारा प्रबंध चाक-चौबंद है,आप टीका तो लगवाईये।अरे भाई,इतना तो करो ना।और उधर,विपक्ष,छाती ठोक कर,कहता जा रहा है ,कि सरकार झूठ बोलती है,इसलिये जो भी प्रशासन कहे उसे करो ना।ऐसी परिस्थिति में कोरोना का,हस-हंस के,बुरा हाल हो रहा है कि इन बुद्धिमानों को मेरे नाम के सही अक्षर तक तो पता नहीं,निदान कहॉं से लायेंगे।पहले मेरा नाम तो सही लिखना सीखें।अब लगता है कि मुझे कुछ करना ही नहीं है,मेरे नाम का भ्रम ही पर्याप्त है।
कोरोना सच कह रहा है।आज की परिस्थिति में,समस्या की जड़ ही है भ्रम,हर क्षेत्र में,हर स्तर पर,कहीं ज्यादा, और कहीं कम।कहीं नासमझों की समझ ने,तो कहीं समझदारों की,समझ कर,नासमझी ने,समस्या के विकराल बना रखा है।हर तरह के नेता,आध्यात्मिक,सामाजिक,राजनैतिक,अनैतिक इत्यादि अब अखाड़े में ताल ठोकते नज़र आ रहे हैं।सभी चिकित्सा-शास्त्री बने हुवे हैं,और,कोरोना की पिछली सात पीढ़ी,व,आगे की सात पीढ़ी के बारे में,सब कुछ जानने का दम भरते हैं।अपनी,अपनी,समझ और अपने,अपने दावे।समाजवादी पार्टी का कथन है,कि यह टीका केसरिया रंग का है इसलिये बेकार है,और,जनता हमारे सत्ता में लौटने का इंतज़ार करे,तब हम उपचार की व्यवस्था करेंगे।जनता तो इंतज़ार कर लेगी पर क्या कोरोना इंतज़ार करेगा या अपना काम कर के,सपा के लिये,उपचार हेतु किसी को छोड़ेगा ही नहीं।यही पार्टी अब पूछ रही है कि टीकाकरण में कमी का दोषी कौन है।कांग्रेस पार्टी कह रही है कि देश में बना हुवा टीका प्रभावहीन है,नहीं लगाना चाहिये जबकि एम्स,तथा,आइ सी एम आर ,इन टीकों को सही बता रही है।यदि,कांग्रेस पार्टी में इन से श्रेष्ठ विशेषज्ञ विराजमान हैं तो उन्होंने अपने राजनैतिक कार्यक्रम बंद करके अपना चिकित्सा संस्थान खोलना चाहिये,उसमें पार्टी को अधिक सफलता मिलेगी। देश का दुर्भाग्य है कि किसी भी राजनैतिक दल ने,इस महामारी से निजात पाने के लिये,कोई भी रचनात्मक कार्यक्रम,प्रस्तुत नहीं किया और न अपने सहयोग का आश्वासन दिया।
देश की राजनीति का शाश्वत रूप यही है।क्या नहीं करना चाहिये था यह सभी को ज्ञात रहता है परंतु किस परिस्थिति में,क्या करना चाहिये,यह कोई भी नहीं बताता,क्योंकि संभवत:,उन्हें स्वयं उसका ज्ञान नहीं है। ज्ञान प्राप्ति होती है कठिन परीश्रम से परंतु यह कोई करना नहीं चाहता।गॉंधी जीवन भर ढाई गज की धोती में घूमा तब दरिद्रता को समझा,माओ जंगलों में भटका तब क्रान्ति समझ में आई।विचार-धारा की समझ,सुसज्जित गोल कमरों में नहीं आती और न वहाँ उपजी विचार-धारा को अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा मिलती है।यही कारण है कि आज का राजनेता समर्पित राजनेता नहीं हो सकता और उसे विचार-धारा का तमग़ा केवल अपने स्वार्थ के लिये चाहिये।अकबर इलाहबादी ने सही फ़रमाया था:
क़ौम के ग़म में,खाते हैं डिनर हुक्काम के साथ,
रंज लीडर को बहुत हैं,मगर आराम के साथ।
राजनीति में सक्रिय रहने के दो उपाय हैं। श्रम अथवा भ्रम।देश की गर्म आबो-हवा में,कड़ी धूप में,खड़े होकर,श्रम करने का कष्ट कौन उठायेगा जब कि वातानुकूलित कक्षों में,सोफ़ा में बैठ कर भ्रम फैलाना उतना ही सहल है,जितना सिगरेट की कश के बाद धुआँ।लगता है कि सभी राजनैतिक दल,तथा,राजनेता,श्रम को तिलांजलि दे चुके हैं और वास्तविकता का धुवॉं-धुवाँ हो रहा है।कोरोना झूठ नहीं बोल रहा है।
(प्रो.एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)