पंजाब और उत्तर प्रदेश में राजनीतिक संकट

वसिन्द मिश्रा

उत्तर प्रदेश और पंजाब में देश की दोनो national parties आंतरिक गुट बाज़ी की शिकार दिखायी दे रही हैं
आने वाले दिनो में दोनो राज्यों के विधान सभा चुनाव हैं चुनावों के पहले इस तरह के राजनैतिक उठा पटक कोई नयी बात नही है लेकिन महामारी के मद्देनज़र इस तरह का कलह नुक़सान दायक साबित हो सकता है
पंजाब की गुटबाज़ी तो पहले से जगज़ाहिर है
राहुल गांधी से लेकर नवजोत सिंह सिंधू सहित एक गुट कैप्टन अमरिंदेर से नाराज़ है लेकिन उनको हटा पाने में नाकाम रहा है
सिंधू तो एक बार नाराज़ होकर आम आदमी पार्टी का भी दरवाज़ा खटखटा चुके हैं देखना है इस बार की नाराज़गी उनको किसके दरवाज़े पर जाने के लिए मजबूर करती है
कृषि क़ानूनों के चलते पंजाब के किसान सबसे ज़्यादा नाराज़ हैं भाजपा का भरोसे मंद साथी अकाली दल भी उसको साथ छोड़ चुका है ऐसे हालात में भाजपा को भी एक भरोसेमंद चेहरे की तलास है सिंधू भाजपा छोड़कर ही congress में गए हैं
भाजपा कुछ वर्षों से दूसरे दलों के नेताओं को शामिल करके चुनाव लड़ती रही है तो क्या सिंधू की घरवापसी हो गी या अपनी माँग पूरी ना होने की स्थिति में आम आदमी पार्टी की तरफ़ जाएँगे
अभी तक के राहुल गांधी के ट्रैक रेकर्ड को अगर देखा जायँ तो वे अंदरूनी गुटबाज़ी की निपटाने में विफल रहे है पिछले कुछ वर्षों में हुए विधान सभा। चुनाओ में कांग्रिस पार्टी की हार के प्रमुख कारण कदावर नेताओं का दूसरे दलों में शामिल होना है
राहुल गांधी की वजह से देश के तमाम राज्यों में कांग्रिस पार्टी सत्ता से बेदख़ल हो गयी अगर समय रहते पंजाब की गुटबाज़ी ख़त्म नहि हूयी तो दुबारा कांग्रिस पार्टी का सत्ता में वापसी मुसकिल होगा और किसानो की नाराज़गी का राजनैतिक लाभ आम आदमी पार्टी को ज़्यादा मिल सकता है ।
राहुल गांधी शुरू से अमरिंदेर सिंह को ना पसंद करते है पहले कई साल तक वे प्रताप बजवा को आगे करके अमरिंदेर को परेशान करते रहे बाद में अमरिंदेर की खुली नाराज़गी के बाद प्रताप बजवा को पंजाब से बाहर किया गया
राहुल गांधी इसी तरह का काम हरियाणा में भी कर चुके हैं वह पर आधार विहीन कुमारी शैलेजा को भूपिंदर सिंह हुड्डा के मुक़ाबले ज़्यादा तरजीह दिया जाता रहा
पिछले विधान सभा चुनाव में हुड्डा को ज़्यादा तरजीह नहि दिया गया
नतीजतन कांग्रिस पार्टी चुनाव हार गयी
इस बार अगर पंजाब का अंदरूनी कलह जल्दी नहि निपटाया गया तो इसका नुक़सान आने वाले विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ सकता है
दूसरी ओर
उत्तर प्रदेश भाजपा का अंदरूनी कलह आने वाले चुनावों के मद्दे नज़र आत्मघाती हो सकता है चुनाव पूर्व सत्तारूढ़ दल में कलह स्वाभाविक प्रक्रिया है इस तरह की गतिविधियाँ लगभग सभी दलों में देखने को मिलती है अपने राजनैतिक भविष्य को ध्यान में रखते हुए नेताओं का दल बदल भी होता रहा है
लेकिन पार्टी नेतृत्व को ऐसे लोगों को चिन्हित करके उनको सम्भालने की कोशिस करनी चाहिए
कांग्रिस के मुक़ाबले भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ज़्यादा जागरूक दिखायी दे रहा है ऐसा लगता है की वे इस अंदरूनी कलह को रोक पाने में कामयाब रहेंगे दिल्ली और लखनऊ में चल रही क़वायद पार्टी नेतृत्व के इसी कोशिस का हिस्सा है
अब पता चला है की पार्टी योगी आदित्य नाथ की अगुआयी में विधान सभा का चुनाव लड़ेगी पार्टी का अजेंडा उग्र हिंदुत्व ही होगा मौजूदा सरकार हिंदुत्व के अलावा बाक़ी मुद्दों पर काफ़ी पीछे है
नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में भी इस बात का ज़िक्र किया गया है रिपोर्ट के मुताबिक़ विकास और अन्य सेक्टर में उत्तर प्रदेश की रैंकिंग देश के बाक़ी राज्यों से नीचे है

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