भारत में लोकतंत्र खतरे में

आज संसद और विधान सभाओं में आधे से अधिक सदस्यों की अपराधिक मामलों में तथाकथित संलिप्तता है।सदनों में उनका काम,नेताओं के इशारों पर,शर्मनाक बयान,हंगामा और नारेबाज़ी करना है।उनका दोष नहीं है,क्योंकि,आपनेऔर मैंने ही ऐसे शर्मवीरों को चुना है।माना कि राजनैतिक दल अपनी कमज़ोरियों और मजबूरियों की वजह से ऐसे उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारती हैं पर हम ही मत देकर उन्हें सफल बनाते हैं।

प्रो. एच सी पांडे
जनतंत्रात्मक शासकीय  प्रणाली में निर्णय का सर्वोच्च मंच संसद है।पर हमारे देश की संसद में हर सांसद अपने को ही सर्वोच्च मंच मानता है।यदि एक भी प्रस्ताव किसी सांसद की निजी राय के अनुरूप नहीं होता तो वह उसे जनतंत्र की हत्या घोषित कर देता है।यह मानसिकता बहुत पुरानी है।ग्रामीण क्षेत्र में कहा जाता है…..’पंचों की राय सिर माथे,पर नाली तो यहीं से निकलेगी’।इस परिस्थिति में देश की संसद,देश की समस्याओं को निपटाने में असमर्थ  तथा उलझाने में समर्थ होती जा रही है।जनतंत्र में संसद,समस्या की निंदा के लिये नहीं,वरन,समस्या के निदान के लिये,कार्यरत होनी चाहिये परंतु आज संसद में,सार्थक बहस कम ओर आरोप-प्रत्यारोप प्रतियोगिता अधिक होती है।अभद्र भाषा की बौछार,मुद्दों से भटकाव,कक्ष से बहिर्गमन,स्पीकर के आदेशों की अवहेलना,सभा की कार्यवाही को अवरुद्ध करना,यही गुण या अवगुण,आज सफल सांसद की योग्यता परिभाषित करते हैं।
अब सवाल उठता है,क्या जनतंत्र देश में असफल हो रहा है ? उत्तर है,हाँ,असफल होता जा रहा है,और,असफल ही रहेगा।क्योंकि जनतंत्र कोई स्वचलित यंत्र नहीं है,इसे चलाना पड़ता है और इसे जनता ही ने चलाना है।आप और मैं यदि इसके लिये सजग तथा कार्यशील नहीं हैं,तो यह प्रणाली सफल नहीं हो सकती।चुनावी मतदान में भाग लेना जनतंत्र की सफलता के लिये ज़रूरी है,पर यह समझना भी ज़रूरी है कि चुनाव केवल एक औपचारिकता नहीं है वरन इसके द्वारा शासन की बागडोर चुने गये लोगों के हाथ में सौंपी जा रही है,जो अब देश के भाग्यविधाता हैं।जनता की इस संदर्भ में उदासीनता,तथा,’कोउ नृप होय,हमें का हानि’ का सोच,हमारी जनतांत्रिक व्यवस्था को अर्थहीन बना रहा है। चुनावी प्रक्रिया का महत्व समझ कर जनता द्वारा सही लोगों को चुनना,जनतंत्र की सफलता के लिये अनिवार्य क़दम है।यह भी समझना ज़रूरी है कि चुनाव के बाद जनता की ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं हो जाती बल्कि शुरू होती है,क्योंकि जनता को सुनिश्चित करना है कि जनप्रतिनिधि,समाज हित और देश हित से भटक कर स्वार्थसिद्धि में न लग जायें।सत्ता का नशा चढ़ने में देर नहीं लगती इसलिये ख़ास निगरानी ज़रूरी है।जनता द्वारा, सजगता,सतर्कता, और,हर समय अपने प्रतिनिधि  को अनुशासित रखना,ही जनतांत्रिक शासन प्रणाली को सफल बनाता है।
अभी तक,हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी रही है,मानसिक और शारीरिक आलस्य,जिसके कारण  हम,न तो चुनाव में खड़े उम्मीदवारों की पृष्ठ-भूमि की गहरी जाँच करते हैं,न सही उम्मीदवारों के पक्ष में जनता को समझाते हैं,और,न चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि के कार्यक्षेत्र में हो रही विकास गतिविधियों पर नज़र  रखते हैं।सबको ख़ुश रखने  की मानसिकता के कारण,सच को सच,और,झूठ को झूठ,कहने से कतराते हैं। अंकुशहीन जनतंत्र से विनाश हो सकता है,विकास नहीं।जनतंत्र में जन,तंत्र के उपर है,और,सरकार के ‘माई-बाप’ हैं,आप और मैं।अगर माँ-बाप,बच्चों की शिक्षा,दीक्षा और आचरण पर ध्यान नहीं देंगे और अपना दायित्व नहीं निभायेंगे तो संतान बिगड़ैल ही होगी।
आज संसद और विधान सभाओं में आधे से अधिक सदस्यों की अपराधिक मामलों में तथाकथित संलिप्तता है।सदनों में उनका काम,नेताओं के इशारों पर,शर्मनाक बयान,हंगामा और नारेबाज़ी करना है।उनका दोष नहीं है,क्योंकि,आपनेऔर मैंने ही ऐसे शर्मवीरों को चुना है।माना कि राजनैतिक दल अपनी कमज़ोरियों और मजबूरियों की वजह से ऐसे उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारती हैं पर हम ही मत देकर उन्हें सफल बनाते हैं।ऐसे शासकों से सुशासन की उम्मीद करना बेमानी है,देश का विकास तो दूर की कौड़ी है।यदि देश में जनतान्त्रिक प्रणाली असफल होती है तो उसके दोषी आप और हम हैं।
जॉर्ज आरवेल ने,दशकों पहले लिखा था…..
‘जनता,जो भ्रष्ट राजनेताऔं,ठगों,चोरों तथा देशद्रोहियों को चुनती है,वह पीड़ित नहीं,सह-अपराधी है’।
(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)

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