दिल्ली में ही पिछले लगभग तीन चार महीनों से डेंगू पर वार नाम के विज्ञापनों की भर मार रही । “दस हफ़्ते , दस बजे , दस मिनट “ और “डेंगू दिल्ली से भाग “ नाम के टीवी और अन्य मीडिया पर चलाए गए विज्ञापनों को सुन कर जनता भी बोर हो चुकी है
वी एस पांडे
दिल्ली में इस समय डेंगू का प्रकोप जारी है । समाचार पत्रों के अनुसार इस बार पिछले तीन वर्षों की तुलना में डेंगू के मरीज़ों की संख्या बहुत ज़्यादा है और लोगों को इसके चलते तमाम तरह की परेशानियों को भुगतने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है । दिल्ली से लगे राज्य उत्तर प्रदेश में भी डेंगू पसर चुका है और अस्पतालों में डेंगू के मरीज़ों की भीड़ देखी जा सकती है । दिल्ली में डेंगू को लेकर केजरीवाल के नाम की होर्डिंग और अन्य विज्ञापन भरे पड़े मिलेंगे जिसमें डेंगू को हराने को लेकर तमाम बातें कहीं गई मिलेंगी । इसको लेकर यह सवाल उठना लाज़मी है कि जब डेंगू को दिल्ली में केजरीवाल हरा चुके थे तो अब अस्पतालों में डेंगू के मरीज़ों की ऐसी भीड़ क्यों ?
देश के किसी भी कोने में रहने वाले लोगों ने राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर डेंगू को हराने और दिल्ली से डेंगू को भगाने वाला विज्ञापन तो ज़रूर देखा होगा और यह भी देखा होगा कि किस प्रकार केजरीवाल इन विज्ञापनों के माध्यम से डेंगू के ख़िलाफ़ जीती गई जंग का बखान करते रहे और आगे भी डेंगू को दिल्ली से भगाने के लिए जनता को उपदेश देते रहे । इन सभी विज्ञापनों को देख कर यह सवाल सभी के मन में उठना स्वाभाविक है कि सरकारी और जनता से लिए गए टैक्स के पैसे से चलाए जा रहे इन विज्ञापनों के माध्यम से क्या पार्टी या व्यक्ति विशेष का प्रचार किया जाना उचित है ?
दिल्ली में ही पिछले लगभग तीन चार महीनों से डेंगू पर वार नाम के विज्ञापनों की भर मार रही । “दस हफ़्ते , दस बजे , दस मिनट “ और “डेंगू दिल्ली से भाग “ नाम के टीवी और अन्य मीडिया पर चलाए गए विज्ञापनों को सुन कर जनता भी बोर हो चुकी है लेकिन यह विज्ञापन अबाध गति से महीनों चलते ही रहे और सरकारी ख़ज़ाने से सैकड़ों करोड़ खर्च किए जाते रहे लेकिन दावों के विपरीत डेंगू ना तो दिल्ली से भागा और ना ही उसने दिल्ली वासियों को ही बक्शा । डेंगू को लेकर दिल्ली सरकार द्वारा व्यक्ति विशेष और पार्टी विशेष का सरकारी पैसे से प्रचार करने का यह कृत्य तो एक उदाहरण मात्र है कि काम करने के बजाय मीडिया का प्रयोग करके राजनीतिक लाभ उठना एक प्रकार से फ़ैशन हो गया है जिसका अनुकरण सभी प्रदेशों की सरकारें और केंद्र सरकार भी खुल कर करने लगी है ।
कुछ समय पूर्व इसी प्रकार के अधाधुँध किए जा रहे अनावश्यक प्रचारों पर रोक लगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिस पर आदेश पारित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे विज्ञापनों में मुख्य मंत्री , मंत्रियों , एवं अन्य सभी की फ़ोटो को विज्ञापनों में प्रयोग करने पर रोक लगा दी थी लेकिन धीरे धीरे पुनः पुरानी प्रथा लौट आयी और सरकारी धन से व्यक्ति विशेष के प्रचार का कार्य देशभर में अबाध गति से जारी है ।
लोकतांत्रिक व्यवस्थाके तहत न्यायालयों को क़ानून के ख़िलाफ़ किए जारहे कार्यों को रोकने की पूर्ण शक्तियाँ प्राप्त है परंतु न्यायालयों की भी अपनी सीमाएँ हैं । देश की सरकार कैसी चल रही , वह विधिक रूप से कार्य कर रही या नहीं इसको देखने की पूरी ज़िम्मेदारी उस देश के नागरिकों और वोटेरों पर है क्योंकि सरकारें सिर्फ़ जनता के प्रति जवाब देह हैं और हर पाँच साल बाद सरकारों को अपने क्रियाकलापों का लेखा जोखा जनता के समक्ष रख कर पुनः जनता का विश्वास प्राप्त करना पड़ता है और यही लोकतंत्र का मूल है । इसलिए जनता को आँख कान खोल कर दिन प्रतिदिन सरकारों के क्रियाकलापों पर पैनी दृष्टि रखनी होगी और तभी सही मायनों में लोकतंत्र स्थापित हो सकता है । सरकारों के ग़लत कार्यों को न्यायालयों के समक्ष लेजाकर उन्हें निरस्त कराना या उनपर रोक लगाना जहां ज़रूरी है वहीं जनता को दिन प्रतिदिन यह भी देखना ज़रूरी है कि वह लगातार यह देखती रहे कि राजनीतिक दल विधिसम्मत व्यवहार कर रहे हैं या नहीं और उनकी सरकारें निष्ठा पूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन कर रही हैं या नहीं ।सरकारों पर विधिसम्मत ढंग से कार्य करते रहने के लिए लगातार दबाव बनाते रहने का दायित्व सीधे सीधे जनता पर है ना कि न्यायालयों का । इतिहास इसका गवाह रहा है कि जब कभी भी किसी भी देश में जनता ने अपने इस सबसे महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन करने में कोताही बरती तो ना केवल आम जन को बल्कि पूरे देश और समाज को इसका ख़ामियाज़ा भुगतान पड़ा है । इस शास्वत सत्य को भुलाना हम सभी को महँगा पड़ेगा लेकिन यह सब जानते हुए भी जब विधिविरुद्ध आचरण करने वालों को देश की जनता जाति , धर्म , बाहुबल और काले धन के प्रभाव में आकार अपना बहुमूल्य वोट देने लगती है तो देश को तमाम तरह की विपन्नता , अभावों और विपदाओं का सामना करना ही पड़े गा । इस सच को देश की जनता जितना जल्दी आत्मसात् करले , देश के लिए वह उतना ही अच्छा होगा ।किसी भी लोकतंत्र में देश को समृद्ध , मज़बूत, सुखी और उन्नत बनाने की चाभी जनता के हाथों में है और इस चाभी उचित ढंग से प्रयोग करके वह अपने भविष्य को प्रकाशमान बना सकती है । इस दायित्व के निर्वहन मे गलती अभी तक देश को काफ़ी महँगी साबित हुई है , आगे ऐसा ना हो इसी की दरकार है ।
(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)