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(Update 12 minutes ago)

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, वोट बैंक की राजनीति देश की एकता, अखंडता के लिए बड़ा खतरा

हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा और भड़के हुए विवाद एक अशुभ संकेत हैं। ये घटनाएं देश के लोगों के लिए जाति, धर्म, भाषा, जातीयता आदि पर आधारित विभाजनकारी राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक आगाज हैं ध्रुवीकरण और ‘वोट बैंक’ की राजनीति पर पनप रही है।

वी.एस.पांडे

हाल ही में मध्य प्रदेश में कुछ दिनों पहले रामनवमी पर हुई भीषण सांप्रदायिक हिंसा, हमारी सामूहिक अंतरात्मा के लिए एक दुखद सन्देश है। पिछले कई वर्षों से, हमारा देश में पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं से संबंधित कई मुद्दों पर बढ़ते हुए विवादों को देख कर किसी भी संवेदनशील नागरिक के लिए चिंतित होना लाज़मी है। निस्संदेह धर्म मनुष्य और “ईश्वर” के बीच का एक व्यक्तिगत मामला है और इसका सार्वजनिक तमाशा करना अनुचित है। लेकिन आजकल हर कोई अपने धर्म और विश्वास को सार्वजनिक तरीके से प्रदर्शित करने में जुटा दिख रहा है और उसको ‘दूसरे’ के साथ जोर शोर से और अधिक प्रभावशाली बनने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहा है और यही प्रवृति हर जगह तनाव बढ़ा रही है। लाउडस्पीकर, धार्मिक जुलूस, हिजाब, हलाल मांस, माथे पर तिलक आदि का उपयोग पीढ़ियों से होता आ रहा है। अज़ान के लिए लाउडस्पीकरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की मांग तो जोर-शोर से की जा रही है, लेकिन विभिन्न हिंदू धार्मिक प्रथाओं में उनके लगातार उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए कोई आवाज नहीं सुनी जाती है। यह कठोर, असहिष्णु प्रतिस्पर्धी धार्मिक उत्साह कपटपूर्ण तरीके से कैसे हमारे सार्वजनिक जीवन में प्रवेश कर गया और फिर हमारे देश के जीवन में कैसे हावी होना शुरू हो गया, यह गंभीर आत्मनिरीक्षण का मामला है। हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा और भड़के हुए विवाद एक अशुभ संकेत हैं। ये घटनाएं देश के लोगों के लिए जाति, धर्म, भाषा, जातीयता आदि पर आधारित विभाजनकारी राजनीतिक व्यवस्था को साफ करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक आगाज हैं , जो ध्रुवीकरण और ‘वोट बैंक’ की राजनीति पर पनप रही है।

इन बीते कई दशकों के दौरान जो सवाल कभी नहीं पूछा गया है , वह यह है कि – अज़ान या कीर्तन या चालीसा या कथा के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल क्यों किया गया? लाउडस्पीकरों का क्या कार्य है – धार्मिक प्रथाओं को सार्वजनिक एवं अवांछित रूप से अन्य लोगों पर थोपना और हमारे कानों पर अनावश्यक रूप से हमला करना? देश के कानून के अनुसार यहां तक कि निजी कार्यक्रमों को भी एक निश्चित डेसीबल स्तर से अधिक की आवाज करने की अनुमति नहीं है। लाउडस्पीकर का उपयोग सीमित स्थान में ज्यादा संख्या में उपस्थित लोगों को संबोधित करने के लिए किया जाता है। वे पूरे मोहल्ले पर प्रहार करने के लिए नहीं हैं, जिन्हें विभिन्न प्रकार के चौबीस घंटे चलने वाले धार्मिक आयोजनों के पाठों को सुनने की पीड़ा भुगतनी पड़ती है जिसके दौरान आयोजक तमाम वाद्य ऊंचे स्वर पर बजाते हैं और ढोलक पीटते हैं। प्रश्न यह है कि कोई अपने पड़ोसियों को अपने धार्मिक उत्साह का हिस्सा बनने के लिए मजबूर करने की आवश्यकता कैसे महसूस कर सकता है, दूसरे कि असुविधा एवं उनकी आस्था की परवाह किए बिना। इसी तरह समय-समय पर धार्मिक जुलूस निकालने की प्रथा को कभी भी प्रतिबंधित नहीं किया गया है। नतीजतन इन धार्मिक जुलूसों के चलते पूर्व में अनगिनत भयानक सांप्रदायिक झड़पें हमारे देश में हो चुकी हैं जिसके कारण कई कीमती लोगों की जान चली गई। इसीलिए हमारे देश में विभिन्न सरकारों द्वारा किसी भी नए धार्मिक जुलूस की अनुमति देने या पुराने जुलूसों का मार्ग बदलने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। कानून व्यवस्था सम्हालने वाले लोग इसी लिए इन मामलों में किसी भी परिवर्तन की अनुमति नहीं देते है।
शांति और समृद्धि के पथ पर आगे बढ़ने के लिए हमें अपने महापुरुषों द्वारा दी गई सलाह को सुनना होगा। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में धर्म की भूमिका और विविध धार्मिक आस्थाओं वाले समाज में सहअस्तित्व के बारे में एक स्पष्ट दृष्टि थी। उन्होंने लिखा है कि “मेरा अनुभव रहा है कि मैं हमेशा अपने दृष्टिकोण से सत्य हूं, लेकिन अपने ईमानदार आलोचकों के दृष्टिकोण से अक्सर गलत हूं। मैं जानता हूं कि हम दोनों अपने-अपने दृष्टिकोण से सही हैं। और यह ज्ञान मुझे अपने विरोधियों या आलोचकों के इरादों को जिम्मेदार ठहराने से बचाता है। ” उन्होंने अपने तर्क को पुष्ट करने के लिए सात अंधे लोगों की कहानी का उल्लेख किया, जिन्होंने हाथी के सात अलग-अलग विवरण दिए। वे सभी अपने-अपने दृष्टिकोण से सही थे, और एक दूसरे के दृष्टिकोण से गलत थे, और हाथी को जानने वाले व्यक्ति के दृष्टिकोण से सही और गलत थे। उन्होंने कहा, “मुझे वास्तविकता की अनेकता का यह सिद्धांत बहुत पसंद है। इसी सिद्धांत ने मुझे एक मुसलमान को उसके अपने नजरिए से और एक ईसाई को उसके नजरिए से आंकना सिखाया है। पहले मैं अपने विरोधियों की अज्ञानता से नाराज़ रहता था। आज मैं उन्हें प्यार कर सकता हूँ ।”
वह अन्य धर्मों के दृष्टिकोण और उनकी प्रथाओं के बारे में समझ विकसित करने के महान समर्थक थे। इसके अलावा उनकी सलाह थी कि अपनी आंखें और कान खुले रखें और अपने विश्वासों के हर पहलू की आलोचनात्मक जांच करने के लिए अंदर देखें। उन्होंने कहा कि “मैं अपने पूर्वजों के लेबल को तब तक बनाए रखना पसंद करता हूं जब तक कि यह मेरी वृद्धि को बाधित न करे और जो कुछ भी अच्छा हो उसे आत्मसात करने से मुझे रोके नहीं।”
साथ ही उन्होंने यह भी कहा, “मैं ऐसे किसी भी धार्मिक सिद्धांत को अस्वीकार करता हूं जो तर्क को अपील नहीं करता है और नैतिकता के विपरीत है। उदाहरण के लिए, मनुष्य असत्य, क्रूर और असंयमी हो कर कभी भी ईश्वर को अपने पक्ष में रखने का दावा नहीं कर सकता। और निश्चित रूप से, जो धर्म व्यावहारिक मामलों का कोई हिसाब नहीं लेता है और उन्हें हल करने में मदद नहीं करता है, वह धर्म नहीं है”।
स्पष्ट रूप से, विवाद तब उत्पन्न होते हैं जब दूसरा पक्ष समझ की कमी और अदूरदर्शी दृष्टि के कारण दूसरों के दृष्टिकोण की सराहना करने में विफल होते हैं। गांधीजी साम्प्रदायिक कलह के खतरों और हमारे देश के भविष्य पर उनके प्रतिकूल प्रभाव से अवगत थे। इसलिए उन्होंने इस मुद्दे पर विस्तार से लिखा, हमें लगातार सावधान रहने के लिए चेतावनी दी। समय आगया है कि हम विघटनकारी सोच को त्यागते हुए सब को साथ लेकर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हों। इसके अलावा कोई दूसरा मार्ग विनाशकारी होगा।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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