दिल्ली शराब घोटाले के बारे में शुरू से ही यह स्पष्ट था कि मुख्यमंत्री केजरीवाल इसके लिए सीधे सीधे ज़िम्मेदार हैं और घोटाले के किंगपिन हैं क्योंकि जब कभी किसी भी नीति विषयक निर्णय के चलते कोई घोटाला या भ्रष्टाचार होता है तो उसकी सीधी ज़िम्मेदारी मुख्यमंत्री की होती है । किसी भी शासन में कोई भी विषय तभी कैबिनेट के समक्ष निर्णय हेतु प्रस्तुत होता है जब उसपर राज्य का मुख्यमंत्री अपनी सहमति और अनुमोदन देता है । कैबिनेट की बैठक जिसमें निर्णय होता है , उसकी भी अध्यक्षता मुख्यमंत्री ही करता है इसलिए नीति परिवर्तन के बाद यदि घोटाला होता है तो साफ़ है कि मुख्यमंत्री सीधे तौर पर उस घोटाले का सरग़ना होगा , उससे कम कुछ भी नहीं ।
वी. यस. पाण्डेय
“दिल्ली शराब घोटाला फ़र्ज़ी है , एक चवन्नी तक बरामद नहीं हुई “ की दिन रात रट लगाने वाले अरविंद केजरीवाल और उनके चट्टे बट्टे लोगों का मुँह हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा न्यायालय में शराब घोटाला मामले में दाखिल की गई सातवीं चार्ज शीट के बाद बंद होना चाहिए , ऐसा कुछ लोगों ने ज़रूर सोंचा होगा । लेकिन यह विचार तो सामान्य तर्क पर चलने वालों के मस्तिष्क में ही आयेगा । आज के भारत में “केजरीवाल ब्रांड “ की राजनीति का चलन है जिसमें तर्क काम नहीं देते । एक झूट को लगातार बोलते रहिए , बोलते रहिए , मीडिया उसे छापता रहे और लाइव चलाता रहे , तो झूट को ही सच मानने वालों की कोई कमी नहीं ।
मीडिया चैनलों पर “राजनीतिक विश्लेषक” की भूमिका में ऐसे लोगों को वर्षों से बैठा कर डिबेट कराने की जो प्रथा शुरू की गई है उसके चलते झूट को सच में बदलने की जो “ सफ़ाई मशीन “ सभी की मिलीभगत से तैयार कराई गई है उसके सामने तो राजनीतिक “वॉशिंग मशीन “ शर्म खाकर मुँह छिपाने को मजबूर हो गई है ।दिल्ली सरकार जो पूरी तरह केंद्र शासित है , के लोग जब प्रतिदिन झूट की नई नई थाली परोसते हैं तो देश भर के लोगों को मजबूर हो कर इस लाइव प्रसारण को देखने के लिए बाध्य हो कर झूट को पचाने के लिए मजबूर होना पड़ता है ।
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य तो यह है कि दिल्ली जैसे छोटे से राज्य , जिसका आकार और जनसंख्या उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के एक मण्डल से भी कम है , का प्रचार का बजट उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जो आबादी के हिसाब से विश्व का छठा सबसे बड़ा देश है , से कई गुना ज़्यादा प्रचार का बजट इन्ही केजरीवाल जी की मेहरबानी का फल है । इसी भारी भरकम प्रचार बजट के “रेवड़ी वितरण” का दुष्परिणाम आज देश के सामने है कि किसी भी मीडिया के पास इतना भी नैतिक साहस शायद अब नहीं बचा कि वह लम्बे समय से केजरीवाल द्वारा परोसे जा रहे झूट कि “ शराब घोटाला फ़र्ज़ी है , छापों में चवन्नी तक नहीं रिकवर हुई “ का पर्दाफ़ाश करने और सच्चाई को जनता तक पहुँचाने के लिए दो चार सवाल ही पूँछ लें।
दिल्ली शराब घोटाले के बारे में शुरू से ही यह स्पष्ट था कि मुख्यमंत्री केजरीवाल इसके लिए सीधे सीधे ज़िम्मेदार हैं और घोटाले के किंगपिन हैं क्योंकि जब कभी किसी भी नीति विषयक निर्णय के चलते कोई घोटाला या भ्रष्टाचार होता है तो उसकी सीधी ज़िम्मेदारी मुख्यमंत्री की होती है । किसी भी शासन में कोई भी विषय तभी कैबिनेट के समक्ष निर्णय हेतु प्रस्तुत होता है जब उसपर राज्य का मुख्यमंत्री अपनी सहमति और अनुमोदन देता है । कैबिनेट की बैठक जिसमें निर्णय होता है , उसकी भी अध्यक्षता मुख्यमंत्री ही करता है इसलिए नीति परिवर्तन के बाद यदि घोटाला होता है तो साफ़ है कि मुख्यमंत्री सीधे तौर पर उस घोटाले का सरग़ना होगा , उससे कम कुछ भी नहीं ।
हमारे देश में क़ानून का राज है और विभिन्न स्तरों पर न्याय पाने के दरवाज़े केजरीवाल जैसे सामर्थवान लोगों के लिए हमेशा ही खुले हैं । घोटाले को फ़र्ज़ी बताने का खेल काफ़ी लम्बे समय से चलाया जा चुका है लेकिन यह साफ़ है कि झूट बोल कर बच निकलने की अब कोई गुंजाइश केजरीवाल के पास नहीं बची है । यही बात अब उनकी पार्टी के नेताओं के भी समझ में भी आ जानी चाहिए । अब केजरीवाल को उनके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों का जवाब न्यायालय को देना ही होगा । मीडिया के माध्यम से अब तक जो तथ्य आम जन के समक्ष आए है उसके परिप्रेक्ष्य में पहली नज़र में ही यह साफ़ है कि केजरीवाल इस घोटाले में पूरी तरह लिप्त हैं और ऐसा प्रतीत होता है की न्यायालय से वह अवश्य ही दंडित होंगे ।
झूट को सच बताकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने का केजरीवाल का यह कोई पहला कारनामा नहीं है । लोक पाल बिल को लेकर जिस प्रकार का झूट केजरीवाल ने फैलाया और देश के आम जन को जिस तरह से बेवक़ूफ़ बनाया गया , उसका कोई दूसरा उदाहरण देश की राजनीति में शायद ही कोई मिल पाए। यह वही केजरीवाल है जिसने यह झूठ फैलाया कि लोक पाल बिल पास होते ही देश की सारी समस्याओं का हल हो जाए गा और भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए गा । लोक पाल को बने दस वर्ष हो गए हैं और देश की हालत सबके सामने है । इस व्यक्ति ने लोक पाल का नाम पिछले दस सालों में सत्ता पाने के बाद से आज तक नहीं लिया है , क्या यह दुःखद नहीं है । इतना ही नहीं देश की राजनीति की सफ़ाई करने का दावा करने वाले केजरीवाल आज खुद ही दर्जनों भ्रष्टाचार के दलदल में स्वयं ही डूबे हुए हैं जिससे निकल पाना इनके लिए असम्भव है । दूसरी ओर केजरीवाल पर देश विरोधी ताक़तों से साँठगाँठ और उनसे करोड़ों का चंदा वसूलने के अत्यंत गम्भीर आरोपों की अभी जाँच होना शेष है । दुःखद स्थिति तो यह है कि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले पंजाब विधान सभा चुनाव से पहले वहाँ के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने पत्र लिख कर केजरीवाल और उनकी पार्टी पर देश विरोधी ताक़तों से साँठ गाँठ करने सम्बन्धी सभी तथ्यों से केंद्र सरकार को अवगत कराया था और कार्यवाही की माँग की थी लेकिन दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति यह है कि इन अत्यंत गम्भीर आरोपों पर केंद्र की सरकार ने कोई भी कार्यवाही नहीं की ऐसा प्रतीत होता है ।समय आगया है कि देश द्रोही ताक़तों से साँठ गाँठ करने वालों को क़ानून के अनुसार विधिवत जाँच कराकर दोषी पाए जाने पर विधिसम्मत दण्ड दिलाए जाने की व्यवस्था की जाये। इस तथ्य को भी भलीभाँति समझ लेना बहुत ही जरूरी है कि किसी के भी द्वारा फैलाए जा रहे झूँठ के साम्राज्य को समाप्त करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ सरकारों की ही नहीं बल्कि मीडिया और हर एक नागरिक की भी है । आगे आने वाले समय में झूँट फ़रेब करके सत्ता हथियाने की सभी की कोशिशों को नाकाम किया ही जाना होगा ।
(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)