सत्ता कोई जादू की छड़ी नहीं है कि हवा में घुमाई और सब कुछ टीक हो गया।सदियों से इकट्ठी,सामाजिक,आर्थिक तथा विकास की समस्याओं के निदान में,दशकों के समय के साथ-साथ, लगन व कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है
प्रो. एच सी पांडे
आख़िरकार प्रधानमंत्री ने सच्चाई उजागर कर दी,और,देश की प्रगति का मूलमंत्र स्पष्ट कर दिया। सबका विकास,सबका साथ के नारे में,पहले जुड़ा सबका विश्वास,और फिर,सबका प्रयास।
सरकार सबका साथ दे सकती है,तथा,सबके विकास का का प्रयत्न कर सकती है,जनता का विश्वास जीतने की कोशिश कर सकती है परंतु बिना जनता के प्रयास के कुछ नहीं हो सकता।आज़ादी के बाद से सरकारें आईं,और,सरकारें गई,पर किसी भी सरकार ने,जनमानस में,सदियों से व्याप्त,”सरकार माई-बाप” मानसिकता को मिटाने का प्रयत्न नहीं किया।
यह न समझा,और,न जन-साधारण को समझाना ज़रूरी समझा,कि इस विशाल देश की विशाल समस्याओं का वास्तविक तथा स्थाई हल केवल जनता के पास है।कितने ही तगड़े बैल हों,कितने ही बढ़िया बीज हों,हल चलाने की मेहनत तो किसान को ही करनी होगी।
अभी तक हर राजनेता छाती ठोक कर कह रहा था कि बस हमें चुनाव जिता दीजिए और हम देश की सभी समस्यायें हल कर देंगे।आपको कुछ नहीं करना है,बस ईवीएम में हमारा बटन दबा दीजिए।पता नहीं क्यों,नेता समझते रहे हैं कि वे सर्वशक्तिमान हैं और,जैसे ही सत्ता हाथ में आयेगी,वे देश की सारी परेशानियों दूर कर देंगे।
सत्ता कोई जादू की छड़ी नहीं है कि हवा में घुमाई और सब कुछ टीक हो गया।सदियों से इकट्ठी,सामाजिक,आर्थिक तथा विकास की समस्याओं के निदान में,दशकों के समय के साथ-साथ, है लगन व कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है और इसके लिये देश के हर नागरिक को अपना खून-पसीना एक करना होता है।विकास हेतु सब का प्रयास अनिवार्य है,अन्यथा यह निश्चित है कि,समस्याओं का यह अंबार,सुलझ नहीं सकेगा।ग़नीमत है कि सरकार को इतनी तो हिम्मत हुई कि यह क़बूल करे,हालाँकि अभी यह साफ़ नहीं माना है,कि इसके बिना कुछ भी न हो पायेगा।विश्व में कहीं भी,कभी भी,किसी देश का विकास नागरिकों के कठोर परिश्रम,स्वैच्छिक अथवा अनिवार्य,के बिना नहीं हुआ है।अमेरिका और यूरोप में स्वैच्छिक,और चीन में अनिवार्य,परिश्रम ही विकास की आधारशिला रही है।
हमारे देश में,राजनेताओें ने,अभी तक,कभी यह स्पष्ट रूप में नहीं बताया कि वे केवल निमित्त हो सकते हैं सारा कार्य तो नागरिकों को करना है।इस ग़लतफ़हमी के मुख्यतः तीन कारण हैं।पहला,इस विशाल देश की विशाल समस्याओं को समझने की समझ न रखना,……………दूसरा,अपने को सर्वशक्तिमान समझना,,,,,,,,,,,,,,,तीसरा,सब समझते हुए भी,अपने स्वार्थ हेतु,जनता को भ्रमित करना ताकि उनकी नेतागीरी बनी रहे तथा जनता अपनी मेहनत द्वारा किये विकास को नेताओं की देन माने।जन-साधारण को समझना है कि देश के विकास में सबका प्रयास अनिवार्य है तथा सरकार माई-बाप की अवधारणा जनतंत्र में निरर्थक है।राजनैतिक तथा प्रशासकीय तंत्र केवल व्यवस्था है जिसे जन ने चलाना है।स्वतंत्र भारत की यह पहली सरकार है जिसने परोक्ष रूप में माना कि समस्याओं के पहाड़ की फ़तह तो जनता ने करनी है और सरकार केवल वहाँ तक पहुँचने का रास्ते बना सकती है और उनका रख-रखाव भर कर सकती है।
(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)