सांसदों को समझना चाहिये कि कोई भी जन-समूह,कहीं भी,कभी भी,हर विषय पर,शत-प्रतिशत एकमत नहीं होता अतः प्रणाली को बहुमत से चलना होता है
प्रो. एच सी पांडे
बात-बात पर हाथ मारते,उसको कहते ग्राम सभा,
बात-बात पर लात मारते,उसको कहते विधानसभा।
एक बोलता और सब सुनते,उसको कहते शोकसभा,
सब बोलते कोई नहीं सुनता,उसको कहते लोकसभा
……… ग्रामीण कवि द्वारा भारत की संसदीय प्रणाली का विवरण।
जन-तंत्र,गण-तंत्र,अथवा,लोक-तंत्र की भारत में अनेक परिभाषाएँ हैं।सारे राजनैतिक दल,जब भी विरोध में होते हैं,जनतंत्र पर जान देने की क़समें खाते हुवे,गणतंत्र के गुण गिनाते हुवे,और लोकतंत्र के लोकगीत गाते हुए,अपने दलहित में,इच्छानुसार,परिभाषा बदल देते हैं,जिसका देशहित व जनहित से कोई संबंध नहीं होता।राजनैतिक दल केवल सत्ता के भूखे होते हैं,उनको सच को झूठ कहने और झूठ को सच कहने में कोई भी परेशानी नहीं होती,अगर उससे उनकी स्वार्थ सिद्धि होती हो।कोई भी शासन प्रणाली भगवान की देन नहीं है बल्कि दंश के जन-समूह द्वारा निर्धारित व स्वीकार्य प्रणाली ही होती है।
संसदीय प्रणाली के मुख्यतः तीन बिंदु होते हैं ।सर्व प्रथम,हर प्रस्ताव पर,निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार,विस्तार से बहस हो सके,द्वितीय,हर प्रस्ताव बहुमत के आधार पर पारित हो और तृतीय,पारित प्रस्ताव को सभी दल पूर्णतः स्वीकार करें।और अंततः,अध्यक्ष की व्यवस्था का सर्वदा अनुपालन हो।किसी भी कार्य प्रणाली में गुण-दोष दोनों होते हैं। शत-प्रतिशत त्रुटिरहित,कोई भी प्रणाली नहीं होती अत: गुण के साथ दोष भी स्वीकार करना होता है।किसी दल-विशेष,अथवा व्यक्ति-विशेष की इच्छा अनुसार न तो संसद का कार्य-क्रम स्थगित किया जा सकता है,न ही बाधित किया जा सकता है,न बहुमत से पारित प्रस्ताव अस्वीकार किया जा सकता है,और न गतिरोध की स्थिति में,अध्यक्ष की व्यवस्था की अवहेलना की जा सकती है।यदि संसद की कोई भी कार्यवाही संविधान के विरूद्ध हो तो उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है।कोई भी प्रगतिशील समाज,हर क्षेत्र में जन स्वीकार्य व्यवस्था के उचित अनुपालन से ही चल सकता है,यह ध्रुव सत्य है।
क्रिकेट मैच में भी,समय,अथवा,ओवर संख्या,निर्धारित रहती है,तथा खेलने के नियम होते हैं।दोनों टीमों को बराबर खेलने का अवसर मिलता है जीत चाहे एक रन की हो,अथवा, एक इनिग्स की,जीत,जीत ही मानी जाती है।संचालन सुनिश्चित करने को अम्पायर होता है।अम्पायर के निर्णय पर संदेह होने पर थर्ड अम्पायर की भी व्यवस्था होती है।यह सब टीमें समझती है,इसी कारण क्रिकेट श्रृंखला सफलता से संपन्न होती है।
सांसदों को समझना चाहिये कि कोई भी जन-समूह,कहीं भी,कभी भी,हर विषय पर,शत-प्रतिशत एकमत नहीं होता अतः प्रणाली को बहुमत से चलना होता है।प्रस्ताव,सदन में एकमत से पारित हो सकता है अथवा,केवल एक मत से,प्रणाली- संचालन के यही दो छोर होते हैं।कितने बहुमत से प्रस्ताव पारित हुआ अर्थहीन है।संसदीय व्यवस्था का यह सच विरोधी दल स्वीकार नहीं करते।संसद सत्र कभी-कभार ही व्यवस्थित रूप में चल पाते हैं।संसद सत्र का बहिष्कार करना,संसद भवन से बहिर्गमन आम है।संसद की बहस,आरोप-प्रत्यारोप तक ही सीमित रह जाती है,प्रस्ताव-विशेष को,सार्थक तो क्या,निरर्थक बहस के लायक़ भी नहीं समझा जाता।अशोभनीय भाषा,झूठे आरोप,विषय-विशेष से हट कर हर प्रकार के बिंदुओं को उछालना सांसदों का विशेषाधिकार समझा जाता है।अक्सर बहुत सारे सांसद एक साथ बोलने लगते हैं,और अक्सर ही बाक़ी सांसद उनको सुनते ही नहीं ।इन परिस्थितियों में,सामान्य-जन के समझ में नहीं आता कि,उसका चुना हुआ प्रतिनिधि,किसके हित की बात कर रहा है,जनता के हित की ,अपने हित की,या,किसी के हित की भी नहीं।दो पंक्तियाँ,संभवतः इसी परिस्थिति के लिये लिखी गई हों,
“कौन क्या कहता था,किसे होश रहा,
बस बज़्म में,तक़रीरों का जोश रहा।
देख कर होश वालों के ये हाल,
दीवाना कुछ सोच कर ख़ामोश रहा।”
देश में लोक-तंत्र की यही चाल यदि रही तो समझ लीजिये हम पर-लोक तंत्र की ओर बढ़ रहे हैं।
(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)