क़ानून के विपरीत जा कर, और बिना विधि द्वारा स्थापित व्यवस्था का पालन किए बुल्डोज़र का प्रयोग करके किसी तथाकथित दोषी का मकान गिरा देना या उसकी सम्पत्ति को नुक़सान पहुँचना एक अन्याय पूर्ण कृत्य है जिसको तुरंत रोका जाना चाहिए और इस प्रकार की अन्यायपूर्ण कार्यवाही करने वालों को कठोर दंड दिया जाना भी न्याय सम्मत होगा
वी एस पांडे
आजकल उत्तर प्रदेश एवं अन्य राज्यों में क़ानून व्यवस्था को दुरुस्त करने और अपराधियों को तात्कालिक दंड देने के लिए किए जा रहे बुल्डोज़र के प्रयोग को लेकर काफ़ी चर्चा है। पक्ष और विपक्ष के द्वारा समर्थन और विरोध में तमाम तर्क दिए जा रहे हैं और आम जनता भी अभी असमंजस में है कि यह सब क्या हो रहा है । जहाँ एक ओर सत्ता पक्ष का यह कहना है कि अवैध ढंग से बनाए गए भवनों को बुल्डोज़र का प्रयोग करके गिरा दिया जाना क़ानून सम्मत है वहीं दूसरे पक्ष का यह कहना है कि भवन अवैध ढंग से बना था या नहीं , इसका परीक्षण करने के लिए विस्तृत क़ानूनी व्यवस्था मौजूद है और स्थापित व्यवस्था का पालन किए बिना प्रशासन या सरकार द्वारा किसी भी के घर या सम्पत्ति को गिरा देना पूर्णतः अवैध कार्य है । उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश एवं कतिपय अन्य राज्यों में बुलडोज़रों का प्रयोग दंगा फ़साद में तथाकथित रूप से भाग लेने वाले लोगों के ख़िलाफ़ किया गया , ऐसा समाचार पत्रों में छपी खबरों के आधार पर प्रतीत होता है ।इस मामले में मूल प्रश्न यही है कि क्या अपराध और क़ानून व्यवस्था को ठीक करने के नाम पर पुलिस , प्रशासन को कुछ भी करने की छूट दिया जाना ख़तरनाक प्रथा को जन्म देने जैसा तो नहीं होगा ?
जो भी देश लोकतांत्रिक प्रणाली का पालन करते हैं वह सभी क़ानून के अनुसार ही शासन चलाने को बाध्य हैं क्योंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सम्विधान यानी क़ानून की किताब में लिखी व्यवस्था के चलते ही कोई भी चुनाव लड़ कर और जनता का समर्थन पाकर सत्ता में बैठ सकता है । सम्विधान यानी क़ानून के चलते ही आज के सत्ताधारी मुख्यमंत्री और प्रधान मंत्री बन सके । यही क़ानून यह भी कहता है कि पुलिस का अधिकार क्षेत्र सिर्फ़ अपराधी द्वारा किए गए अपराध को दर्ज करके विधि के अनुसार मामले में जाँच पड़ताल करके सभी साक्ष्यों को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे , और इस दौरान उसे भारतीय दंड संहिता में लिखित व्यवस्थाओं का पालन करना ही होगा । उससे आगे यह न्यायालय का क्षेत्राधिकार है कि वह निर्धारित विधिक प्रक्रिया का अक्षरशःपालन करते हुए पुलिस द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों का भलीभाँति परीक्षण करके यह निर्धारित करे कि अमुक व्यक्ति द्वारा आरोपित अपराध कारित किया गया या नहीं और दोषी पाए जाने पर अपराधी को दंड की सजा दे । परंतु हाल ही में प्रचलित बुल्डोज़र कल्चर में पुलिस के पास , ऐसा लगता है कि , स्थापित क़ानूनों के विपरीत जा कर फ़ौरी तौर पर किसी को भी बिना न्यायालय द्वारा परीक्षण किए बिना ही किसी को भी दोषी ठहरा कर उसको फ़ौरी ढंग से दंडित करने का अधिकार दे दिया गया है । इस प्रकार से किसी को भी न्यायालय के विचरण के बिना दोषी करार देकर उसका मकान बुल्डोज़र से गिरवा देना सरासर अन्याय है और ऐसा करने वाला भी देश के स्थापित क़ानूनों को तोड़ने का अपराधी है , यह भी स्पष्ट है ।
अपराध नियंत्रण और क़ानून व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त रखने के लिए देश के पास तमाम क़ानून और अनुभव उपलब्ध है । यही नहीं, दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों में, हमारे देश की भाँति ही क़ानून बनाए गए हैं और इन्हीं क़ानूनों का पालन करके सभी देश अपराध नियंत्रण करते रहे हैं और हमारे देश में भी वैसा ही होता रहा है । उसके बाद भी यदि अपराध बढ़ रहे हों या दंगे फ़साद हो रहे हों तो सरकारों को अपने तंत्र को ठीक से चलाने और पुलिस व्यवस्था में आ गई कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए ना कि सभी स्थापित क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए पुलिस को स्वयं ही न्यायालय भी बन कर किसी को भी दोषी ढहराने का अधिकार दे देने जैसी व्यवस्था स्थापित करने का दुर्भाग्यपूर्ण कार्य करना चाहिए ।
स्पष्टतः आज हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार में डूबी हुई है और यही मर्ज़ पुलिस , प्रशासन में भी व्याप्त है जिसके चलते आम लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा है । अपराध का जन्म सामान्यतः न्याय ना मिल पाने के कारण ही होता है , अतः किसी भी देश को सबसे पहले न्याय व्यवस्था को ईमानदार , पारदर्शी और सर्व सुलभ बनाना होगा । मनुष्य की सबसे पहली ज़रूरत न्याय ही है । वह भूख , ग़रीबी , विपन्नता आदि तो बर्दाश्त कर सकता है परंतु अन्याय होने पर उसका विचलित हो जाना कोई असामान्य अवस्था नहीं कही जा सकती ।
अपराध , अपराधियों , दंगा , फ़सादों पर नियंत्रण रखना किसी भी सरकार की सबसे पहली ज़िम्मेदारी है लेकिन इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए क़ानून के विरुद्ध जाकर कोई भी कदम उठाना एक अत्यंत मूर्खतापूर्ण एवं घातक कदम होगा जिसके दूरगामी दुखद परिणाम आने अवश्यम्भावी हैं । यही स्थिति फ़र्ज़ी पुलिस एंकाउंटर की भी है , जिसपर सभी प्रदेशों में पूर्णतः रोक लगानी चाहिए । अपराधी कितना भी दुर्दांत क्यों ना हो , क़ानून किसी को भी बिना सक्षम न्यायालय के आदेश के दूसरे की जान लेने का अधिकार नहीं देता। स्वतः रक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए अपराधियों द्वारा पुलिस बल पर हमला बोलने की स्थिति में निश्चित रूप से पुलिस के पास गोली चलाने का और हमलावर को मार देने का अधिकार है और यही अधिकार सभी के पास है । क़ानून के विपरीत जा कर , और बिना विधि द्वारा स्थापित व्यवस्था का पालन किए बुल्डोज़र का प्रयोग करके किसी तथाकथित दोषी का मकान गिरा देना या उसकी सम्पत्ति को नुक़सान पहुँचना एक अन्याय पूर्ण कृत्य है जिसको तुरंत रोका जाना चाहिए और इस प्रकार की अन्यायपूर्ण कार्यवाही करने वालों को कठोर दंड दिया जाना भी न्याय सम्मत होगा ।यह कार्य व्यवस्था में बैठे सभी लोगों को करना होगा और यह सुनिश्चहित करना उच्च पदों पर बैठे सभी अधिकारियों की ना केवल नैतिक एवं विधिक ज़िम्मेदारी है बल्कि ऐसा ना करके वह देश और समाज का बहुत बड़ा अहित करने के भी भागी होंगे ।
(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)