कहने को तो आजादी के बाद से सभी सरकारें अन्याय, असमानता, गरीबी और भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं लेकिन अफसोस देश की राजैतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था में न्याय, सच्चाई और ईमानदारी के कोई संकेत नहीं दिखते हैं । यह जान कर हमारा सर शर्म से झुक जाना चाहिए कि हमारे यहाँ लगभग पचास करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं जिन्हें जीवित रहने के लिए रोज संघर्ष करना पड़ता है और यह संदिग्ध गौरव केवल हमे प्राप्त है।
वी.एस.पांडे
वर्तमान में राजनीति का मतलब सिर्फ झूठ बोलकर लोगों को बेवकूफ बनाने तक सीमित रह गया है, यानि सच्चाई से बहुत दूर की बातें करके जनता को दिग्भ्रमित कर देने को राजनीति कहा जाने लगा है। आज तथाकथित विशेषज्ञों और राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा प्री पेड मीडिया आउटलेट्स के माध्यम से और ऐसे मीडिया के एंकर की मदद से हमारे राजनेताओं द्वारा समय-समय पर फैलाया जाने वाला झूठ को सच के रूप प्रदर्शित एवं सिद्ध करदिया जाना आम बात हो गई है और कुछ ही समय में वह असत्य या झूठ सच का अवतार ले लेता है और सच्चा “सच” तो अनाथ की तरह अकेला रोता है और जल्द ही खड़े किये गए झूठ के पहाड़ों के नीचे कुचल कर मिट जाने पर मजबूर हो जाता है। अब यही सच में बदल गया झूठ , अबाध, निर्विरोध दौड़ता है और इसी झूठ के समर्थन में सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ती है। यह नया आख्यान लोगों के उलझे हुए दिमागों के माध्यम से वर्षों तक चलता रहता है और वर्षों तक वहीं विद्यमान रहता है जब तक कि किसी और नए झूठ को फिर से खोजे गए तथाकथित “सत्य” में उसी सदियों पुरानी प्रक्रिया के माध्यम से पुनः नए कलेवर में प्रतिस्थापित नहीं कर दिया जाता है। यह कई दशकों से हमारी कहानी रही है और वर्तमान सूचना युग में आज भी चीजें वैसी ही बनी हुई हैं, कहने को भले ही एक बटन के क्लिक पर सभी प्रकार की “सच्ची” जानकारी उपलब्ध हो जाना आज का यथार्थ माना जाता है । इस सारी गड़बड़ी और अंधेरगर्दी के बावजूद, सत्य तो सत्य ही बना रहता है क्योंकि यही उसकी नियति है , और इंतजार में रहता है कभी किसी के द्वारा अन्धकार से मुक्त होने की प्रतीक्षा में। सत्य कभी भी चमकने की जल्दी में नहीं होता, उसे चमकना ही होगा, आज नहीं तो कल, क्योंकि वह सत्य है।
इस वास्तविकता को हमारे देश की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करने के लिए समझना जरूरी होगा। हालांकि आज हर कोई दावा करता है कि वह सदैव वर्षों से केवल सत्य के मार्ग पर ही चल रहा है लेकिन वास्तविकता तो यही है की आज की राजनीति में झूठ के अलावा कुछ और बचा ही नहीं है।
कहने को तो आजादी के बाद से सभी सरकारें अन्याय, असमानता, गरीबी और भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं लेकिन अफसोस देश की राजैतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था में न्याय, सच्चाई और ईमानदारी के कोई संकेत नहीं दिखते हैं । यह जान कर हमारा सर शर्म से झुक जाना चाहिए कि हमारे यहाँ लगभग पचास करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं जिन्हें जीवित रहने के लिए रोज संघर्ष करना पड़ता है और यह संदिग्ध गौरव केवल हमे प्राप्त है, । कहने को तो हमारी देश के हर राजनीतिक नेता का दिल गरीबों के लिए ही रोता है, लेकिन सत्ता में आने के बाद वह अपनी गरीबी तो दूर करने में तत्काल सफल हो जाते हैं, और बिजली की गति से कंगाल से अरबपति बन जाते हैं। लेकिन यह झूठ कि वे केवल गरीबों की सेवा के लिए जीते हैं और गरीब लोगों के समर्थक हैं आज भी चल रहा है और राजनीति का केंद्रबिंदु बना हुआ है।
राजनीतिज्ञों की झूठ बोलने की कला इतनी निपुणता तक पहुँच गई है कि वे शून्य से पहाड़ बना लेते हैं। इन दिनों एक वास्तविकता हमारे भीतर गहरे तक उतारने का प्रयास किया जा रहा देश का भला कुछ तथाकथित “मॉडलों” से ही होना है। पहले एक दशक पूर्व एक प्रान्त के नाम से मॉडल की शुरुवात हुई और मीडिया से इसका खूब प्रचार किया गया। आज तक कोई न समझ पाया कि आखिर यह मॉडल क्या है ? जब तक इस मॉडल को समझने की लोग फितरत करते तब तक एक दूसरे नए नए नेता बने ने अपना एक नया मॉडल बाजार में ला दिया। जैसा कि सभी जानते हैं कि यह श्रीमान भ्रस्टाचार में स्वयं आकंठ डूबे हैं परन्तु उनका नव सृजित मोडल आज देश के राजनीतिक बाजार में भरपूर प्रचार प्रसार के साथ उतर गया है। आज भी यह प्रश्न अनुत्तरित है कि यह मॉडल क्या है। अन्य राज्यों में चल रही सरकारों को भी यह मोडल वाला “वायरस” तेजी से अपनी चपेट में ले चूका है। छोटे छोटे राज्यों द्वारा इस वायरस की चपेट में आकर अखबारों और टेलीविज़न पर अरबों के विज्ञापन देने की जो होड़ शुरू हो चुकी है उसने स्वतंत्र प्रेस का तो जैसे सत्यानाश ही कर दिया। देश आज इसी लिए राजनीतिज्ञों के झूठ चक्र में पूरी तरह से फँस कर असहाय हो गया है और अब आम जन के लिए सच क्या है इसको जान पाना अब असंभव सा हो गया है।
अब समय आ गया है कि इन वर्षों में फैलाए गए सैकड़ों झूठों के मलबे के नीचे कुचल गए सच को सामने लाया जाये। इन्हीं सैकड़ों झूठों में से एक झूठ यह भी है कि नेता क्या करें पूरी व्यवस्था ही सड़ी हुई है। इसी झूठ कि आड़ में भ्रष्ट राजनीति को वर्षों से जीवित रखने का ड्रामा चलाया जा रहा है। मूल प्रश्न यही है कि देश के संविधान ने जब सारी शक्तिआं चुने प्रतिनिधिओं द्वारा बनाई गई सरकारों को दी है तो नीचे काम करने वालों को दोषी ठहरना पूर्णतः बेमानी है। संविधान ने सभी अधिकारिओं , कर्मचारिओं , जजों , एवं व्यवस्था में नियुक्त सभी पदों पर नियुक्त लोगों को निकालने का पूर्ण अधिकार भी चुनी हुई सरकारों के नुमाइंदों को दी है तो किस बात का रोना। जो बेईमानी करे , कामचोरी करे , दुराचरण करे, जनता की न सुने उसे क्यों नहीं निकला जाता। सच्चाई तो यह है कि अधिकांशतः राजनीतिज्ञ बेईमान अधिकारिओं को विशेष तौर पर पसंद करते रहे हैं नहीं तो महा भ्रष्ट चुने गए आईएएस अधिकारिओं को नेताओं ने मुख्य सचिव जैसे सर्वोच्च पद पर कई बार आसीन न किया होता। यह कहानी सिर्फ एक प्रदेश कि नहीं बल्कि सारे देश की सरकारों की रही है।
यह बदलाव का समय है , लोगों को निःस्वार्थ भाव से देश और समाज के हित में मिल जुल कर काम करने की आज महती जरूरत आन पड़ी है। काम आसान है लेकिन साहस के साथ स्वार्थ त्याग कर काम करके राजनीति की दशा और दिशा बदलने का सामूहिक प्रयास किये जाने के
अलावा अब कोई और रास्ता नहीं बचा है। देश को ऐसे ही प्रयास की आज दरकार है।
(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)