सांप्रदायिक, विभाजनकारी ताकतें भारत को विनाश के कगार पर धकेल रही हैं

वी एस पांडेय कहते हैं किसी भी समय या काल खंड में रहने वालों को यह बात कभी भी नहीं भूलनी चाहिए कि विघटनकारी सोंच को लेकर देश को सफलता पूर्वक नहीं चलाया जा सकता । इस बात को जितनी जल्दी आम जन समझ जायें वह उतना ही देश हित में है । अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए राजनीतिक लोगों द्वारा आमजन को जाति , धर्म , संप्रदाय, भाषा और क्षेत्र के आधार पर बाँट कर सत्ता में बने रहने का जो प्रयास आज चल रहा है वह उतना ही विनाशकारी होगा जितना कि देश के बँटवारे के समय हुआ था ।

इतिहास इस बात का गवाह है कि आदि काल से शासक जनता को बाँट कर शासन करने की नीति अपनाते रहे हैं। अंग्रेज़ी शासन के समय में हिंदू और मुसलमानों के बीच दूरी पैदा करके और उन्हें बाँट कर ही शासन करने की नीति का पालन किया गया और सैकड़ों वर्षों तक मुट्ठी भर विदेशी करोड़ों लोगों को ग़ुलाम बना कर रखने में सफल रहे । इसी बाँटों और राज करो नीति का दुष्परिणाम था हमारे देश का विभाजन। इस विभाजन की विभीषिका में लगभग दस लाख लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा और दो करोड़ से ज़्यादा लोगों को घर से बेघर होना पड़ा । इतनी बर्बादी के पीछे कुछ लोगों की महत्वाकांक्षा और निहित स्वार्थ का ही हाँथ था जिनके लिए सिर्फ़ अपनी ज़िद और अपने स्वार्थ के अलावा करोड़ों लोगों पर आई त्रासदी का कोई मतलब नहीं था ।

धर्म के नाम पर देश का विभाजन करा कर हमारे देश से कट कर एक नया देश अस्तित्व में आया । जिस देश का जन्म ही धर्म के नाम पर हुआ वह भी 24 साल बाद दो देशों में टूट गया । इस उदाहरण ने इतिहास के उसी सबक़ को दोहराया कि जब किसी इमारत की बुनियाद ही सही ना हो तो इमारत मजबूर कैसे हो सकती है ।जिस भी देश और समाज को संकुचित विचारधारा पर जब भी चलाने की कोशिश की गई तो उसका दुष्परिणाम देश और समाज को भोगना ही पड़ा है , इस बात का इतिहास सदैव से साक्षी रहा है।

किसी भी समय या काल खंड में रहने वालों को यह बात कभी भी नहीं भूलनी चाहिए कि विघटनकारी सोंच को लेकर देश को सफलता पूर्वक नहीं चलाया जा सकता । इस बात को जितनी जल्दी आम जन समझ जायें वह उतना ही देश हित में है । अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए राजनीतिक लोगों द्वारा आमजन को जाति , धर्म , संप्रदाय, भाषा और क्षेत्र के आधार पर बाँट कर सत्ता में बने रहने का जो प्रयास आज चल रहा है वह उतना ही विनाशकारी होगा जितना कि देश के बँटवारे के समय हुआ था । सौभाग्य से आज हमारा देश लोकतांत्रिक व्यवस्था का पालक है जहां क़ानून की नज़र में सभी भारतीयों को बराबर के अधिकार प्राप्त हैं और कोई छोटा या बड़ा नहीं है । है।लेकिन क़ानून के राज की मूल अवधारणा को सच्चाई से धरातल पर अगर समय रहते नहीं उतारा गया तो उसके दुष्परिणाम भी भविष्य में आने तय हैं । इस सच्चाई से मुँह मोड़ना सिर्फ़ मूर्खता कही जाएगी इसलिए समय रहते लोगों को बाँटने वाली राजनीति को तिलांजलि दिया जाना होगा जिसकी ज़िम्मेदारी आम जन के कंधों पर है।
आज लोगों के सामने जाति , धर्म , भाषा और क्षेत्र वाद के अलावा कोई और कारण किसी पार्टी को वोट देने का शायद नहीं बचा है जिसके चलते हैं आज देश में काफ़ी विसंगतियां पैदा हो गई। इस बात को एक तुर्की कहानी के माध्यम से समझना बहुत आसान हो जाता है।यह एक जंगल की कहानी है जो आकार में घटता जा रहा था जिसके लिए मूल रूप से कुल्हाड़ी ज़िम्मेदार थी लेकिन फिर भी सभी पेड़ मिलकर उस कुल्हाड़ी को समर्थन और वोट सिर्फ़ इस आधार पर देते रहे कि उस का हत्था उन्ही पेड़ों की लकड़ी से बना था जो उनके बीच की थी और उस कुल्हाड़ी में अपने अंश को देखते हुए सभी पेड़ उसे अपना मानते रहे और अंत में उस पूरे जंगल को कुल्हाड़ी ने काट कर ख़त्म कर दिया । आज कमोवेश यही स्थिति हमारे देश की भी है । आज आम जन उन राजनेताओं को जो उनकी अपनी जाति या धर्म या क्षेत्र के होते हैं उनको आँख मूँद कर वर्षों से समर्थन करते चले आरहे हैं जबकि ऐसे साम्प्रदायिक एवं जाति वादी तत्वों ने सत्ता का दुरुपयोग करके और भ्रष्टाचार के माध्यम से अटूट धन इकट्ठा कर लिया और जनहित की लगातार अनदेखी करते रहे ।इसी के चलते चलते आज देश के हालात यह हो गए हैं की 80 करोड़ लोगों को सरकारी पाँच किलो राशन के लिए लाइनों में खड़े होना पड़ रहा है , शिक्षा व्यवस्था कराह रही है, स्वास्थ्य सेवाएँ खुद ही बीमार होकर इलाज का इंतेज़ार वर्षों से कर रही हैं और हमारे नवयुवक रोज़गार मिलने की राह देखते देखते उम्र के कई दशक बिता गए ।
इन हालातों को बदलने के लिए जल्दी ही सुधारात्मक कदम उठाए जाने आज की महती आवश्यकता है । इसकी शुरुआत तभी हो सकेगी जब निजी स्वार्थ को छोड़ कर देश और समाज के हित में कार्य करने वाले लोग इकट्ठा हो कर इन परिस्थितियों को बदलने के लिए कटिबद्ध हो जाएँ । महात्मा गांधी ने लगभग सौ वर्ष पहले सत्य के मार्ग पर चलकर अंग्रेज़ी साम्राज्य की ताक़त को चुनौती देकर उन्हें परास्त किया था । आज की परिस्थितियाँ उस समय की तुलना में कई गुना आसान हैं क्योंकि आज वोट के माध्यम से शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता का परिवर्तन करने की व्यवस्था हमारे देश में विद्यमान है ।बस ज़रूरत है राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तन की और ऐसी राजनीति की शुरुआत की जिसमें जाति, धर्म , काले धन और बाहुबल की कोई जगह ना हो और जिस राजनीति में सच्चाई , ईमानदारी और सहिष्णुता ही केवल मार्गदर्शक हों। देश का विकास और आम जन के कल्याण का सिर्फ़ और सिर्फ़ यही रास्ता है , बाक़ी सब बेमानी है ।

(विजय शंकर पांडेय भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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