राजनीति में भ्रष्टाचार के नित नए कीर्तिमान गढ़ते केजरीवाल

वर्तमान दिल्ली सरकार के घोटाले बेशर्म लूट का उदाहरण हैं। वर्तमान दिल्ली सरकार द्वारा 400 से अधिक फर्जी नियुक्तियों की कहानी झूठ और धोखे की एक आश्चर्यजनक गाथा है। यह भ्रष्ट आचरण का घिनौना कृत्य इतना अकल्पनीय है कि विश्वास करना भी मुश्किल है कि कोई भी मुख्यमंत्री अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सीधे सरकारी धन का दुरुपयोग करके अपने राजनीतिक अभियान को वित्त पोषित करने का जघन्य अपराध करने के अभूतपूर्व स्तर तक गिर जाएगा।

विजय शंकर पांडे

प्राचीन ग्रीस का नैतिक राजनीतिक दर्शन , दार्शनिक राजा की प्रशंसा करता है, राजनीति के आधार के रूप में सदाचार पर जोर देने वाला कन्फ्यूशीवाद और प्राचीन भारत में जनक जैसे महान राजाओं को परिभाषित करने वाला , सत्ता और धन से वैराग्य प्रदर्शित करता है, और इसे ही राजनीति का प्रतीक होना चाहिए। लेकिन जैसा कि द प्रिंस पुस्तक में सन्निहित है, जो दुनिया भर की राजनीति में धोखे और अनैतिकता की आवश्यकता की 21वीं सदी की वकालत को मान्य करती है, ऐसी मैकियावेली की 16वीं सदी की राजनीति जो धूर्तता पर आधारित है , वही आज की वास्तविक राजनीति है। बीसवीं और इक्कीसवीं सदी में राजनीतिक धोखाधड़ी और धोखे के अनेकों उदाहरण देखे गए हैंः एडॉल्फ हिटलर के गोएबेलियन प्रचार से लेकर पेंटागन पेपर्स, राजनेताओं के फर्जी बयानबाजी कि इराक के पास 2003 से पहले की अवधि में सामूहिक नरसंहार के अस्त्रों का ज़ख़ीरा है , आदि आदि ।इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि हम राजनीति और राजनेताओं के प्रति गहरे अविश्वास के माहौल में आज जी रहे हैं और यह देख रहे हैं कि सत्ता हासिल करने की होड़ में वह सिद्धांतहीन राजनीति के रसातल तक जाने के लिए सदैव तैयार है। भ्रष्टाचार इस अनैतिक राजनीतिक प्रक्षेप पथ का स्वाभाविक परिणाम है।

वर्तमान दिल्ली सरकार के घोटाले उसी बेशर्म लूट का उदाहरण हैं। वर्तमान दिल्ली सरकार द्वारा 400 से अधिक फर्जी नियुक्तियों की कहानी झूठ और धोखे की एक आश्चर्यजनक गाथा है। यह भ्रष्ट आचरण का घिनौना कृत्य इतना अकल्पनीय है कि विश्वास करना भी मुश्किल है कि कोई भी मुख्यमंत्री अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सीधे सरकारी धन का दुरुपयोग करके अपने राजनीतिक अभियान को वित्त पोषित करने का जघन्य अपराध करने के अभूतपूर्व स्तर तक गिर जाएगा। सभी स्थापित कानूनों और सरकारी नियमों का पूर्ण उल्लंघन करते हुए 400 से अधिक तथाकथित सलाहकारों की नियुक्ति हमारे के इतिहास में अभूतपूर्व है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने अपने विभिन्न विभागों और एजेंसियों में इन लोगों को फेलो, सलाहकार, विशेषज्ञ, वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी और सलाहकार के रूप में नियुक्त किया है।मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक आरोप लगाया जा रहा है कि यह निजी लोग जो भारी भरकम वेतनों पर रखे गये थे वह या तो दिल्ली सरकार के मुखिया के करीबी रहे हैं या फिर सरकार के मंत्रियों या अन्य पार्टी नेताओं के करीबी रिश्तेदार हैं, या पार्टी के पूर्ण कालिक पदाधिकारी हैं जो गैरपारदर्शी तरीके से पार्टी के कार्यों को अंजाम दे रहे थे। सक्षम प्राधिकारी की अनिवार्य मंजूरी के बिना, आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करके अपेक्षित योग्यता और अनुभव की कमी के बावजूद पिछले दरवाजे से इन्हें सत्ता में लाया गया है।
अविश्वसनीय रूप से, जैसा कि इस मामले में एलजी को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में बताया गया है- संबंधित प्रशासनिक विभागों ने भी इन निजी व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत कार्य अनुभव प्रमाणपत्रों की सत्यता को सत्यापित नहीं किया था, जो बाद में कई मामलों में हेराफेरी और हेरफेर किए गए पाए गए। मौजूदा दिल्ली सरकार के कुकर्मों और भ्रष्टाचार के मामलों की फेहरिस्त लगातार बढ़ती जा रही है। शुरुआत अरबों रुपये के शराब नीति घोटाले, सुरक्षा बटन घोटाले से हुई। सार्वजनिक निर्माण कार्यों में कमीशनखोरी, शीशमहल घोटाला और अब सार्वजनिक धन के सैकड़ों करोड़ रुपये से जुड़ा यह विशाल भर्ती घोटाला, वे सभी एक तथ्य की ओर इशारा करते हैं – कि केजरीवाल सोचते हैं कि वह अपने आप में एक कानून हैं और एक बार चुनावी जनादेश मिलने के बाद, उनके पास कुछ भी करने का लाइसेंस है। वह हर निर्वाचित नेता की तरह, हमारी देश के सर्वाेच्च कानून, हमारे संविधान द्वारा स्थापित हैं लेकिन वह उसी का लगातार उल्लंघन करते जा रहे हैं जैसे कि सभी क़ानूनों के निर्माता वह स्वयं ही हैं, जिसका वह अपने जोखिम उठाने के साथ लगातार उल्लंघन कर रहे हैं।
करदाताओं के पैसे से राजनीति करना उनका एक नया मंत्र है, जो दुर्भाग्य से उनके जैसे अन्य लोगों को भी ऐसा करने के लिए अवश्य ही प्रेरित करेगा। उनका लक्ष्य अपने लोगों से यह वादा करके राजनीतिक सत्ता हासिल करना है कि सरकारी खजाने का दोहन किया जाएगा और सभी पार्टी कार्यकर्ताओं को सलाहकार के रूप में नियुक्त करके प्रति माह लाखों रुपये का वेतन दिया जाएगा।यह प्रथा हमारे देश के इतिहास में अभूतपूर्व है। यह वर्तमान घोटाला गंभीर है और हमारे राजनीतिक जीवन के लिए इसका भयावह अर्थ है – इसे इन चार सौ सत्ताईस राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हटाने के साथ समाप्त नहीं होना चाहिए। इस घोटाले की गहन जांच करने के लिए इस मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपा जाना चाहिए, ताकि इस जघन्य अपराध में शामिल सभी लोगों को सरगना सहित सलाखों के पीछे डाला जा सके। इसके अलावा, इन नियुक्त लोगों को अवैध रूप से भुगतान किए गए सैकड़ों करोड़ रुपये की वसूली दोषी पाए गए लोगों से की जानी चाहिए।
स्पष्ट है कि हमारा बेईमान राजनीतिक वर्ग श्री लालू प्रसाद यादव से उचित सबक सीखने में विफल रहा है – जिन्हें राजनीतिक रसूख रखने के बावजूद कई बार जेल जाना पड़ा, कई बार दोषी ठहराया गया और अंततः चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। वर्तमान राजनेताओं को याद रखना चाहिए कि वे भी कानून से ऊपर नहीं हैं, जो देर-सबेर उन्हें पकड़ लेगा। राजनीति में शामिल इन ,टेढ़ी लकड़ी , जैसे लोगों को तेजी से खुद को सुधारना ही होगा अन्यथा ऐसे लोगों को गंभीर दंड का भागी होना ही पड़ेगा ।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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