पूर्व आईएएस अधिकारी वी.एस.पांडेय का कहना है कि आजादी के कई दशकों के बाद भी हम भ्रष्ट देशों की श्रेणी में बने हुए हैं और अपने लोगों को स्वच्छ, ईमानदार और कुशल वितरण और शासन प्रणाली प्रदान करने में बुरी तरह विफल रहे हैं। नारेबाजी को छोड़कर, हमारा राजनीतिक वर्ग नागरिकों को नैतिक बयानबाजी का उपदेश देते हुए भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा हुआ है। जो लोग आज शीर्ष पर हैं या कल थे, उनकी कथनी और करनी के बीच की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है।
हम अपना सतहत्तरवां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। यह प्रत्येक भारतीय के जीवन के सबसे गौरवपूर्ण क्षणों में से एक है और हमें इसे बेहतर ढंग से मनाना चाहिए और उन लोगों को याद करना चाहिए जिन्होंने हमारी मातृभूमि से विदेशिओं को भगाने के लिए दशकों तक बहादुरी से और सबकुछ त्याग कर अथक प्रयास किया। हालाँकि, इस अविस्मरणीय उपलब्धि को प्राप्त कर लेने के बाद हम सभी उन चुनौतियों से अपना मुँह नहीं मोड़ सकते जिनका सामना हमारा देश सात दशकों से भी अधिक समय के अपने स्व-शासन के बाद आज भी कर रहा है। यह आज आत्मनिरीक्षण करने का समय है कि क्या हम अपने दूरदर्शी पूर्वजों द्वारा संविधान में परिकल्पित महान संकल्पों को पूरा करने में सफल हुए हैं? हमें उन सवालों के जवाब चाहिए जिनका सामना हम वर्षों से कर रहे हैं, लेकिन जवाब देने वाला आज लगता है कि कोई है ही नहीं है। हमारे सामने आज यह प्रश्न प्रत्यक्ष रूप में खड़ा है कि क्यों आज भी हमारे देश में लगभग चालीस करोड़ गरीब लोग अपनी दैनिक बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम अपने सभी नागरिकों के लिए संविधान में निहित सामाजिक और आर्थिक न्याय और समान दर्जा और अवसर सुरक्षित करने में क्यों विफल रहे हैं?
ये चुनौतियाँ किसी भी तरह से दुर्गम नहीं हैं। कई राष्ट्र अपने नागरिकों को सभ्य, सम्मानजनक जीवन स्थितियां प्रदान करने में सक्षम हो पाए हैं। लेकिन इस मामले में हमारी विफलता स्पष्ट रूप से बहुत बड़ी और चिंताजनक है। अगर मीडिया में आ रही खबरों पर विश्वास किया जाए तो यह शर्मनाक है कि बड़ी संख्या में अमीर लोग हमारा देश छोड़ रहे हैं। यह सामान्य बात नहीं है जब सफल लोग भी अपना देश छोड़ने लगें। लेकिन इस पलायन पर कौन ध्यान दे रहा है? ऐसा लगता है कि इन चिंताजनक घटनाक्रमों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हमें इस बात पर भी आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि हमारी शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली दशकों से खराब क्यों बनी हुई है और सत्ता में रहते हुए विभिन्न विचारधाराओं की किसी भी दल की सरकार ने एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक इन सबसे महत्वपूर्ण परिस्थितियों को ठीक करने की जहमत क्यों नहीं उठाई। इतना ही नहीं, आज भी हम भ्रष्ट देशों की श्रेणी में गिने जाते हैं जहाँ आम जनता का कोई भी काम बिना रिश्वत या सिफारिश के हो पाना लगभग असंभव हैं। हमारे देश और विभिन प्रदेशों पर शासन करने वाली कोई भी सरकार अपने लोगों को स्वच्छ, ईमानदार और कुशल शासन प्रणाली प्रदान करने में बुरी तरह से नाकाम रही हैं । हमारा राजनीतिक वर्ग सिर्फ नागरिकों को नैतिक उपदेश देते रहते हैं जबकि वह सभी स्वयं तो भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा हुआ है। जो लोग आज शीर्ष पर हैं या कल थे उनमें कथनी और करनी के बीच की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है।
हमारे राजनीतिक क्षितिज पर काले धन की छाया के साथ-साथ जाति और सांप्रदायिक आधार पर विभाजन की राजनीति का हमारे देश पर हानिकारक प्रभाव पड़ना ही था जो हम सभी के सामने है । यह सब देख कर चुप बैठने की जगह देश के नागरिकों को राष्ट्र को महानता की राह पर ले जाने के लिए सुधारात्मक कदम उठाने की जिम्मेदारी लेनी होगी। हम अपने कर्तव्य से बच नहीं सकते और यह नहीं कह सकते हैं कि हम क्या कर सकते हैं? लोकतंत्र में, यह सुनिश्चित करना लोगों की ज़िम्मेदारी है कि राजनीति सिद्धांतों पर आधारित रहे और राजनेताओं को केवल संविधान के अनुसार कार्य करने की अनुमति दी जाए – किसी भी प्रकार के विचलन की अनुमति न दी जाए। हमारे संविधान के निर्माता डॉ. बी.आर.अंबेडकर ने लिखा कि लोकतंत्र के लिए समाज में एक नैतिक व्यवस्था के अस्तित्व की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राजनीति नैतिकता से रहित नहीं हो सकती। सरकार कानून पारित करती है और उन्हें लागू करती है लेकिन जब तक समाज में नैतिकता नहीं होगी, अकेले कानून से कोई सफलता नहीं मिल सकती। उन्होंने आगे कहा कि, “राजनीति एक प्रकार की असहनीय और अस्वच्छ सीवेज प्रणाली बन गई है। राजनेता बनना नाली में काम करने के समान है।” इसलिए वह मूल्य रहित राजनीति के सख्त खिलाफ थे । एक बार उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि, “राजनीति बदमाशों का खेल बन गई है लेकिन मेरे लिए यह एक मिशन है”।
प्रसिद्ध विचारक और प्रकृतिवादी हेनरी डेविड थोरो ने अपने निबंध “सविनय अवज्ञा” में किसी भी समाज में व्यक्तियों की जिम्मेदारी पर प्रकाश डाला है। उन्होंने लिखा कि कानून के प्रति उतना ही सम्मान करना वांछनीय नहीं है, जितना कि सच्चाई के प्रति। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रत्येक सही सोच वाले व्यक्ति द्वारा कार्रवाई किये जाने की पुरजोर वकालत की। उन्होंने लिखा, “आज एक ईमानदार आदमी और देशभक्त की कीमत क्या है? वे झिझकते हैं, और पछताते हैं, और कभी-कभी वे प्रार्थना करते हैं; लेकिन वे ईमानदारी से और कुछ नहीं करते। वे अच्छे स्वभाव वाले, बुराई के समाधान के लिए अन्य लोगों की प्रतीक्षा करेंगे, ताकि उन्हें पछताना न पड़े। अधिक से अधिक, वे केवल एक सस्ता वोट देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं बाकी सब ईश्वर की गति को छोड़ देते हैं। एक सदाचारी व्यक्ति मिलना बहुत मुश्किल है लेकिन सद्गुणों के नौ सौ निन्यानवे संरक्षक हमेशा मिल जायेंगे ।
समय आगया है कि हम अपनी जिम्मेदारियों से बचना बंद कर दें । यह सुनिश्चित करने के लिए सभी को मिलकर यह प्रयास करना होगा कि हजारों वर्षों के लम्बे इतिहास वाले और महान दार्शनिक विरासत के स्वामी हमारे महान राष्ट्र को राष्ट्रों के समुदाय के बीच अपना उचित स्थान पुनः प्राप्त हो। वर्तमान स्थिति के बारे में केवल विलाप करते रहना और स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाने के बजाय दूसरों को दोष देते रहना पर्याप्त नहीं है। एक नागरिक के रूप में यह हमारी जिम्मेदारी है कि हमारे पूर्वजों ने हमारे राष्ट्र के लिए जो सपना देखा था उसे साकार करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करें। आइए अब हम केवल स्वच्छ, सदाचारी शासन के संरक्षक बनना बंद करें और राजनीति को शुद्ध और नैतिक बनाने की दिशा में कटिबद्ध हो जाएँ ।
(विजय शंकर पांडेय भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)