सरकार में बड़े पैमाने पर अनियंत्रित भ्रष्टाचार बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और विनाशकारी है

अपनी IAS में साढ़े सैंतीस वर्षों के कार्य काल के दौरान, कुछ अपवादों को छोड़ कर , अधिकांश ईमानदार अधिकारी जो रिश्वत ना खाने के लिए जाने जाते थे , उनकी कलम से जनहित का ज़्यादातर बंटाधार ही होता मुझे दिखा, जो अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण है । इस श्रेणी में वह अधिकारी और नेता शामिल हैं जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की रक्षा करने के चलते, जो उनके द्वारा उस समय धारित महत्वपूर्ण पद की बचत से ही जुडा कारण होता था , नियम , क़ानून की अनदेखी लगातार करते रहे और जन हित के विरुद्ध जान बूझ कर निर्णय लेते रहे या ऐसे जन विरोधी निर्णयों के भागीदार बने ।

वी यस पाण्डेय

नए साल का आगाज हो गया है । हर नया साल नई आकांक्षाओं और चुनौतियों को ले कर आता है । पछत्तर साल के अपने स्वतंत्र अस्तित्व के बाद भी हमारी जनता तमाम तरफ़ की समस्याओं से जूझ रही है जिनमे से भ्रष्टाचार की समस्या तो जनता के लिए सबसे ज़्यादा कष्टदायी हैं क्योंकि आज तक हम ऐसी व्यवस्था क़ायम करने में विफल रहे जिसमें आम लोगों के वैध या सही काम बिना रिश्वत या सिफ़ारिश के आसानी से हो सकें । हालात तो इतने ख़राब हैं कि सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या पर कोई भी राजनीतिक दल साफ़गोई से बात करने को तैयार नहीं है और ना ही भ्रष्टाचार कभी भी गम्भीर रूप से राजनीतिक मुद्दा ही बन पाया । कारण साफ़ है क्योंकि जब अधिकांश राजनीतिज्ञ और नौकरशाही जब भ्रष्टाचार के दलदल में डुबकी मार रहे हैं तो इसके बारे में बात कौन करे । इस समस्या ने ही आज देश की सही माइने में प्रगति को रोक रखा है और इसी लिए एक सौ चालीस करोड की जनसंख्या वाले देश की कुल सकल आय पाँच -सात करोड़ जनसंख्या वाले देशों की सकल आय को पीछे करने में हाफ़ रही है । अगर प्रति व्यक्ति आय की ओर देखा जाए तो हमारा देश विश्वभर में सबसे गरीब देशों की पंक्ति में आज भी खड़ा मिलेगा ।
भ्रष्टाचार की भीषण समस्या से ग्रस्त देश के परिप्रेक्ष्य में जब हम देश में कभी भी ईमानदार लोगों की चर्चा करते हैं है तो अक्सर ऐसे कुछ गिने चुने नाम ही सामने आते हैं जिनके बारे में आम राय यह रही है कि वह सरकारी या राजनीतिक पदों पर कार्य करते समय या अपनी जिम्मदारियों के वहन करते हुए रिश्वत नहीं लेते थे ।लेकिन ऐसे लोगों ने विभिन्न पदों का दायित्व निभाते हुए बिना रिश्वत खाए हुए भी जन हित और सरकारी ख़ज़ाने को करोड़ों – अरबों रुपए का नुक़सान पहुँचाया , इस बारे में ना तो लोगों को जानकारी ही होती है और ना ही लोग यह जानकारी ले पाने की स्थिति में ही होते हैं ।
अपनी IAS में साढ़े सैंतीस वर्षों के कार्य काल के दौरान, कुछ अपवादों को छोड़ कर , अधिकांश ईमानदार अधिकारी जो रिश्वत ना खाने के लिए जाने जाते थे , उनकी कलम से जनहित का ज़्यादातर बंटाधार ही होता मुझे दिखा, जो अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण है । इस श्रेणी में वह अधिकारी और नेता शामिल हैं जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की रक्षा करने के चलते, जो उनके द्वारा उस समय धारित महत्वपूर्ण पद की बचत से ही जुडा कारण होता था , नियम , क़ानून की अनदेखी लगातार करते रहे और जन हित के विरुद्ध जान बूझ कर निर्णय लेते रहे या ऐसे जन विरोधी निर्णयों के भागीदार बने ।
ऐसे लोगों को “कुर्सी का रिश्वतखोर” यदि कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा क्योंकि यह लोग रिश्वत ना खाते हुए भी अपने महत्वपूर्ण पद को बचाने के लिए किसी भी ऐसे निर्णय के भागीदार बनने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं जिससे व्यवस्था में बैठे लोग इनसे प्रसन्न रहे चाहे वह निर्णय कितना भी भ्रष्ट या जन विरोधी क्यों ना हो ।

प्रश्न यह उठता है कि यह कौन सी ईमानदारी है जिसके रास्ते चलते हुए जन हित और देश हित को गम्भीर नुक़सान पहुँचा हो ।इस बात के कई उदाहरण पिछले कई दशकों से देखने को मिलते रहे है जब ईमानदार कहे जाने वाले राजनीतिक और अधिकारी वर्ग के लोगों की ठीक नाक के नीचे गम्भीर घोटाले होते रहे और देश और समाज को उसका दुष्परिणाम वर्षों तक भुगतना पड़ा । यह तथ्य आम जन को मालूम है कि देश में लगभग एक दशक तक देश के सर्वोच्च पद पर आसीन राजनीतिज्ञ की छवि ईमानदार थी लेकिन दुर्भाग्य से देश के इतिहास में घटित हुए हज़ारों हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले इन्हीं महानुभाव के ठीक नाक के नीचे घटित होते रहे ।क्या देश कभी भी 2G घोटाले, कोयला घोटाला , कामन्वेल्थ खेल घोटाले इत्यादि को भुला सकता है जिसने व्यवस्था की चूल हिला कर रख दिया था । आज भी कमोवेश वही खेल देश भर में जारी है लेकिन यह सब एक प्रकार से राज काज का अंग सा मानाजाने लगा है और जनता यह मान सी चुकी है कि भ्रष्टाचार तो कभी ख़त्म हो ही नहीं सकता । यह निराशा पूर्ण स्थिति अत्यंत दुर्भागपूर्ण है क्योंकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाए बिना आज तक कोई भी देश किसी भी काल में मज़बूत और समृद्ध नहीं हो सका।
स्पष्टतः देश के क़ानून के अनुसार किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार अक्षम्य है और उस को अपराध घोषित किया गया है।कोई भी व्यक्ति यदि अपने पद का किसी प्रकार से दुरुपयोग करके अपनी या अपने राजनीतिक दल की राजनीति को चमकाने, चुनाव जीतने या अपनी सम्पत्ति बढ़ाने वाले का कार्य करता है तो क़ानून में उस के लिए जेल की सजा की व्यवस्था की गई है । लेकिन इसके बाद भी राजनीति करने के नाम पर करोड़ों की लूट का खेल अबाध गति से देश के कोने कोने में दशकों से चलता ही जा रहा है और यह सब अब सामान्य सा हो गया है ।यह सब बदला जाना अब देश की सबसे पहली ज़रूरत बन गया है ।इस समस्या से मुक्ति का मार्ग कोई कठिन नहीं है । इसके लिए आम जन को अब आगे आने वाले चुनाव में एक माँग ही उठानी चाहिए – हमें भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं , भ्रष्टाचार से मुक्ति दो तभी वोट मिलेगा । गैस के सिलेंडर, लाड़ली बहना, पाँच किलो अनाज , किसानों के लिए सालाना धनराशि आदि आदि तो जनता के द्वारा दिए गए टैक्स से ही आते हैं और आते रहेंगे लेकिन भ्रष्टाचार तो ऊपर से नीचे तक की कुर्सियों पर बैठे लोगों की ही पैदावार है जिसको ख़त्म करने के लिए ना तो पैसा चाहिए और ना ही कोई नया क़ानून , चाहिए तो सिर्फ़ और सिर्फ़ साफ़ नीयत जिसकी निहायत कमी पूरी की पूरी राजनीतिक व्यवस्था और नौकरशाही में साफ़ दिखती है ।आम लोगों की ग़रीबी की समस्या अन्याय , बदहाली , बेरोज़गारी , की समस्या , फटेहाल शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था भी इसी भ्रष्टाचार और बदनीयती की समस्या की देन हैं , यह अटल सत्य है। समय आगया है कि बिना किसी विलम्ब के देश की जनता को इस भ्रष्टाचार रूपी राक्षस का वध तो अब करना ही होगा और तभी “राम राज्य” आएगा , नारों और रेवडीयों से नहीं ।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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